विटामिन B1 (थायमिन हाइड्रोक्लोराइड) की कमी से रोग
विटामिन बी1 कम हो जाने से रोगी चिड़चिड़ा, झगड़ालू, डरपोक, साहसहीन हो जाता है। कई रोगियों के आमाशय में जलन और दर्द होता है । कै आना, नींद न आना, सर्दी प्रतीत होना, हृदय अधिक धड़कना, हथेली व तलवों में जलन, सांस कठिनाई से आना, यकृत में दर्द और यकृत-वृद्धि हो जाती है । उनके बच्चों को आक्षेप, भूख न लगना, बेहोशी आदि कष्ट हो जाते हैं और उनकी मृत्यु तक हो सकती है। इसकी कमी से रोगी का हृदय बढ़ जाता है, वह संक्रामक रोगों का मुकाबला नहीं कर सकता। पुट्ठों में झटके लगते हैं और ऐण्ठन आदि उपद्रव हो जाते हैं । ऐसे रोगियों को यह विटामिन पर्याप्त मात्रा में खिलाने से ये सब कष्ट दूर हो जाते हैं ।
शरीर में विटामिन B1 की बहुत अधिक कमी हो जाने पर 50 से 100 मि. ग्रा. बी1 के शिरा में इन्जेक्शन लगायें । अथवा 20 से 50 मि. ग्रा. की मात्रा में यह दवा प्रतिदिन मुख द्वारा खिलायें। रोग कम हो जाने पर रोगी को बी1 वाले खाद्य जैसे गेहूँ का चोकर, छिलका सहित गेहूँ का आटा और यीस्ट खिलाते रहें । बी कम्पलेक्स के इन्जेक्शन और टिकिया खिलाना और भी अधिक लाभकारी होता है ।
विटामिन B2 की कमी से रोग
इसकी कमी से रोगी के होंठ सूज जाते हैं। होठों के कोने कट-फट और चिर जाते हैं। मुँह और जीभ में सूजन और छाले होना, नींद न आना, रोगी की आँख रक्त की भाँति लाल हो जाना उसमें खुजली होना और उस आँख का कोना चिर जाना आदि कष्ट हो जाते हैं। ऐसी अवस्था में 5 से 10 मि. ग्रा. ब2 का रोग की तीव्रतानुसार शिरा में इन्जेक्शन सिरायें लगाना उपयोगी है ।
निकोटिनिक एसिड की कमी से रोग
इसकी कमी से मानसिक व शारीरिक कमजोरी, भूख न लगना, स्मरण-शक्ति कमजोर हो जाना, सिर चकराना, मूत्राशय में शोथ, योनि शोथ और मुँह में छाले हो जाते हैं। बच्चों को भूख न लगना, दस्त आना, जीभ लाल होना इत्यादि लक्षण हो जाते हैं। भारतवर्ष में इसकी कमी से संग्रहणी, पुराने दस्तों का रोग बहुत अधिक होता है, जिससे रोगी को दिन में कई बार पतले पाखाने या दस्त आते हैं। पेट में वायु अधिक उत्पन्न होती है । जीभ मोटी और मांस की भाँति लाल, फटी और चिरी हुई होती है । कई रोगियों के चर्म में सूजन और चर्म रोग हो जाते हैं ।
जिन रोगियों को यह रोग बहुत थे उनको 100 मि. ग्रा. निकोटिनिक एसिड के माँस में प्रतिदिन और रोग कम होने पर 50 से 75 मि.ग्रा. के इन्जेक्शन लगाने से – तीसरा इन्जेक्शन लगाने पर दस्त कम आने लग गये और पाखाना बँधकर आने लग गया। जिन रोगियों को 10 दस्त प्रतिदिन आते थे उनको 4 बार नरम पाखाने आने लगे । ऐसे 50 रोगियों को इस चिकित्सा से 12 दिन में आराम आ गया ।
दूध पीते बच्चों (शिशुओं) को और छोटे बच्चों को बड़ी सतर्कता के साथ 50 मि. ग्रा. निकोटिनिक एसिड दिन में दो बार दें । वयस्कों का रोग कम होने पर 50 मि. ग्रा. दिन में तीन बार यह औषधि खिलानी काफी है ।
नोट – रोगी को निकोटिनिक एसिड के बदले निकोटिनिक एसिड एमाइड खिलानी अधिक लाभकारी है, क्योंकि इसके बुरे प्रभाव नहीं होते हैं। रोग की अधिकता में शीघ्र लाभ हेतु इंजेक्शन लगाना अधिक लाभकारी है।
पैलाग्रा (Pellagra) रोग और बी. कॉम्प्लेक्स
यह अति भयानक रोग है जो वयस्कों और दूध पीते शिशुओं को अधिक होता है । इससे बच्चों के चेहरे, आँखों, पैर, जननेन्द्रियों पर सूजन उत्पन्न हो जाती है और इन अंगों में पानी पड़ जाता है। टाँगों, बाजुओं, चूतड़, कमर, चेहरे का चर्म फट जाता है । बाल झड़ने लगते हैं और बच्चा गंजा हो जाता है । पीले रंग के चिकने पाखाने अधिक मात्रा में आते हैं । बालक यकृत रोगग्रस्त हो जाता है । इस भयानक रोग में विटामिन बी. कॉम्प्लेक्स से लाभ के स्थान पर हानि पहुँचती है। ऐसे बच्चों को पशुओं का आमाशय सुखाकर 10 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन डाइल्यूट हाइड्रोक्लोरिक में मिलाकर खिलाने से इस रोग से मरते हुए बच्चों तक को बचा लिया जाता है। जर्नल ऑफ मैडीकल एसोशियेशन ऑफ अमेरिका ने सूखे आमाशय को पैलाग्रा रोग में बहुत ही लाभकारी बताया है ।
जिन रोगियों में विटामिन बी. कॉम्प्लेक्स कम हो चुकी है उनको यीस्ट, पशुओं का जिगर अथवा इसका एक्सट्रेक्ट, वीट जर्म और चावलों का छिल्का खिलाकर आसानी से स्वथ बनाया जा सकता है ।