यह रोग एक प्रकार के जीवाणु (Acarus) के कारण उत्पन्न होता है । ये जीवाणु कलाई, अंगुली आदि स्थानों पर पतली और कोमल त्वचा के निम्न भाग में रहते हैं । इसी कारण सर्वप्रथम अँगुलियों के गासे में तर खुजली होती है । इस रोग का गौण कारण गन्दगी अर्थात् गन्दा रहना है ।
डॉ० ज्हार के मतानुसार जब तक त्वचा के किसी भाग में ‘एकैरस’ नामक कृमि रहेगा, तब तक केवल मुख द्वारा किसी औषध का सेवन करने से ही खुजली दूर नहीं हो सकती । अत: कृमि-जन्य खुजली को नष्ट करने के लिए सर्वप्रथम खुजली के कृमि को नष्ट करना आवश्यक है, और इसके लिए ‘ऑयल ऑफ लवैण्डर’ (Oil of Lavender) का प्रयोग आवश्यक है। पहले पाँच-सात दिन तक इस तेल को खुजली वाले स्थान पर अवश्य लगाना चाहिए, तत्पश्चात् आभ्यन्तरिक प्रयोग वाली औषधियों का सेवन करना चाहिए ।
खुजली के भेद
मुख्य रूप से खुजली को निम्नलिखित चार भागों में बाँटा जाता है :-
(1) बिना दानों वाली खुजली ।
(2) दानेदार खुजली ।
(3) स्थान विशेष की खुजली – यह दानेदार अथवा बिना दानों वाली – दोनों प्रकार की हो सकती है । यह विशेष कर सिर, मुख, नाक, हाथ, पाँव, अंगुली, प्रजनन अंग तथा त्वचा पर होती है ।
(4) परिस्थिति-जन्य खुश्क अथवा तर खुजली – यह बिना दानों वाली अथवा दानेदार हो सकती है ।
स्थान विशेष, खुश्क अथवा तर के भेद से खुजली की अनेक किस्में हो सकती हैं । भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में खुजली के विभिन प्रकार होते हैं । कोई खुजली गरम सेंक से घटती है, कोई स्नान के बाद घटती है, कोई कपड़े बदलते समय घटती है, कोई स्थान बदलती रहती है तो किसी में खुजाते-खुजाते रक्तस्राव होने लगता है ।
बिना दानों वाली खुजली की चिकित्सा
बिना दानों वाली खुजली में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ हितकर हैं –
डौलिकोस प्युरियेन्स 6 – सम्पूर्ण शरीर पर बिना दानों वाली जबर्दस्त खुजली, जो कन्धे, घुटने तथा बालों वाली जगहों पर मुख्य रूप से दिखायी देती है, रात के समय दाँयी ओर, खुजाते समय और अधिक बढ़ने वाली तथा वृद्ध लोगों की जबर्दस्त खुजली में यह औषध अत्यधिक लाभ पहुँचाती है। दीवाल तथा अन्य किसी कड़ी वस्तु द्वारा जोर से रगड़ने पर आराम का अनुभव होने वाली खुजली में विशेष हितकर है ।
यदि बवासीर के मस्सों में खुजली हो तो इस औषध के मूल-अर्क की 5 बूंदें दो-तीन बार पिलाने से वह शान्त हो जाती है ।
ऐलूमिना 6, 30 – त्वचा की खुश्क खुजली में यह औषध विशेष लाभ करती है। खुश्की के कारण त्वचा का फटकर दाद तथा एक्जिमा जैसा हो जाना, खुश्की के कारण नाखूनों का कड़क जाना, बिस्तर पर लेटते ही इतनी खुजली मचना कि खुजाते-खुजाते रक्त निकल आवे, त्वचा पर दर्द होने लगे एवं अँगुलियों की त्वचा का भी फट जाना आदि लक्षणों में यह औषध लाभकारी है । यद्यपि यह बिना दानों वाली त्वचा की खुश्क खुजली में लाभकारी है, परन्तु यदि त्वचा पर खुश्क खुजली हो तो उसमें भी हितकर सिद्ध होती हैं ।
