मोतियाबिंद : हम सभी जानते हैं कि आंख एक कैमरे के समान है। जिसप्रकार कैमरे में शक्तिशाली लेंस होल है, जो बाहरी वस्तु से आने वाले प्रकाश को सकेन्द्रित करके उस वस्तु का फोटोग्राही प्लेट पर फोटो बना देता है, उसी प्रकार आंख में भी शक्तिशाली पारदर्शक लेंस होता है, जो आंख की संवेदनशील परत रेटिना पर बाहरी वस्तु का चित्र बनाने में सहायता करता है, जहां से आंख की तंत्रिका नेत्र इसे दिमाग तक पहुंचती है। इस प्रकार जो कुछ हमारी आंखें देखती हैं, उसका हमारे सामने चित्र बन जाता है।
यह लेंस जब किसी कारण से अपनी पारदर्शिता खो बैठता है और अपारदर्शी हो जाता है, तो उसे मोतियाबिंद कहते हैं। लेंस के अपारदर्शी हो जाने की प्रक्रिया की तुलना दूध के दही बनने की प्रक्रिया से की जा सकती है। जिस प्रकार दूध से दही बनने पर फिर से दूध में नहीं बदला जा सकता, उसी प्रकार जब लेंस पर मोतियाबिंद बनने लगता है, तो फिर उसे किसी भी तरह रोका नहीं जा सकता।
मोतियाबिंद के कारण
मोतियाबिंद होने का सही कारण अभी तक पूरी तरह पता नहीं लग सका है। जो कारण पता चले हैं, उनमें बुढ़ापा, खुराक में प्रोटीन, विटामिन ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’ आदि की कमी, सूर्य की किरणों तथा कुछ जहरीली दवाइयों की गणना हो सकती है। मधुमेह तथा सिफिलिस जैसे आम रोग भी इसको बढ़ाने में काफी सहायक सिद्ध होते हैं। आंख में सूजन तथा चोट के कारण किसी भी आयु में मोतियाबिंद हो सकता है। बच्चों की आंखों में खानदानी असर के कारण या गर्भावस्था के पहले तीन महीनों में खसरा निकलने के कारण भी मोतियाबिंद हो सकता है।
काला मोतिया (ग्लोकोमा) : नेत्रगोलकों पर बढ़े हुए दबाव के कारण पैदा हुई स्थिति को ग्लोकोमा, काला मोतिया या नीला मोतिया कहते हैं। सामान्य नेत्रों में जलद्रव पाया जाता है जो कि नेत्रों में बेरोक-टोक चक्कर काटता रहता है। दबाव के सामान्य सीमा में रहने पर ही यह जलद्रव नेत्रों की आकृति व सीमा को बनाए रखता है। यदि किसी कारणवश छोटी नलिकाएं, जिनसे द्रव बाहर निकलता है, बंद हो जाए, तो दबाब बढ़ जाता है, वह बढ़ा हुआ दबाव नेत्र के उन नाजुक हिस्सों को नष्ट कर सकता है, जो कि नेत्र के सामान्य कारणों के लिए उत्तरदायी है।
मोतियाबिंद के लक्षण
काला मोतिया और मोतियाबिंद अलग-अलग हैं : ये दोनों दशाएं बिलकुल भिन्न हैं और बहुधा इसमें भूल होती है। मोतियाबिंद भी दृष्टि के हास के कारण होता है, किंतु यह नेत्र की मणि के धूमिल होने के कारण होता है, जो कि नेत्र में प्रकाश के आने को रोकता है। ये दोनों दशाएं प्राय: 35 वर्ष की आयु के बाद होती हैं। इसलिए यह भूल हो जाती है।
काला मोतिया के रोगियों को कॉफी या चाय अधिक नहीं पीनी चाहिए। उन्हें एक समय में थोड़ी-थोड़ी मात्रा में जल पीना चाहिए, अन्यथा नेत्र के अंदर दबाव बढ़ सकता है।
मोतियाबिंद का होमियोपैथिक उपचार
