गले में श्लेष्मा गिरने अथवा होने के लक्षण में निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग हितकर सिद्ध होता है :-
ऐलूमिना 6 – गले में गाढ़ा थक्का अटके होने जैसा अनुभव तथा गाढ़े थूक के लक्षणों में हितकर है ।
कार्बो-वेज 6, 30 – गले में कफ का इस तरह चिपटे होने का अनुभव, जिसे रोगी न तो निगल सके और न बाहर की ओर निकाल सके-ऐसे लक्षणों में दे ।
लैकेसिस 30 – दिन में झपकी लेने के बाद गले में खुश्की हो जाने पर रोगी द्वारा उसे खाँस-खाँस कर बाहर निकालने का प्रयत्न करने के लक्षण में हितकर है।
कैन्थरिस 30 – रोगी के थूक में यदि रक्त का अंश मिश्रित झागदार कफ निकलता हो तो इसका प्रयोग करें ।
अर्जेण्टम-नाइट्रिकम 3, 30 – प्रात:काल गले से चिपटने वाला गाढ़ा कफ जिसे रोगी खुरच कर बाहर निकालने का प्रयत्न करता हो, उस स्थिति में इसे दें।
लाइकोपोडियम 30 – गले से रक्त-मिश्रित, पस-मिश्रित, पीले रंग का अथवा दाने-दाने के रूप में कफ निकलने के लक्षणों में लाभकारी है ।
सल्फर 30 – सोते समय गले में कफ जमा होते रहना, जिसका अनुभव प्रात:काल जगने पर होता हो ।
नेट्रम-कार्ब 6 – रोगी द्वारा बहुत जोर से खाँसना तथा गाढ़े कफ का निकलना और यह क्रिया कफ के जमते रहने के कारण बारम्बार दुहरानी पड़ती हो-इन लक्षणों में इसका प्रयोग हितकर रहता है ।
फास्फोरस 30 – गला साफ करने के लिए रोगी का लगातार खाँसते रहना, छाती में नीचे की ओर गहरा खाँसने पर थूक निकलना तथा कफ का रंग भूरा एवं स्वाद नमकीन, खट्टा तीखा एवं दुर्गन्धित होना-इन सब लक्षणों में यह लाभकर है ।
हाइड्रैस्टिस Q, 3, 30 – नाक के पिछले भाग से गले में श्लेष्मा गिरना, श्लेष्मा (कफ) का अधिक बनना तथा उसे निकालने के लिए रोगी द्वारा गले में खुरचने जैसा प्रयत्न करना एवं गले की दुखन के लक्षणों में उपयोगी है ।
सोरिनम 30 – सोरा-प्रकृति के शीत-प्रधान रोगियों के लिए गले में पीछे से नीचे के भाग में श्लेष्मा गिरने की शिकायत में हितकर है।