आर्सेनिक 30, 200 – त्वचा की खुश्क खुजली, जिस पर से छिछड़े उतरतें हों तथा सर्दी से रोग के लक्षणों में वृद्धि तथा गर्मी से ह्रास होता हो, तो यह औषध बहुत लाभ करती है। मछली खाने के कारण उत्पन्न होने वाले खुजली के लक्षणों में यह विशेष हितकर है। यह दाने वाली खुजली में भी फायदेमंद है।
मेजेरियम 3, 6, 30 – त्वचा पर छोटे-छोटे खुश्क दाने, जिनमें से निकलने वाला स्राव खुश्क होकर मोटी पपड़ी के रूप में जम जाता हो और उसके नीचे से मवाद रिसता रहता हो, दाढ़ी, मूंछ के बालों में होने वाली खुजली, खुश्क पपड़ी जम जाने पर खुजली तथा रोगी द्वारा खुजाते-खुजाते रक्त निकाल लेना – इन सब लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।
फैगोपाइरम 3, 30 – अत्यन्त तीव्र खुजली, जिसे खुजाते-खुजाते रोगी पागलपन जैसी स्थिति में पहुँच जाय – इन लक्षणों में यह औषध लाभकर सिद्ध होती है ।
सल्फर 30 – यदि खुजली की किसी औषध द्वारा दबा दिया गया हो और उसके कारण कोई अन्य बीमारी उठ खड़ी हुई हो तो उस स्थिति में इस औषध के प्रयोग से खुजली पुन: प्रकट हो जाती है और उसके कारण उत्पन्न हुआ उपसर्ग भी नष्ट हो जाता है, तत्पश्चात् खुजली भी दूर हो जाती है। इस प्रकार यह औषध दबी हुई खुजली को जड़ से नष्ट कर देने में सक्षम है ।
दानेदार खुजली की चिकित्सा
दानेदार खुजली में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-
फ्लोरिक-एसिड 6,30 – गर्मी से बढ़ने वाली, सर्दी से घटने वाली, शरीर पर छोटे-छोटे दाने के रूप में उभर आने वाली खुजली में यह विशेष हितकर है ।
टिप्पणी – दानों वाली खुजली की चिकित्सा के लिए फुन्सियों तथा छाजन (एक्जिमा) के लिए वर्णित औषधियों का लक्षणानुसार प्रयोग करना चाहिए ।
स्थान-विशेष की खुजली की चिकित्सा
स्थान विशेष की खुजली में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभकर हैं
सीपिया 200 – घुटनों के भीतरी भाग में खुजली के दानों के स्राव के कारण गीलापन होने के लक्षण में यह औषध लाभ करती है ।
एम्ब्राग्रीसिया 3 – यह आँख की पलकों में होने वाली खुजली की मुख्य औषध है ।
कार्डअस-मेरियेनस Q, 3 – वक्षास्थि के निम्न भाग में, त्वचा के ऊपर गुच्छे की भाँति उभरने वाले दानों की खुजली में यह लाभकारी है। यह रोग जिगर की बीमारी के कारण भी हो सकता है ।
लोबेलिया इन्फ्लाटा Q, 30 – अँगुलियों की गाई, हथेली की पीठ तथा बाँह में होने वाली खुजली की छोटी-छोटी फुन्सियाँ जिनके कारण त्वचा में चुभन, जबर्दस्त जी-मिचलाने के साथ ही खुजली के लक्षण हों, में यह लाभ करती है।
क्रोटन टिग्लियम 6, 30 – दानेदार जबर्दस्त खुजली, जिसे नाखूनों से खुजाने के कारण दर्द होने लगता हो तथा छूने पर त्वचा अधिक चिरमिराती हो-इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती है। ऐसी खुजली प्रायः जननेन्द्रिय तथा अण्डकोष आदि में होती है। अण्डकोषों में एक्जिमा हो जाने पर भी ऐसी ही तीव्र खुजली मचती है। स्त्री-योनि में भी यह खुजलाहट वाला रोग हो सकता है।
