शुद्धता की पहचान – पिसी हुई लालमिर्च में लकड़ी का बुरादा व रंग मिला होता है। एक चम्मच पिसी हुई लालमिर्च एक कप पानी में घोलें। इससे पानी रंगीन हो जायेगा और बुरादा पानी में तैरने लगेगा। पिसी हुई लालमिर्च में थोड़ा-सा नमक या तेल मिलाकर रखें, मिर्च खराब नहीं होगी।
आँख दुखना – आँखें दुखने पर लालमिर्च पीसकर, थोड़ा-सा पानी मिलाकर लुगदी बना लें। जिस ओर अाँख दुख रही हो उस पैर के अंगूठे के नाखून पर मिर्ची का लेप करें। यदि दोनों आँखें दु:ख रही हों तो दोनों अंगूठों के नाखूनों पर लेप करें।
पागल कुत्ते द्वारा काटा जाना – लालमिर्च पीसकर खाने में काम आने वाले तेल में मिलाकर कुत्ते द्वारा काटे घाव पर लगा दें। इससे कुत्ते के दाँत का विष नष्ट हो जाता है।
पागल कुत्ता काटने पर काटे हुए अंग पर लालमिर्च पीसकर लगाने से लाभ होता है। इससे विष नष्ट होकर घाव अच्छा हो जाता है।
पागल कुत्ते के काटने पर लाल मिर्चों का लेप करने की विधि गाँवों में तो प्रचलित है ही, अब इसके वैज्ञानिक परीक्षण से भी उपयोगिता सिद्ध हो गई है। यह लेप लगाने से बहुत पसीना आता है, जिसमें लार बह जाती है।
सर्प-दंश – सर्प के काटने पर लालमिर्च खाने पर कड़वी नहीं लगती। इससे सर्पकाटे की पहचान कर सकते हैं।
फोड़े-फुसियों पर लालमिर्च तेल में पीसकर लगायें।
अकोता, दाद, शोथ, खुजली और त्वचा के रोगों में लालमिर्च का तेल लगाना लाभदायक है। वर्षा में होने वाली फुंसियों पर लगाने से अधिक लाभ होता है। लालमिर्च 125 ग्राम, सरसों का तेल 375 ग्राम दोनों को गर्म करके अच्छी तरह उबलने पर छान लें। यह लालमिर्च का तेल है। यह हड्डी पर लगी चोट के दर्द में भी लाभ करता है।
बिच्छू काटे स्थान पर लालमिर्च पीसकर लगाने से ठण्डक पड़ जाती है।
पेट दर्द हो तो पिसी हुई लालमिर्च गुड़ में मिलाकर खाने से लाभ होता है।
पानी के दोष – देशाटन करते समय जगह-जगह जाना पड़ता है और वहाँ गंदा पानी पीने में आता है। लालमिर्च की चटनी घी में छौंककर नित्य खाने से पानी के दुष्प्रभाव नष्ट हो जाते हैं। मिर्चों में विटामिन ‘ए’ और ‘सी’ भरपूर होते हैं। इनमें टोकोफेरोल अथवा विटामिन ‘ई’ भी होते हैं। लालमिर्च विटामिन ‘सी’ का बहुत अच्छा स्रोत है। कटिवेदना, तंत्रिकाएँ (न्यूरेल्जिया) और रूमेटिक गड़बड़ियों में मिर्च के व्यंजन प्रति-उत्तेजक के रूप में दिए जाते हैं। इन्हें खाने पर टॉनिक का-सा प्रभाव होता है। लेकिन अंधाधुंध खाने पर जठर-अांत्रशोथ हो सकता है।
भोजन के साथ खाने पर मिर्चें हमारी स्वाद-कलिकाओं को उद्दीप्त करती हैं और लार के प्रवाह को प्रेरित करती हैं, जो मंड वाले अथवा धान्य खाद्य-पदार्थों के पाचन में सहायक होता है। सलाद के साथ ताजे रूप में लेने पर ये विटामिन सम्पूरक का काम करती हैं क्योंकि इनमें विटामिन ‘ए’ और विटामिन ‘सी’ बहुत होते हैं। पकी, सूखी अथवा पिसी मिर्चों की तुलना में हरी मिर्चें पौष्टिक होती हैं। ‘शिमला मिर्च’ में विटामिन ‘सी’ विशेष रूप से अधिक होता है। मिर्च से रतौंधी की रोक में सहायता मिलती है।
हानियाँ – कुछ लोगों में गर्म व मसालेदार खाद्य पदार्थ, जिनमें कि काफी अधिक मिर्चे हों, उत्तेजना और अम्लीय जठर रसों का स्रवण (प्रवाह) कर सकते हैं, जिनसे जठर-व्रण (Peptic Ulcer) पनप सकते हैं और जिनके कारण ऊपरी मध्य उदर में दर्द और बेचैनी होने लगती है। ऐसे लोगों को मसालेदार भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे स्थिति बहुत बिगड़ सकती है।
होम्योपैथी में लालमिर्च से बनी औषधि कैप्सिकम न्युअम (Capsicum annuum) है। इसके मदर टिंचर के निम्न लाभ हैं-
1. हैजे के रोगी को दस-दस बूँद एक चम्मच पानी में हर आधे घण्टे से देने से लाभ होता है।
2. अधिक नींद आने पर पाँच-पाँच बूँद सुबह-शाम एक चम्मच पानी में मिलाकर पिलायें।
3. कफ वाली खाँसी में पाँच-पाँच बूँद गर्म पानी में तीन बार पिलायें।
4. भूख की कमी होने पर 5-5 बूँद पानी में मिलाकर भोजन से पहले पिलायें।
5. मिरगी, हिस्टीरिया और पागलपन के दौरे, बेहोशी में कुछ बूँदें नाक में डालने से होश आ जाता है।
सावधानी – बवासीर होने पर मिर्च न खायें।
हरीमिर्च के फायदे
हरीमिर्च की डंडियाँ तोड़ देने से वे कई दिनों तक खराब नहीं होतीं। मिर्च में एंटीऑक्सीडेंट्स नामक कुछ ऐसे तत्व होते हैं जो कैंसर की रोकथाम करते हैं। मिर्च में विटामिन-‘सी’ भी होता है। 1 ताजी हरीमिर्च 1 नारंगी के बराबर होती है।
मलेरिया – एक हरीमिर्च के बीज निकालकर, बीजरहित खोले को मलेरिया आने के दो घण्टे पहले अँगूठे में पहनाकर बाँध दें। इस तरह दो-तीन बार बाँधने से मलेरिया बुखार आना बन्द हो जाता है।
जलना – जले हुए पर हरीमिर्च पानी डालकर पीसकर लेप करें। लाभ होगा।
मोटापा – भोजन में नित्य हरीमिर्च खाने से मोटापा कम होता है।