कैलमिया लैटिफोलिया के लक्षण तथा मुख्य-रोग
( Kalmia Latifolia Uses In Hindi )
(1) ‘वात-रोग’ (Rheumatism) का दर्द चलता-फिरता, ऊपर से नीचे की तरफ़, और कभी-कभी नीचे से ऊपर की तरफ जाता है – यह मुख्यत: वात-रोग (Rheumatism) की औषधि है। इसका दर्द चलता-फिरता है, और ऊपर से नीचे की तरफ फैलता है – ऊपर से बांह में नीचे की तरफ, टांगों में ऊपर से उठकर नीचे पैर की तरफ, कन्धों से बांह की अंगुलियों की तरफ, कुल्हे से पांव की अंगुलियों की तरफ। दर्द का प्रभाव मांस-पेशियों के सिरों (Tendons) जोड़ों तथा स्नायु के मार्ग पर होता है। कभी-कभी यह दर्द नीचे से ऊपर की तरफ भी जाता है। कैक्टस का दर्द भी ऊपर से नीचे की तरफ फैलता है। लीडम का दर्द इससे उल्टा है। वह नीचे से शुरू होकर ऊपर को चढ़ता है। जहां तक दर्द के चलते-फिरते रहने का संबंध है यह ध्यान में रखना चाहिये कि पल्सेटिला, लैक कैनाइनम और कैलि बाईक्रोम का दर्द भी चलता फिरता है।
(2) दर्द बर्छी भौंकता हुआ-सा टीस मारता है – यह दर्द बड़ा सख्त होता है। ऐसा लगता है मानो किसी ने बर्छी भोंक दी। दर्द में टीस उठती है। दर्द एकाएक स्थान बदल लेता है, एक जोड़ से दूसरे जोड़ पर चला जाता है।
(3) दर्द हरकत से बढ़ता है – इस औषधि के वात-रोग का दर्द हरकत से बढ़ता है।
(4) सिर-दर्द सूर्य चढ़ने के साथ आता, उसके डूबने के साथ चला जाता है – इसमें सख्त सिर-दर्द होता है। गर्दन की गुद्दी से या सिर के पीछे के भाग से शुरू होकर सिर के ऊपरी भाग तक फैल जाता है। माथे पर भी दर्द होता है। एक या दोनों आंखों के ऊपर दर्द होता है जो गर्मी और हरकत से बढ़ता है। दोपहर को दर्द सिर पर होता है। जब तक रोगी आराम से लेटा रहता है, कोई हरकत नहीं करता, तब तक मानसिक कार्य कर सकता है, बैठने पर भी मानसिक कार्य के लिए असमर्थ हो जाता है। जरा-सी हरकत भी उससे बर्दाश्त हीं होती। हाथ के हिलाने तक से उसे चक्कर आ जाता है।
(5) ‘स्नायु-शूल’ (Neuralgia) का एकाएक आना और एकाएक चले जाना – नसों के दर्द में यह उत्तम औषधि है। आंख, चेहरे की नसें दर्द करती हैं। स्नायु-शूल एकाएक शुरू होता है और एकाएक समाप्त हो जाता है। दर्द बिजली की तरह आता जाता है। बात करते-करते रोगी कहता है – ओह! दर्द आ गया, थोड़ी देर बाद कहता है – दर्द चला गया। जब स्नायु-मार्ग पर दर्द चलता है, ऊपर से नीचे जाता है, हरकत से दर्द बढ़ता है, तब ऐसे शियाटिका के दर्द में भी कैलमिया लाभ करता है।
(6) स्नायु-शूल में कैलमिया तथा स्पाइजेलिया कुी तुलना – स्नायु-शूल में ये दोनों औषधियां बहुत समान हैं। दोनों में आंख की हरकत से दर्द बढ़ जाता है, दोनों हृदय की वात-व्याधि-जनित (Heart trouble of Rheumatic origin) दर्द में उपयोगी हैं, परन्तु कैलमिया का दायें भाग और स्पाइजेलिया का बायें भाग पर प्रभाव है, कैलमिया का रोगी आंख में दर्द के साथ खिंचाव (stiffness) का अनुभव करता है, स्पाइजेलिया का रोगी आंख में दर्द के साथ यह अनुभव करता है कि आंख का गोलक छोटा है, आंख उस गोलक से बहुत बड़ी है, उसमें समा नहीं रही।
