किडनी की पथरियाँ विभिन्न प्रकार की होती हैं । मैग्नीशियम फॉस्फेट से बनी पथरी का रंग सफेद या पीलापन युक्त होता है । यह पथरी मुलायम और आकार में अण्डाकार होती है। यह मूत्राशय में बना करती है । इस पथरी में मूत्र का स्वभाव क्षारीय होता है। इसीलिए इसकी चिकित्सा में रोगी को क्षारीय दवाएं नहीं दी जाती है।
टैबलेट अमोनियम क्लोराइड (कैरोटीन की कोट चढ़ाई गई) 460 मि.ग्रा दिन में तीन बार खिलाना लाभकारी है अथवा एसिड सोडियम फॉस्फेट 600 मि.ग्रा., पानी 15 मि.ग्रा. ऐसी एक मात्रा जल मिलाकर दिन में तीन बार दें। इसके मूत्र का स्वभाव मामूली अम्लीय रहता है।
नोट – इस पथरी के रोगी को कैल्शियम वाले भोजन जैसे – दूध, अण्डे, मछली, फल व हरी सब्जियां कम खिलायें । रोगी को पानी बहुत अधिक मात्रा में पिलायें ।
यूरिक एसिड की पथरी पूरी ‘लाली युक्त’ रंग की कठोर होती है। यदि मूत्र में यूरिक एसिड, यूरेनस और ऑक्जेलेट अधिक मात्रा में आते हों तो पोटेशियम स्टोरेट 1200 मि.ग्रा दिन में तीन बार काफी समय तक खिलायें । मैग्नेशियम के प्रयोग से भी यह पथरी बनने से रुक जाती है और पथरी के कण आपस में मिलने तथा चिपकने नहीं पाते । इसलिए इस प्रकार की पथरी के रोगी को नमकीन जुलाब जैसे ऐप्सम साल्ट अथवा मैग्नेशियम कार्बोनेट देना लाभकारी रहता है ।
यूरिक एसिड से बनी पथरियाँ क्षारीय मिश्रण में घुल जाती हैं। रोगी को यह पथरी होने पर मूत्र को क्षारीय बनाने के लिए 1800 मि.ग्रा. सोडा-बाई-कार्ब पानी के साथ दिन में 3-4 बार खिलाना चाहिए ।
ये पेटेण्ट दवाएँ यूरिक एसिड की पथरी तोड़कर निकालने हेतु उपयोगी हैं :-
अल्डाक्टोन Aldactone (अर्श) – 25 मि.ग्रा. की 2 से 4 गोलियाँ प्रतिदिन जल से दें ।
नोट – किडनी की क्षीणता, अमूत्रता (Anuria) तथा अति पोटेशियम अरक्तता में इस औषधि का प्रयोग न करें।
बिडुरेट Biduret Tablet (बिड्डल पावर) – 1-1 टिकिया प्रतिदिन खिलायें ।
नोट – गर्भावस्था, इस दवा के अति संवेदनशील रोगियों और अति पोटेशियम रक्तता में इस औषधि का प्रयोग न करें ।
डाइटाइड (एस्कायलैब) – एक टिकिया दिन में दो बार जल से दें ।
नोट – वृक्कपात, अति पोटेशियम रक्तता में इसका प्रयोग निषेध है।
अन्य औषधियाँ – लैसिक्स (हैक्स्ट), जाइपामिड, जी. आर. (जर्मन रेमेडीज), नोवामाक्स कैपसूल (सिपला), ग्रेबोमायसिन इन्जेक्शन (वाल्टर बुशनेल), जेण्टिसिन इन्जेक्शन (निकोलस), कानसिन इन्जेक्शन (एलेम्बिक), एम्पीसिलीन इन्जेक्शन व कैपसूल (मर्करी तथा अन्य अनेक कम्पनियां) पी. पी. एफ. इन्जेक्शन (फाईजर) इत्यादि को डॉक्टर का प्राप्त पत्रक भली-भाँति पढ़कर प्रयोग करें, सभी उपयोगी दवाएँ हैं ।
कैल्शियम ऑक्सलेट की पथरी का रंग काला और इसकी बनावट खुरदरी होती है । यह किडनी में बनती है । इस पथरी के रोगी को पालक, टमाटर, गोभी, प्याज, चाय और अंजीर न दें क्योंकि इनमें ऑक्जेलिक एसिड की मात्रा अधिक होती है।
