सामान्य मासिक धर्म: मासिक स्राव वास्तव में रक्तमिस्रित ऊतकों का स्राव है, जो सामान्यतया नियमित अंतराल पर गर्भाशय से निकलता है। यदि विशेष समय में एक निषेचित अण्डा गर्भाशय में नहीं पहुंचता, तो गर्भाशय की भीतरी झिल्ली का कुछ भाग निकल जाता है। इस तरह एक नया मासिक चक्र शुरू हो जाता है। मासिक चक्र सामान्य रूप से अट्ठाइस दिन का होना चाहिए। रक्त स्राव प्रारंभ होने के दिन को पहला दिन गिना जाता है। चार-पांच दिन तक रक्त स्राव होना चाहिए। अट्ठाइस दिन से सात दिन ज्यादा या कम भी नार्मल मासिक चक्र माना जाता है। प्राय: मासिक धर्म तेरह-चौदह वर्ष की आयु में शुरू होता है। इसे रजस्वला होना कहा जाता है। वैसे यह परिवार पर भी निर्भर करता है।
मासिक अनियमितता : यदि मासिक के दौरान रक्त स्राव ज्यादा या कम हो, मासिक जल्दी-जल्दी आए या मासिक चक्र के बीच में रक्त स्राव हो, तो इसे मासिक अनियमितता कहते हैं। यदि नौ वर्ष से पहले मासिक धर्म शुरू हो जाता है, तो चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।
अधिक रक्त स्राव : रक्त स्राव ज्यादा होने के प्रमुख कारण एंडोमैट्रियोसिस, फ्राइब्रायड (ट्यूमर), सूजन (पेल्विक इन्फ्लेमेट्री डिजीज या पी. आई. डी.) हो सकते हैं। गर्भ समापन के बाद तीन-चार महीने तक महीना ज्यादा हो सकता है। रक्त स्राव अधिक होने पर स्त्री रोग विशेषज्ञा को दिखाना चाहिए। ऐसी स्थिति में अल्ट्रा-साउण्ड द्वारा देख सकते हैं कि कोई ट्यूमर तो नहीं। एंडोमैट्रियोसिस का पता भी चल जाता है। शल्यक्रिया द्वारा इलाज किया जा सकता है। अंदरूनी परीक्षण से यदि पता चला कि सूजन है, तो वह दवा से ठीक हो सकती है।
रजस्वला (मीनाकीं) या मासिक धर्म शुरू होने के चार-पांच साल तक या रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज) या मासिक धर्म बंद होने के चार-पांच साल पहले शरीर में हारमोन्स के असंतुलन की वजह से भी रक्त स्राव अधिक हो सकता है। इस दशा में डी एण्ड सी या सफाई करने से 50 प्रतिशत महिलाओं को आराम मिल जाता है।
कुछ मामलों में कॉपर-टी लगाने के बाद एक-दो माह तक मासिक स्राव ज्यादा हो सकता है। डॉक्टर से सलाह लेकर दवा ली जाए, तो तुरंत आराम मिल सकता है।
कम मासिक स्राव : यदि मासिक धर्म में रक्त स्राव कम होता है, तो उसका महत्त्व तब बढ़ जाता है, जब महिला को कोई संतान न हो। जांच से यह परीक्षण करना बहुत जरूरी है कि अण्डा बनता है या नहीं। इसके लिए एंडोमेट्रियल बायप्सी (ई.बी.) की जाती है, जिससे कारण का पता चल जाता है। यदि ओव्यूलेशन हो रहा है, तो चिंता नहीं करनी चाहिए, दवा से इलाज करके ओव्यूलेशन कराया जा सकता है। यदि ई.बी.की हिस्टोपैथालजिकल रिपोर्ट में ट्यूबरकुलर एंडोमेट्राइसिस आती है, तो उसका भी इलाज हो सकता है। यदि महीना बिलकुल नहीं आता, तो विशेष जांच करवानी पड़ती है, जिससे यह पता लगाना पड़ता है कि अण्डाशय, गर्भाशय या पिट्यूटरी ग्रंथि में क्या कमी है।