सेलेनियम 6, 30 – हथेलियों पर खुश्क तथा तीव्र खुजली मचना, अँगुलियों के जोड़ों तथा दो अँगुलियों के मध्यभाग में खुजली होना, हथेली पर खुजली, अँगुलियों के मध्य भाग में छोटी-छोटी खुजलाहट भरी फुन्सियाँ तथा अन्य स्थानों की छोटी-छोटी फुन्सियों वाली खुजली में यह औषध विशेष लाभकर सिद्ध होती है ।
रस-टाक्स 6, 30 – बालों वाली जगहों पर खुजली के दानों का प्रकट होना, खुजाने पर त्वचा का ‘विसर्प’ की भाँति लाल हो जाना, फिर उस स्थान पर छोटे-छोटे छाले पड़ जाना, त्वचा में सूजन तथा अन्त में छालों में पस पड़कर उन पर पपड़ी जम जाना – इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती है। ऐसी खुजली के छाले जब हथेली तथा हाथों पर प्रकट होते हैं, तो वे एक स्थान पर ठीक हो जाने के बाद फिर वहीं पर दूसरी बार नहीं निकलते ।
ऐनेगैल्लिस 3 – खुश्क-भूसी जैसे दाने, जो हाथों तथा अँगुलियों पर झुण्ड के झुण्ड रूप में प्रकट होते हों तथा एक बार ठीक हो जाने के बाद दुबारा फिर उसी जगह उभर आते हों – इन लक्षणों वाली खुजली में यह औषध लाभकर है ।
ओलियेण्डर 3, 30 – इस औषध की खुजली का मुख्य स्थान खोपड़ी है । खोपड़ी के ऊपर तीव्र खुजली वाले दानों का उत्पन्न होना तथा उनके स्त्राव एवं रक्त का निकलना, दानों के कारण खोपड़ी की त्वचा का अत्यधिक नाजुक हो जाना, खुजाने के बाद चिरमिराहट होने लगना तथा ऐसा प्रतीत होना, जैसे खोपड़ी में जू भरी हुई हों – इन लक्षणों में यह औषध हितकर है।
सार्सा-पैरिल्ला – खुश्क दानों वाली खुजली, नया-वर्ष आरम्भ होते समय अर्थात् बसन्त-ऋतु में रोग का उभरना, त्वचा का कठोर पड़ जाना, हाथ-पाँवों का फटना तथा खुली हवा के स्पर्श में दानों का उभर आना, इन लक्षणों में यह औषध लाभकारी है। स्त्रियों के ऋतुकाल में खुजली वाले दानों का दाईं जाँघ के ऊपरी मोड़ में निकलना और उनसे स्राव – इन लक्षणों में भी इस औषध का प्रयोग करके लाभ उठाना चाहिए ।
परिस्थिति-जन्य खुजली की चिकित्सा
परिस्थिति-जन्य खुजली में निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-
सोरिनम 200 – खुजली युक्त छिछड़ेदार दाने, जो ग्रीष्म-ऋतु में प्रकट हो जाते हों – उनके लिए यह औषध लाभकारी है ।
रूटा 6 – यदि माँसाहार के कारण खुजली उत्पन्न हुई हो तो यह औषध हितकर सिद्ध होती हैं ।
एण्टीपाइरीन 2x – अत्यधिक खुजली मचना, जुल-पित्ती का अचानक प्रकट होकर अचानक ही विलुप्त हो जाना तथा शरीर के भीतर ठण्ड का अनुभव होना-इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।
कैल्केरिया-कार्ब 30 – पित्ती उछल आने के कारण मचने वाली खुजली हो, अथवा ताजी हवा के सम्पर्क में आने पर पित्ती गायब हो जाती हो तो यह औषध लाभ करती है ।
सीपिया 30 – ताजी हवा के सम्पर्क में आने पर खुजली के दानों में कष्ट वृद्धि के लक्षणों में इसका प्रयोग करना चाहिए ।
सल्फर 30, 200 – ऐसी खुजली, जो शाम या रात के समय बढ़ जाती हो, वर्षा एवं गर्मी में बढ़ जाती हो, वस्त्र उतारने के समय खुजाने से बढ़ जाती हो, तथा सोते समय बिस्तर से पाँव बाहर निकाल देने पर घट जाती हो – इन लक्षणों में इस औषध का प्रयोग लाभकर सिद्ध होता है ।