(7) वात-रोग से उत्पन्न होने वाले हृदय के रोग में (Cardiac trouble of Rheumatic origin) – जिनको ‘वात-रोग’ होता है, उन्हें कभी-कभी उसके साथ हृदय का रोग भी हो जाता है। वात-रोगियों के हृदय के रोग में हृदय की धड़कन होने लगती है, और यह धड़कन बायीं तरफ लेटने से ज्यादा अनुभव होती है, चित्त लेटने पर या उठकर बैठने पर कम हो जाती है। आगे झुकने से बढ़ जाती है। अगर वात-रोग से पीड़ित व्यक्ति में हृदय संबंधी उक्त-लक्षण पाये जायें, तो कैलमिया से हृदय का रोग भी जाता रहेगा।
(8) आतशक (सिफ़िलिस) से उत्पन्न होने वाले वात-रोगी के हृदय के रोग में – कभी-कभी ऐसा भी होता है कि वात-रोगी को जो हृदय का रोग हो जाता है उसके मूल में आतशक होता है। इस वात-रोगी को हृदय में टीस मारता हुआ, चुभने वाला दर्द होता है, छाती में दर्द महसूस होता है, नाड़ी अपने स्पन्दन में बीच-बीच में एक स्पन्दन छोड़ जाती है। रोगी का धमनी संस्थान या शिरा-संस्थान या हृदय के वॉल्व रोग से आक्रान्त हो जाते हैं। किसी तरह की तेज हरकत से, जीने पर चढ़ने-उतरने से दिल में धड़कन और घबराहट पैदा हो जाती है, रोगी हांफने लगता है, सांस तेज चलने लगता है। हृदय की धड़कन और हांफना, अर्थात् सांस तेज चलना – इन दो के साथ रोगी का वात-रोग (Rheumatism) से पीड़ित होना और रोग के मूल में आतशक होना-इस अवस्था में कैलमिया रोग की जड़ तक पहुंच कर उसे ठीक कर देता है। इन लक्षणों को ध्यान में रखते हुए चिकित्सक का ध्यान उन लक्षणों की तरफ भी जाना चाहिये जो रोगी की वात-प्रकृति को प्रकट करते हैं। वे लक्षण हैं: दर्द का चलना-फिरना, ऊपर से नीचे की तरफ जाना, कन्धों से अंगुलियों की तरफ जाना, कूल्हे से पैर की तरफ या मेरु-दंड में ऊपर से नीचे की तरफ जाना। अगर रोगी गोनोरिया से पीड़ित रहा हो, और उक्त-लक्षण पाये जायें, तब भी कैलमिया उपयुक्त औषधि है।
(9) आतशक के वाह्य-लेपों से दबकर हृदय-रोग को उत्पन्न कर देने पर – कभी-कभी पारे आदि द्वारा आतशक का रोग दबा दिया जाता है जिसके परिणामस्वरूप रोग त्वचा पर से दबकर हृदय में जा केन्द्रित होता है। रोगी को धड़कन शुरू हो जाती है, रोगी हांफने लगता है, उसे सांस चढ़ जाता है। यह औषधि गहराई में जाती है, दीर्घकालीन है, इसका असर देर तक रहता है। इस प्रकार की शिकायत को कैलमिया दूर कर देता है।
(10) रात को होने वाले हड्डियों के दर्द – यह सब-कोई जानते हैं कि आतशक का दर्द रात को बढ़ जाता है। यह औषधि सोरा, साइकोसिस तथा सिफ़िलिस तीनों के दोषों को दूर करती है। इन तीनों में से किसी भी ‘धातुगत दोष’ (Miasm) को दूर करने के लिये इस औषधि का उपयोग किया जा सकता है। इस औषधि के रोगी को रात को हड्डियों में दर्द के दौरे पड़ते हैं, घुटने के नीचे की हड्डी – शिन बोन – के आवरण में ऐसा दर्द होता है मानो आवरण को छील दिया गया हो। हड्डियों का दर्द रात के पहले हिस्से में होता है। सिफिलिस मानव का ऐसा शत्रु है जो रात को अपना प्रभाव दिखलाता है। गोनोरिया में रोगी के कष्ट सूर्य के उदय होने के साथ शुरू होते हैं, अस्त होने के साथ अस्त हो जाते हैं; सिफिलिस में रोग सूर्य के अस्त होने के साथ शुरू होते हैं, उदय होने के साथ अस्त हो जाते हैं।
(11) शक्ति तथा प्रकृति – ( निम्न-शक्ति; ‘सर्द’ – प्रकृति )