जब मासिक धर्म अनियमित हो जाता है, तो चिकित्सक को दिखाना बहत जरूरी हो जाता है। पॉलिप या छोटी गांठ भी हो सकती है, जिसे शल्यक्रिया द्वारा निकालने से आराम मिल जाता है। बच्चेदानी के मुंह पर जख्म या बच्चेदानी का बाहर निकलना और उस पर घाव, जिसे ‘प्रौलैप्स विथ डेक्यूबिट्स अल्सर’ कहते हैं, अनियमित मासिक धर्म का कारण हो सकते हैं। इस समय आवश्यक हो जाता है कि डॉक्टरी जांच से देख लिया जाए कि कैंसर की शुरुआत तो नहीं है।
यदि आपकी बेटी को मासिक धर्म से पहले दर्द होता है, तो उसे सलाह दें कि स्कूल जरूर जाए, खान-पान में ध्यान दें, कब्ज न हो। बाहरी गतिविधियां बढ़ा दे, क्योंकि ज्यादा काम करने से दर्द ठीक हो जाता है। प्राय: लड़कियां इस समय छुट्टी लेकर आराम करती हैं, जिससे दर्द बढ़ जाता है। आयरन, कैल्शियम की गोलियां दे सकती हैं। यदि दर्द असहनीय हो और रक्त स्राव भी अधिक हो, तो चिकित्सक से संपर्क करें।
एक और खास किस्म का दर्द होता है, जिसे मैम्बरेन डिस्मैनोरिया कहते हैं। यह दर्द एक. झिल्ली निकलने के बाद बंद हो जाता है। इस झिल्ली की जांच करने से पता लगता है कि बच्चेदानी के अंदर की झिल्ली एक साथ तो नहीं बाहर आ गई है। अक्सर हर महीने रक्त् स्राव के साथ इस झिल्ली का थोड़ा-थोड़ा अंश बाहर आता है। इस कारण जो दर्द होता है वह झिल्ली निकलने के बाद अपने आप ही ठीक हो जाता है। यदि मां में यह तकलीफ है, तो प्राय: बेटी में भी पायी जा सकती है।
ओव्यूलेटरी पेन : कभी-कभी मासिक चक्र के बीचो बीच यानी मिड साइकिल में दर्द होता है। इसे मिट्ल शिमर्ज कहते हैं। यह दर्द ओव्यूलेशन के कारण होता है। दवा लेने से फायदा हो सकता है।
मासिक धर्म का होमियोपैथिक दवा
नक्सवोमिका : इसके कुछ लक्षण पल्स के लक्षणों के विपरीत हैं। दुबला-पतला शरीर, क्रोधी, झगड़ालू, उग्र स्वाभाव, चिड़चिड़ापन, मेहनती, काम में लगी रहने वाली, तनाव से ग्रस्त रहने वाली महिला को मासिक स्राव जल्दी-जल्दी होता हो, देर तक होता रहे, ज्यादा मात्रा में हो, ठण्ड या ठण्डी हवा से रोग बढ़ता हो, तो ‘नक्सवोमिका’ 30 शक्ति की 5-6 गोली दिन में 3 बार लेनी चाहिए।
मैगफॉस : ऋतु स्राव के समय दर्द होता हो और पेट दबाने से या सेंक करने से आराम मिलता हो, तो मैगफॉस 30 शक्ति की 5-6 गोलियां चूसनी चाहिए। दर्द में लाभ न हो, तो दो घण्टे बाद फिर एक खुराक ले सकते हैं। दर्द दूर करने वाली यह श्रेष्ठ दवा है।