पल्सेटिला 30, 200 – जिस खुजली में ‘सल्फर’ जैसे सभी लक्षण हों, जो वस्त्र उतारने, गरिष्ठ भोजन करने एवं ऋतुकाल देर से होने पर बढ़ती हो, जिसका रोगी कष्ट के समय दूसरों की सहानुभूति पाना चाहता हो तथा जिसका कारण ऋतुधर्म अथवा पेट की खराबी हो, उसमें यह औषध विशेष लाभ करती है ।
रूमेक्स 3, 6 – ठण्डी हवा के सम्पर्क में आने पर खुजली का बढ़ जाना, सोते समय वस्त्र उतारने पर खुजली होने लगना, त्वचा में अत्यधिक तीव्र खुजली तथा विशेष कर टाँगों में तीव्र खुजली के लक्षण में हितकर है ।
एपिस – शरीर पर अचानक ही दानों का निकल आना, त्वचा पर गुलाबी सफेद रंग के दानों का उभार दिखाई देना, जिनमें असह्य खुजली मचती हो, जलन एवं डंक मारने जैसी चुभन वाली खुजली तथा सर्दी लगने अथवा मलेरिया-ज्वर के कारण खुजली के दानों के उभर आने में यह औषध देनी चाहिए।
आर्सेनिक 30 – ‘एपिस’ जैसे लक्षणों वाली खुजली, परन्तु खुजली के दानों का आकार छोटा होना, सेंक से खुजली में आराम मिलना तथा मछली खाने के कारण आरम्भ हुई खुजली में यह औषध विशेष लाभ करती हैं ।
पैट्रोलियम 3, 30 – शीत ऋतु में रोग-वृद्धि, कान के भीतर तथा बाहर चारों ओर, मूत्र-द्वार एवं मल-द्वार के मध्यभाग – अण्डकोषों पर खुजली की फुंसियां का झुण्ड के रूप में होना, अत्यधिक खुजली और जलन, फुन्सियों से गोंद जैसे चिपचिपे पानी का रिसना, त्वचा का खुश्क, खुरदरी तथा चिटखने वाली होना, शीतऋतु में बिवाइयाँ फट जाना एवं अँगुलियों का चटक जाना – इन सब लक्षणों में इस औषध का प्रयोग करना चाहिए ।
एकोन 3x – ज्वर के साथ खुजली होने के लक्षण में इसे दें।
पुरानी खुजली की चिकित्सा
लक्षण – इस रोग में शरीर में खुजली मचती है, त्वचा का रंग बदल जाता है, सम्पूर्ण शरीर – विशेष कर जननेन्द्रिय तथा मल-द्वार में इतनी खुजली मचती है कि खुजाते-खुजाते खून निकल जाता है । अनिद्रा इस रोग का मुख्य लक्षण है ।
कारण – जीवनी-शक्ति की कमी, स्वच्छता न रखना, गरिष्ठ वस्तुओं का सेवन, अधिक गर्मी अथवा अधिक सर्दी लगना, पुरानी बीमारी भोगना एवं बुढ़ापा – ये सब इस रोग के मुख्य कारण हैं ।
चिकित्सा – इसमें लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-
रेडियम-ब्रोमेटम 30 – सप्ताह में केवल एक मात्रा दें । यह इस रोग की उत्तम औषध है।
आर्सेनिक 3x, 30 – जलन उत्पन्न करने वाला स्राव, फुन्सियों से पानी जैसा स्राव निकलना तथा कमजोरी के लक्षणों में हितकर है ।
(1) नित्य ठण्डे एवं गुनगुने पानी से स्नान करना, शारीरिक-स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना, खुली हवा में घूमना, स्वास्थ्य-बर्धक तथा शीघ्र पच जाने वाली वस्तुओं को खाना-पीना तथा जितना सम्भव हो, उतना कम खुजलाना ।
(2) ‘मेजेरियम’ एक भाग को दस भाग पानी में डालकर धावन तैयार करें । इस धावन को खुजली वाली जगह पर लगाने से लाभ होता है ।
(3) गरम पानी में थोड़ा-सा बढ़िया गंधक डालकर उस पानी से स्नान करना तथा उसी जल से अपने वस्त्र तथा बिस्तर को धोकर उपयोग में लाने से खुजली शीघ्र दूर होती है।