अजीर्ण नामक रोग से प्राय: सभी परिचित हैं। अजीर्ण अर्थात् बदहजमी रोग का सीधा सा अर्थ है पाचन विकार अर्थात् खाया-पिया हजम न होना। इस रोग को अग्निमांद्य तथा मन्दाग्नि के नाम से भी जाना जाता है । आमतौर पर इसे एक साधारण सा रोग समझा जाता है किन्तु उचित-चिकित्सा के अभाव में इस रोग के परिणाम अत्यन्त गम्भीर भी हो सकते हैं ।
शिशुओं को अजीर्ण हो जाने पर दस्त या पतले पाखाने बार-बार आना, पेट में वायु व गड़गड़ाहट, पेट बढ़ा हुआ होना, बेचैनी, कम सोना, रोना, नींद कम हो जाना, वजन स्वस्थ से कम बढ़ना ये लक्षण होते हैं। शिशु की अन्तड़ियों में संक्रमण हो जाने पर भी पाचानांगों पर बुरे प्रभाव पड़ते हैं। शिशुओं को गर्मी के मौसम में पाचानांगों के अधिक रोग होते हैं तथा बोतल से ऊपरी दूध पीने वाले शिशुओं को पेट के रोग अपनी माता का दुग्धपान करने वाले शिशुओं की अपेक्षा अधिक हुआ करते हैं ।
यहाँ बदहजमी (अपच) की अंग्रेजी दवा बताई जा रही है :-
विटामिन बी कॉम्प्लेक्स फोर्ट (टी. सी. एफ. कंपनी) – 1-2 मि.ली. प्रतिदिन अथवा 1 दिन बीच में छोड़कर इन्जेक्शन लगायें । यह दवा विटामिन बी कमी से उत्पन्न रोग को ठीक कर शरीर को बल प्रदान करती है । यकृत को ठीक करके रक्त की वृद्धि करते हुए पाचन शक्ति को सशक्त करने के लिए उत्तम परम औषधि है ।
बीप्लेक्स फोर्ट बी-12 (ए. एफ. सी. कंपनी) – 1 से 2 मि.ली. प्रतिदिन अथवा 1 दिन बीच में छोड़कर माँस में या नस में इन्जेक्शन लगायें । (5 गुना ग्लूकोज, नॉर्मल सैलाइन या डिस्टिल्ड वाटर में घोलकर धीरे-धीरे इन्जेक्शन लगायें ।)
यूबीसीड (यूनिकेम कंपनी) – 1-2 मि.ली. प्रतिदिन या 1 दिन बीच में छोड़कर लगायें।
विभीनाल फोर्ट (एलेम्बिक कंपनी) – 1-2 मि.ली. प्रतिदिन या 1 दिन बीच में छोड़कर लगायें।
नियोपेप्टिन (रेपाटोक्स कंपनी) – 1-2 कैपसूल दिन में 2-3 बार भोजन के बाद ।
टाका कम्बेक्स कैपसूल्स (पी. डी. कंपनी) – 1-2 कैपसूल दिन में 2-3 बार भोजन के साथ (बीच में अर्थात् आधा खाना खा चुकने पर) अथवा भोजनोपरान्त ।
नियोजाइम (सिपला) – 1-1 कैपसूल दिन में तीन बार भोजनोपरान्त ।
यूनि इन्जाइम (यूनिकेम कंपनी) – 2-2 टैबलेट दिन में 3 बार भोजन के बाद ।
डिस्टिपैप्टल (बी. नाल.कंपनी) – 1-2 ड्रैगी दिन में तीन बार भोजन के बाद ।
फेस्टलड्रैगी (हैक्स्ट कंपनी) – 1-2 ड्रैगी दिन में तीन बार भोजन के साथ या बाद में। (मुख में रखकर चूसना चाहिए ।)
मोलजाइम (फेयरडील कंपनी) – 1-2 टैबलेट दिन में 2-3 बार सेवन करायें ।
विस्मोजाइम पेय (ईस्टर्न ड्रग कंपनी) – आधी से दो चम्मच दिन में 2-3 बार जल में घोलकर ।
विटाजाइम (ईस्ट इण्डिया कंपनी) – 1-2 चम्मच दिन में 2-3 बार समान भाग जल मिलाकर ।