सीपिया : यह दवा दुबले-पतले शरीर वाली, लम्बे कद की, नाक और गालों पर झाई के दाग हों, कामकाज में रुचि न हो, उदासीन, विरक्त, दु:खी, अधीर, निराश, हतोत्साह, किसी से भी मोह न हो, गर्भाशय खिसकता-सा अनुभव करें, जैसे बाहर निकल पड़ेगा, गुदाद्वार में कुछ अड़ा हुआ-सा लगे, कब्ज हो, ठण्ड से रोग बढ़े, मासिक धर्म में रुकावट हो, मात्रा में कमी हो या देरी से हो, तो ‘सीपिया’ 30 शक्ति की 5-6 गोलियां दिन में 3 बार चूसनी चाहिए।
ग्रेफाइटिस : यदि महिला मोटी-ताजी और चर्बीयुक्त शरीर वाली हो, पल्सेटिला के गुण वाली हो, पर किसी त्वचा रोग से भी ग्रस्त हो, शीत प्रकृति वाली हो, शंकाग्रस्त रहती हो और अनियमित मासिक धर्म होता हो, देर से तथा कम मात्रा में होता हो, नियत समय पर न होता हो, पीले रंग वाला, पतला और हल्का पानी जैसा होता हो, तो ‘ग्रेफाइटिस’ 30 शक्ति की 5-6 गोलियां दिन में 3 बार चूसकर सेवन करनी चाहिए।
कैमोमिला : स्त्री का स्वभाव चिड़चिड़ा, क्रोधी और रूखा हो, बच्चों को डांटती-डपटती रहती हो, जरा-सी बात पर भड़क उठती हो और ऐसे स्वभाव की महिला को काले रंग का, थक्केदार टुकड़ों वाला ऋतु स्राव भारी मात्रा में होता हो, ऋतु स्राव के समय दर्द भी होता हो, तो ‘कैमोमिला’ 30 शक्ति की 5-6 गोलियां दिन में 3 बार लेनी चाहिए।
हेमेमिलिस : बहत ज्यादा मात्रा में रक्त स्राव होना, स्राव का रंग काला होना, स्राव के साथ टुकड़े गिरना आदि लक्षणों पर किसी भी प्रकृति की महिला को ‘हेमेमिलिस’ के मदर टिंचर (मूल अर्क) या 6 शक्ति के टिंचर की 5-6 बूंद 2 बड़े चम्मच भर पानी में घोल कर 15-15 मिनट से 3-4 बार देने पर रक्त स्राव पर नियंत्रण हो जाता है।
थ्लेस्पी बसf पेस्टोरिस : जब किसी महिला को भारी मात्रा में रक्त स्राव हो, रुक-रुक कर हो, पर बन्द न होता हो, बहुत कष्ट और शूल के साथ हो, महिला की हालत संभल न रही हो, कमजोरी बढ़ रही हो, पेट में काट-सी चलती हो, तो ‘थ्लेस्पी बसf पेस्टोरिस’ के मूल अर्क की 10-10 बूंद आधा कप पानी में घोलकर दिन में 3 बार देने से आराम होता है।
इपिकॉक : मासिक स्राव ज्यादा मात्रा में हो रहा हो और स्राव का रंग चमकीला लाल रंग वाला हो, जी मतली करता हो, सांस में भारीपन हो (या महिला दमा रोग से ग्रस्त हो), रहर-हकर ऋतु स्राव बढ़ जाता हो, गर्मी से रोग बढ़े और ठण्डी खुली हवा से आराम मालूम दे, तो ‘इपिकॉक’ 30 शक्ति 5-6 गोलियां दिन में 3 बार चूसनी चाहिए।
