• मनोरोगों का एक मुख्य कारण तनाव है। आज के इस भाग-दौड़ और चकाचौंध वाले समाज में तनाव एक तरह से रच-बस गया है और अनेकानेक रोगों की उत्पत्ति का कारण है।
• बचपन में मां-बाप का प्यार न मिलना किसी विकलांगता की वजह से तिरस्कार का पात्र बनना, इम्तहान में फेल हो जाना, अकारण पिटाई होना, पैदाइशी दिमागी कमजोरी अथवा किसी दुर्घटनावश कोई व्यक्ति किसी भी उम्र में मनोरोग का शिकार हो सकता है।
मानसिक रोग के लक्षण
1. आवाज में हकलाहट। आंखें जल्दी-जल्दी झपकना। एक ही वस्तु के दो चित्र दिखाई देना, नींद न आना, बेचैनी रहना, मतिभ्रम, सुस्ती, व्यग्रता (गड़बड़ी), भय, अविश्वास आदि रहना। शरीर का अपना संतुलन गड़बड़ा जाने से, विटामिनों की कमी होने से, शारीरिक बीमारी जैसे व्यापक होने, दिमागी बीमारी होने, दिल अथवा सांस की न्यूनता की स्थिति में अथवा मादक दवाओं के अधिक सेवन के बाद परिलक्षित होते हैं।
2. शरीर में शर्करा की कमी, दिमाग में ट्यूमर बन जाना। कार्बन मोनोक्साइड गैस के विष की वजह से, थायराइड ग्रंथि की निष्क्रियता की वजह से, जिससे होंठ सूज जाते हैं और नाक मोटी हो जाती है आदि की वजह से मनोरोग परिलक्षित होते हैं। इसमें याददाश्त लगभग समाप्त हो जाती है, समय और दिन का ध्यान नहीं रहता। भावनात्मक अंकुश नहीं रह पाता एवं चिड़चिड़ा और मारपीट करने वाला बन जाता है, नंगा हो जाता है। चित अशांत रहता है। अभी तक मरीज ठीक है और फिर अचानक चीखने लगता है। फिर रोने लगता है और फिर गहन उदासी में डूब जाता है।
3. मतिभ्रम रहने लगता है। अपनी सफाई का ध्यान नहीं रखता, खाना खाने में परेशानी होती है। गले में दर्द होने लगता है। बाद की अवस्था में शरीर के मूवमेंट्स (चलने-फिरने की प्रक्रिया) भी बाधित होने लगती है। इन्द्रियों के कार्य क्षीण होने लगते हैं एवं शरीर के एक हिस्से में पक्षपात भी हो सकता है। सोचने-समझने में अस्त-व्यस्तता रहती है।
4. कई बार पागलपन वंशानुगत भी हो सकता है।
5. समाज-विरोधी कार्य करने लगते हैं। सेक्स संबंधी अश्लील हरकतें करने लगते हैं। व्यवहार रूखा , कठोर व भावनाविहीन हो जाता है।
6. अकेलापन, उदासी में डूबे रहना, बोलचाल बंद या निरंतर बिना बात बोलते रहना।
मानसिक रोग का होम्योपैथिक उपचार
होमियोपैथिक दवाएं तो मानसिक लक्षणों पर सर्वोतम कार्य करती हैं। यदि कोई भी परेशानी रोगी को हो और कोई विशेष मानसिक लक्षण किसी दवा विशेष का उस रोगी में परिलक्षित हो जाए, तो उसी लक्षण के आधार पर दवा अत्यंत कारगर साबित होती है। होमियोपैथी के आविष्कारक एवं मूर्धन्य विद्वान डॉ. हैनीमैन ने तो अपने समय में जर्मनी में होमियोपैथिक औषधियों से मनोरोगियों का इलाज करने के लिए अलग से एसाइलम (पागलखाने) खोले हुए थे। प्रमुख होमियोपैथिक औषधियां निम्न प्रकार हैं –