विशेष नोट – मूत्र में लाल और सफेद रंग की रेत और छोटी-छोटी पथरियाँ निकलती है। लाल रेत यूरिक एसिड अथवा दूसरे नमकों-जिनको यूरेटस कहते हैं – की बनी होती हैं। मूत्र के रंग का प्रभाव भी इस रेत और कंकरियों पर पड़ता है। मूत्र ठण्डा पड़ जाने पर वे इस रेत में बैठ जाती हैं । यदि यह रेत मूत्र ठण्डा होने से पहले ही साफ-साफ दिखाई देने लग जाये तो ऐसे मनुष्यों को पथरी हो सकती है परन्तु यदि मूत्र को टेस्ट ट्यूब में गरम करने पर वह नजर न आये तो पथरी बनने का डर नहीं होता है । याद रखें कि रेत और कंकरियों के कारण भी किडनी में दर्द हो जाता है।
सफेद और पीलापन युक्त रेत नमक के कणों से बन जाती है। यह नमक आक्जेलेट ऑफ लाइम, फॉस्फेट ऑफ लाइम आदि रूप में होते हैं ।
लाल या गुलाबी रंग की रेत कई कारणों से आ सकती है । पीलापन लिए भूरे रंग की रेत और सर्दी लग जाना, जुकाम, आमाशय में अधिक खट्टास, अजीर्ण, यकृत और आमाशय के दूसरे विकारों से बहुत अधिक घी और शक्तिदायक भोजन खाने से आने लग जाती है । हल्के लाल रंग की रेत और जोड़ों के नये दर्द, छोटे जोड़ों के दर्द में आने लगती है तथा बार-बार मूत्र भी आने लगता है (परन्तु कई बार मूत्र सम्बन्धी भी कोई कष्ट नहीं होता है, रोगी को सिरदर्द और कमजोरी प्रतीत होती है।)
जब मूत्रमार्ग से बड़ी-बड़ी कंकड़ियां आ रही होती है तो कमर, जाँघों और अण्डकोषों में टीस होती है । पाँव में सुन्नपन प्रतीत होते हैं यानि सो जाते हैं। मूत्र करने की बार-बार इच्छा होती है तथा मूत्र करते समय दर्द होता है । पुरुषों में अण्डकोषों की गोलियाँ ऊपर चढ़ जाती हैं और बुखार सा प्रतीत होने लग जाता है उसको डॉक्टरी में रेत का दौरा कहा जाता है। कई बार बिना पता चले ही पीठ और चूतड़ों के पिछले भाग में तीव्र दर्द होने लग जाता है, जी मिचलाता है, कै आती है। धीरे-धीरे थोड़ा-थोड़ा बहुत तेज रंग की रक्त मिश्रित मूत्र आता है। कै करने के सख्त प्रयास करने पर रोगी को यकायक ऐसा दर्द प्रतीत होता है मानो – उसे चाकू मार दिया गया हो और फिर दर्द धीरे-धीरे कम हो जाता है । उपरोक्त लक्षण होने का अर्थ यह है कि जिस रोगी को लाल रेत आती है उसके किडनी से पथरी का कोई छोटा या बड़ा टुकड़ा निकलकर मूत्र प्रणाली से गुजर कर मूत्राशय की ओर आ रहा है । मूत्राश्य में यह पथरी काफी समय तक रह सकती है और धीरे-धीरे बड़ी भी हो सकती है। बहुत छोटी होने पर मूत्रमार्ग से मूत्र के साथ बाहर निकल जाती है । यदि पथरी बहुत बड़ी हो तो कोशिश करने के बाद भी वृक्क से नहीं निकल सकती। वह पथरी वृक्क में रहकर शोथ और पीड़ा उत्पन्न कर सकती है।
क्लोरल हाईड्रेट (Chloral Hydrate) 1.25 से 1.50 ग्राम की मात्रा में खिलाने से ऐंठन वाले तीव्र दर्द को आराम आ जाता है और रोगी को नींद आ जाती है । यदि दर्द दुबारा हो जाये तो इस दवा को 6 या 8 घण्टे बाद दोबारा दिया जा सकता है ।
लाल रंग की पथरी या रेत आती हो तो रोगी को केवल सब्जियाँ ही खिलायें। खाँड, कॉफी, चाय, पेस्ट्री, मक्खन, क्रीम आदि न दें । रोगी के मूत्र में खास दूर करने के लिए उसको क्षारीय दवायें दें (जब तक मूत्र का स्वभाव क्षारीय न हो जाये।)
योग – पोटैशियम बाइकार्बोनेट 6 ग्राम को 240 डिस्टिल्ड वाटर में घोलकर रख लें। इसमें से 2 बड़े चम्मच दिन में तीन बार भोजन से तीन घण्टे बाद देते रहें ।
सफेद या पीली रेत और पथरी आने पर मूत्र क्षारीय या न्यूट्रल होता है । ऐसी अवस्था में रोगी को 20 बूंद डाल्यूट नाइट्रिक एसिड देना लाभकारी रहता है।