पल्सेटिला : यह दवा महिलाओं की मित्र-औषधि मानी जाती है, क्योंकि इस दवा के अधिकांश लक्षण नारियों के गुणों से मिलते-जुलते हैं। इसलिए जिन पुरुषों में भी ये गुण पाये जाते हैं, उनके लिए भी पल्सेटिला उपयोगी सिद्ध होती है। लज्जा, नम्रता, सौम्यता, कोमलता, मृदुलता, अधीरता, व्याकुलता आदि पल्सेटिला के मानसिक गुण हैं। मोटापा, मांसलता, गुदगुदापन इसके शारीरिक लक्षण हैं। खुली हवा पसन्द करना, बन्द कमरे में परेशानी अनुभव करना, गर्मी से परेशानी और शीतलता से राहत होना, भूख-प्यास कम लगना, सहानुभूति मिलने या रो लेने से अच्छा अदूभव करता आदि पल्सेटिल के स्वभावगत लक्षण हैं। जो युवती या महिला मानसिक, शारीरिक और स्वभाव की दृष्टि से ऐसे लक्षणों वाली हो और उसका मासिक ऋतु स्राव अनियमित हो, ऋतु साव के समय दर्द हो, दर्द के समय ठण्ड लगे, दर्द का स्थान बदलता रहता हो और ऋतु स्राव के प्रारंभ मध्यकाल या अन्त में दर्द होता हो, कभी कम व कभी ज्यादा मात्रा में होता हो, कभी जल्दी व कभी देर से होता हो यानी हर दृष्टि से जब मासिक ऋतु स्राव अनियमित हो और दर्द भी हो, तो ‘पल्सेटिला’ 30 शक्ति में 5-6 गोलियां सुबह-दोपहर-शाम चूस लेनी चाहिए।
साइक्लामेन : पल्सेटिला के लक्षणों वाली महिला को यदि प्यास खूब लगती हो, खुली हवा पसन्द न हो, रोने से जी हल्का होता हो, एकान्त पसन्द करती हो, आत्मग्लानि का अनुभव करती हो, ऋतु स्राव के समय चक्कर आते हों, दुःखी, निराश और उदास रहे, मासिक धर्म के समय दर्द होता हो, तो इन लक्षणों वाली महिला को मासिक धर्म की अनियमितता दूर करने के लिए साइक्लामेन 30 दिन में 3 बार लेनी चाहिए।
• यदि माहवारी कच्ची उम्र (13 वर्ष की उम्र से पूर्व) में ही होने लगे – ‘कैल्केरिया कार्ब’ 200, ‘सबाइना’ 30
• रक्तहीनता के कारण माहवारी थम जाए – ‘कालीकार्ब’ 30, ‘सेनेगा’ 30
• गुस्से के कारण (क्रोधी स्वभाव) माहवारी रुक जाए – ‘कैमोमिला’ 30
• ठंडे पानी में काम करने या ठंड लगने से माहवारी रुक जाए – ‘एकोनाइट’ 30, ‘डल्कामारा’ 30, ‘रसटॉक्स’ 30
• प्रेम निराशा के कारण माहवारी रुक जाए – ‘हेलेबोरस’ 30
• दमा रोग के साथ माहवारी थम जाए – ‘रेचोंजिज’ मूल अर्क
• सिरदर्द एवं सिर में रक्त संचय के कारण माहवारी रुकने पर – ‘बेलाडोना’ 30, ‘ग्लोनाइन’ 30
• पागलपन की स्थिति में माहवारी रुकने पर – ‘स्ट्रामोनियम’ 30
• माहवारी रुकने पर छाती में जकड़न – ‘क्यूप्रममेट’
• पीलिया होने पर माहवारी रुकना – ‘चिओनेंथस’ मूल अर्क
• चेहरे एवं सिर में दर्द (नाड़ी शूल) रहने पर यदि माहवारी रुके – ‘जेलसीमियम’ 30
• यदि माहवारी का रक्त जननांगों की चमड़ी उधेड़ दे – ‘कालीकार्ब’ 30, ‘नाइट्रिक एसिड’ 200,”रसटॉक्स’ 30
• लाल चमकदार रक्त आने पर – ‘एरिजेरान’ मूल अर्क, ‘मिलिफोलियम’ मूल अर्क, ‘ट्रोलियम’ मूल अर्क, ‘इपिकॉक’ 30
• यदि माहवारी के रक्त का रंग बदलता रहे – ‘ पल्सेटिला’ 30