बेस्टोजाइम (बी. इवान्स) – 2 चम्मच दिन में 2-3 बार जल में घोलकर ।
डिजीटोन (यूनिकेम कंपनी) – शीशी के साथ पैकिंग में प्राप्त पुड़िया अथवा टैबलेट को शीशी में घोलने के पश्चात् 1-2 चम्मच दिन में 2-3 बार जल में घोलकर । टी. सी. एफ. कंपनी यही दवा 3 लिक्जिर डिजीप्लेक्स के नाम से बनाती है।
बच्चों को : विटाजाइम ड्रॉप्स (ईस्ट इण्डिया कंपनी) – 1 वर्ष के तथा इससे कम आयु के शिशुओं को लगभग 10 बूंद (0.5 मि.ली.) प्रतिदिन, एक वर्ष से अधिक आयु के बच्चों को 10 बूंद दिन में दो बार जल में मिलाकर पिलायें । इससे अधिक आयु के बच्चों को इसी दवा का सीरप 2.5 से 5 मि.ली. तक बराबर जल मिलाकर दिन में 1-2 पिलायें ।
नार्मोजाइम सीरप (यूनिल्वाइड्स कंपनी) – नन्हें शिशुओं को 1.5 से 2.5 मि.ली. तथा बच्चों को 2.5 से 5 मि.ली. दिन में 1-2 बार । बराबर का जल मिलाकर दें ।
जेटोसेक एस. (एथनार कंपनी) – 5 वर्ष से नीचे बच्चों को 1.5 मिली. प्रतिकिलो शारीरिक भार के अनुपात से तथा 5 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों को 5 मि.ली. । सभी को दिन में 3-4 बार सेवन करायें ।
नोट – दुग्धपान करने वाले शिशुओं को 6 माह की आयु से 2 वर्ष तक अधिक और बार-बार गाढ़ा क्रीम मिला दूध पिलाते रहने से उनको अजीर्ण हो जाया करता है जिसके फलस्वरूप पहले पीले रंग का मल अधिक मात्रा में आता है, बाद में बदबूदार नरम पाखाने आने लग जाते हैं। ऐसी दशा में शिशु को 6 से 12 घण्टे तक इस विधि के अनुसार उपवास करायें ।
दूध व भोजन 6 से 12 घण्टे तक बिल्कुल न दें । केवल बिना दूध व चीनी की चाय थोड़ी-थोड़ी और उबला हुआ ठण्डा पानी बारी-बारी से पिलाते रहें। यदि शिशु बहुत कमजोर न हो और उसको अधिक दस्त न आ रहे हों तो – कैस्टर ऑयल 1 छोटा चम्मच देकर पेट साफ करें । इस प्रकार की बदहजमी ‘चिकनाई की बदहजमी’ कहलाती है । अत: घी, मक्खन, क्रीम व चिकनाई की मात्रा कम से कम कर दें । आधी क्रीम निकाला दूध ही दें । गाय के दूध में माँ के दूध की अपेक्षा अधिक चिकनाई होती है। इसलिए गाय का विशुद्ध दूध शिशुओं को पिलाना ठीक नहीं है और यदि गाय का दूध देना भी हो तो पानी मिलाकर और उबालकर ही पिलायें ।
शिशुओं को हलवा, पूरी, चावल, बिस्कुट और मिठाईयाँ अधिक मात्रा में तथा बार-बार खिलाने से भी बदहजमी हो जाया करती है। इस प्रकार की बदहजमी को निशास्ता की बदहजमी कहा जाता है। इसमें बच्चे को हरे रंग का खट्टास वाला झाग मिला पाखाना बार-बार आने लगता है जिससे बच्चे के चूतड़ों में जलन होती है, पेट फूल जाता है और बार-बार वायु निकलती है। मल बदबू वाला नहीं होता है। सतर्कता एवं परहेज उपर्युक्त (चिकनाई की बदहजमी) के अन्तर्गत लिखी हुई सावधानी बरतें ।