‘बेलाडोना’, ‘हायोसाइमस’, ‘स्ट्रामोनियम’, ‘लेकेसिस’, ‘वेरेट्रम एल्बम’, ‘नेट्रमम्यूर’, ‘इग्नेशिया’ एवं ‘कॉस्टिकम’ आदि।
बेलाडोनाः मरीज अपनी काल्पनिक दुनिया में रहता है, मतिभ्रम हो जाता है, भूत-प्रेत और डरावने चेहरे दिखाई देने लगते हैं। अचेतन अवस्था में सब कुछ छोड़कर भाग जाना चाहता है। बातचीत नहीं करना चाहता। आंखों में आंसू भरेरहते हैं। सभी इन्द्रियों (चेतना) की तीक्ष्णता व चित्त की परिवर्तनीयता बनी रहती है। बेचैनी और भय बना रहता है, सिरदर्द भयंकर, चेहरा लाल, सूजा हुआ, श्लेष्मा झिल्लियां सूखी हुई आदि लक्षण मिलने पर 200 एवं 1000 शक्ति की दवा जल्दी-जल्दी देनी चाहिए।
हायोसाइमस: लड़ाई-झगड़ा करने वाला, शक्कीस्वभाव, अत्यधिक बोलना, अश्लील बातें और कार्य, ईष्र्यालु, मंदबुद्धि, हर बात पर हँसने की आदत, धीमी, हकलाती हुई आवाज, पेशाब निकल जाना। अत्यधिक कमजोरी, रात में और खाना खाने के बाद परेशानी बढ़ जाती है,तो उक्त दवा 200 एवं 1000 शक्ति में देने से रोगी को फायदा होता है। रोगी को सेक्सुअल पागलपन होता है।
स्ट्रामोनियमः बिना रुके धार्मिकता पर बयान देना, अत्यधिक पूजा-पाठ करने वाला गंभीर रोगी, कभी हँसना, कभी गाना, कभी प्रार्थना करना (लक्षण जल्दी-जल्दी बदलते रहते हैं), भूत-प्रेत देखना, डरावनी आवाजें सुनाई पड़ना, हवा से बातें करना। हँसी-खुशी से अचानक दुखी हो जाना, मारने-पीटने पर उतारू, अपने बारे में मतिभ्रम सोचता है, जैसे मैं बहुत लम्बा हूं, दोहरा हो गया हूं या मेरे शरीर का कोई हिस्सा खो गया है। आध्यात्मिक, धार्मिक पागलपन, अकेलापन और अंधकार बर्दाश्त नहीं कर सकता। उजाले में सभी के साथ रहना चाहता है अथवा चमकदार वस्तु को देखने पर शरीर ऐंठने लगता है, भय लगता है, चित्त भ्रम और भागने की इच्छा रहती है, छोटी वस्तुएं भी बहुत बड़ी दिखाई देती हैं, हाथ हमेशा जननांगों पर ही रहते हैं। ऐसी स्थिति में 200 एवं 1000 तक की शक्ति में दवा अत्यंत फायदेमंद रहती है। इसमें रोगी कपड़े वगैरह फाड़ने लगता है।
यदि चेहरा पीला, आंखें धसी हई और चेहरा भद्दा दिखाई दे, रोगी अश्लील एवं धार्मिक बातें और कामुक बातें करे, तो ‘वैरैट्रम एल्बम‘ दवा देनी चाहिए।
यदि रोगी उदास रहे और हमेशा निराशावादी दृष्टिकोण अपनाते हुए किसी भी चीज के बुरे पक्ष के बारे में ही सोचे, तो ‘कॉस्टिकम’ दवा उत्तम औषधि है।
यदि लगातार दुखी रहने, किसी संताप अथवा शोक की वजह से पागलपन हो, तो ‘इग्नेशिया‘ एवं ‘कॉस्टिकम‘ उपयोगी है।
लाभदायक होमियोपैथिक टिप्स
जिन्हें हर वर्ष खांसी बढ़ जाती हो, उनके लिए – एंटिम सल्फ
बच्चों की खांसी, जब कफ जमी हुई हो और कफ न निकल पाती हो एवं बच्चा हमेशा टहलना चाहता हो, तब – एंटिम टार्ट
आंख, नाक, मुंह और कानों के सूजन में – मेडूसा
आंखों के ऊपरी पलक के फूल जाने पर – कैली कार्ब
आंख के चारों ओर तथा दोनों पलकों की सूजन होने पर – फॉस्फोरस