मोतियाबिंद की प्रमुख औषधियाँ हैं – ‘कैल्केरियाक्लोर’, ‘कॉस्टिकम’, ‘सिनेरिया’, ‘कोनियम’, ‘यूफ्रेशिया’, ‘फॉस्फोरस’, ‘साइलेशिया’, ‘सल्फर’, ‘नेफ्थेलीन’,’प्लेटिनम’।
काला मोतिया की प्रमुख औषधियां हैं – ‘एकोनाइट’, ‘बेलाडोना’, ‘जेलसीमियम’, ‘आसमियम’, ‘फॉस्फोरस’, ‘फाइसोस्टिगमा’, ‘स्पाइजेलिया’, ‘प्रुनस’।
कॉस्टिकम : पलकों की सूजन, आंखों के आगे काले धब्बे दिखाई देना, धुंधलापन जैसे आंखों के आगे कोई चीज है, ठंड में ठंडी हवा से परेशानी, ऊपरी पलकें नीचे की तरफ लटक जाना, आंखों के आगे ऐसा महसूस होना, जैसे कोहरा या बादल है आदि लक्षण मिलने पर ‘कॉस्टिकम’ 200 एक हफ्ते में एक बार लेनी चाहिए।
फॉस्फोरस : मोतियाबिंद, ऐसा महसूस होना, जैसे दिखाई पड़ने वाली सभी वस्तुओं पर धूल जमी हुई है, आंखों पर कोई चीज चिपकी हुई है, आंखों के सामने काले धब्बे, मोमबत्ती के चारों ओर हरा प्रकाशयुक्त घेरा दिखाई पड़ना, अक्षर लाल रंग के दिखाई देते हैं, आप्टिक नर्व सिकुड़ जाती है, पलकों पर सूजन, आंख के भीतरी भाग की झिल्ली सफेद दिखाई पड़ने लगती है, कभी-कभी एक की जगह दो वस्तुएं दिखाई पड़ने लगती हैं। आंख की परेशानी के साथ ही बुढ़ापे में गुर्दो की भी परेशानी, क्षरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है, छूने से परेशानी बढ़ जाती है, अंधेरे में एवं ठंडे पानी से धोने पर आराम मिलता है। उक्त लक्षणों के आधार पर ‘फॉस्फोरस’ 30 एवं 200 शक्ति में प्रयुक्त करनी चाहिए।
स्पाइजेलिया : अांखें बड़ी महसूस होती हैं, आंखों को घुमाने पर अत्यधिक दर्द होता है। काला मोतिया के लक्षण मिलते हैं, आंखों के अंदर और बाहर भयंकर दर्द, नसों में तनाव, रोशनी बर्दाश्त नहीं होती, छूने से भी दर्द बढ़ जाता है, तो 30 शक्ति में दवा प्रयोग करनी चाहिए।
• आंखों से कम दिखाई पड़ने एवं निकट दृष्टि तथा दूर दृष्टि रोग होने पर ‘अर्जेण्टम नाइट्रिकम’ एवं ‘रुटा’ औषधियां अत्यधिक कारगर रहती हैं।
• यदि बारीक काम करने – जैसे सिलाई-बुनाई-कढ़ाई आदि करने पर आंखों की ज्योति क्षीण होने लगे.तो ‘अर्जेण्टम नाइट्रिकम’ औषधि 30 शक्ति में, दिन में तीन बार कुछ दिन (8-10 दिन) सेवन करने के बाद सप्ताह में एक दिन तीन खुराक 200 शक्ति की खानी चाहिए। एक हफ्ते बाद 1000 शक्ति की एक खुराक खाने के बाद औषधि बंद कर दें।
• यदि पढ़ने-लिखने से आंखों में दर्द रहता हो, सिरदर्द रहता हो व नेत्रज्योति क्षीण पड़ने लगे, तो ‘रुटा’ औषधि पहले कुछ दिन 6× शक्ति में और फिर कुछ दिन (लगभग 7 दिन) 30 शक्ति में खानी चाहिए।
• कभी-कभी दोनों औषधियां 30 शक्ति में एक-दूसरे से एक-एक घंटे के अंतर पर, एक हफ्ता खाने से आशातीत लाभ मिलता है।
लाभदायक होमियोपैथिक टिप्स
लैरिंजाइटिस, गला अकड़ जाना, तनाव-सा दर्द, खांसी के साथ शरीर में दर्द – यूपेटोरियम पर्क
आँख आना, गाढ़ा स्राव होना, लाल हो जाना, पलकों का फूलना, दर्द के लिए – यूफ्रेसिया
आँख आना, पतला स्राव बहता हो तब – मार्क साल
आंखों में अंजनी पक कर मवाद निकलने की स्थिति में – हिपर सल्फ