• काला रक्त रहने पर – ‘सिनकोना’ मूल अर्क, ‘कालीम्यूर’ 30, ‘थ्लेस्पी बर्सा’, ‘हेमेमिलिस’ मूल अर्क, ‘सैबैइना’ 30
• माहवारी में गर्म रक्त बहे – ‘बेलाडोना’ 30
• यदि झिल्लीयुक्त रक्त के कतरे माहवारी में आएं – नाइट्रिक एसिड ‘200, ‘साइक्लामेन’ 30, ‘फेरममेट’ 30, ‘हेमेमिलिस’ मूल अर्क
• गाढ़ा रालनुमा (गहरा काला) रक्त माइवारी में – ‘क्रोकस’30, ‘मैगकार्ब’ 30, ‘प्लेटिना’ 30
• माहवारी के समय पेट फूल जाने पर – ‘सिनकोना ’30, ‘कावयुलस’ 30
• मलद्वार में दर्द – ‘म्यूरियाटिक एसिड’ 30
• माहवारी के समय स्तनों में सूजन, दर्द – ‘फाइटोलक्का’ 200, ‘कोनियम’ 30, ‘लेककैन’ 30, ‘म्यूरेक्स’ 30, ‘हेलोनियास’ मूल अर्क
• माहवारी के समय हैजा होना – ‘अमोनकार्ब’ 30
• माहवारी के समय कब्ज रहना – ‘ग्रेफाइटिस ’30, ‘प्लम्बम’ 30, ‘साइलेशिया’ 30
• खांसी रहने पर – ‘ग्रेफाइटिस’ 30, ‘सल्फर’ 30
• बहरापन, कानों में आवाज – ‘क्रियोजोट’ 30
• दस्त होने पर – ‘अमोनमूर’ 30, ‘बोविस्टा’ 30, ‘वेरेट्रम एल्बम’ 30, ‘पल्सेटिला’ 30
• माहवारी के समय नक्सीर छूटने पर -‘ब्रायोनिया’ 30
• मुंह धोने पर नक्सीर छूटना – ‘अमोनकार्ब’ 30
• शरीर पर फफोले होना – ‘डल्कामारा’ 30, ‘बेलाडोना’ 30, ‘ग्रेफाइटिस’ 30, ‘मेडोराइनम’ 200.
• सिरदर्द (माहवारी के समय) – ‘बेलाडोना’ 30, ‘फेरमफॉस’ 6x,‘सैग्युनेरिया’30, ‘ग्लोनाइन’ 30
• हृदय की धड़कन बढ़ जाना – ‘कैक्टस’ 6 x, ‘लीथियमकार्ब’ 30
• माहवारी के समय चिड़चिड़ापन – ‘कैमोमिला’ 30, ‘नक्सवोम’ 30
• दौरे पड़ना -‘सिमिसीफ्यूगा’ 30, ‘मैगमूर’ 30, ‘इग्नेशिया’ 200
• माहवारी के साथ प्रदर रहना – ‘कैल्केरिया कार्ब’ 200 एवं ‘नेट्रमम्यूर’ 30
• माहवारी के समय, सुबह के वक्त उल्टी महसूस होना, बीमार लगना – ‘इपिकॉक’ 30
• माहवारी के समय बेचैनी – ‘लेकेसिस’ 200, ‘एकोनाइट’ 30, ‘कैमोमिला’ 30, ‘मैगफॉस’ 30
• पेट दर्द रहना – ‘कॉलोफाइलम’, ‘कॉफिया’, ‘कोलोसिंथ’, ‘मैगफॉस’, ‘नक्स’ आदि।
• दर्द जांघों तक जाए – ‘कॉलोफाइलम’ 30, ‘सिमिसीफ्यूगा’ 30, ‘सीपिया’ 30
• दर्द, पीछे पीठ तक जाए – ‘बोरैक्स’ 30, ‘सीपिया’ 30, ‘हेलोनियास’ मूल अर्क, ‘सेनेशियो’ मूल अर्क
• माहवारी के समय दुखी रहना – ‘नेट्रमम्यूर’ 200, ‘पल्सेटिला’ 30
• गले में दुखन (माहवारी के समय) – ‘लेककैनाइनम’ 200, ‘मैगकार्ब’ 30
• दांत में दर्द – ‘पल्सेटिला’ 30, ‘क्रियोजोट’ 30
• पेशाब की परेशानियां – ‘कॅथेरिस’ 30, ‘सेनेशियो’ मूल अर्क
• कमजोरी रहना – ‘सिनकोना’ मूल अर्क, ‘काक्युलस’ 30, ‘फेरममेट 30, ‘हेलोनियास’ मूल अर्क
• यदि माहवारी एवं अन्य स्रावों के बाद किसी भी परेशानी में आराम महसूस हो तो – ‘लेकेसिस’ 200 की एक खुराक एवं ‘मैगफॉस’ 30 या ‘जिंकम’ एवं ‘साइक्लामेन’ 30 |