किसी जंग लगी वस्तु से घाव होना- लीडम पाल 200 तथा हाइपेरिकम 200- कोई घाव किसी जंग लगी वस्तु से होता है तो ऐसी स्थिति में टिटेनस नामक रोग हो जाने का भय रहता है । ऐसी स्थिति में उक्त दोनों दवाओं की एक-एक मात्रा कुछ अन्तर से रोगी को दे देनी चाहिये- इससे रोगी को टिटेनस होने का भय नहीं रहता है। इसके बाद घावों की लक्षणानुसार चिकित्सा करानी चाहिये ।
किसी विषैली वस्तु से घाव होना- लीडम पाल 200 तथा इचिनेशिया अंग 200- यदि कोई घाव किसी विषैली वस्तु या विषैले जीव-जन्तुओं के कारण हुआ हो तो उक्त दोनों दवाओं की एक-एक मात्रा कुछ अन्तर से रोगी को दे देनी चाहिये । इसके बाद घावों की लक्षणानुसार चिकित्सा करानी चाहिये । किसी पशु या मनुष्य द्वारा काट लेने पर भी यही चिकित्सा करानी चाहिये, लाभ होगा ।
घाव होना- कैलेण्डुला Q, 30– घाव होने पर पहले उसे गुनगुने पानी से धोना चाहिये। फिर कैलेण्डुला Q को वैसलीन में मिलाकर घाव पर लगाना चाहिये । रोगी को कैलेण्डुला 30 का आन्तरिक सेवन भी कराना चाहिये।
घाव पक जाना- हिपर सल्फर 30- यदि घाव पक गया हो और उसमें मवाद पड़ गया हो तो रोगी को यह दवा देनी चाहिये । साइलीशिया 30 भी इन्हीं लक्षणों में दी जा सकती है । अगर इन दोनों दवाओं से लाभ न हो तो रोगी को सोरिनम 200 देनी चाहिये- इससे घाव सूखने लगते हैं ।
जलन वाले घाव या सड़ने वाले घाव- डॉ० नैश का कथन है कि जलन वाले घाव या सड़े दूषित घावों में आर्सेनिक और ऐन्श्रेसिनम से ही लाभ होता है परन्तु डॉ० बैनथैक ने अपने अनुभवों के आधार पर कहा है कि उक्त घावों में उक्त दोनों दवाओं की अपेक्षा टैरेन्टुला तथा क्युबेनसिस अधिक लाभप्रद हैं । अतः इनका ही प्रयोग करना चाहिये । टैरेन्टुला और क्युबेनसिसदोनों ही मकड़ी-विष से बनती हैं अतः दोनों ही मकड़ी के कारण उत्पन्न होने वाले उपसर्ग जैसे घावों में लाभप्रद हैं ।