कारण – अत्यधिक मैथुन, शोक, व्यायाम, अनुकल्प रज: तथा धूप में भ्रमण आदि कारणों से रक्त-वमन की शिकायत उत्पन्न होती है, क्षार, अन्न, नमक, खट्टी वस्तुएँ एवं मिर्च आदि तीक्ष्ण वस्तुओं के सेवन के कारण रक्त दूषित होकर शरीर के उर्ध्व-भाग अथवा निम्न-भाग से निकलता रहता है। सामान्यत: मुख-मार्ग से ही रक्त अधिक निकलता रहता है।
लक्षण – रक्त की वमन होने से पूर्व पाकाशय में दर्द एवं भार का अनुभव, अजीर्ण, मिचली, लम्बी-श्वास, सुस्ती, सिर में झुनझुनी तथा मुँह का स्वाद नमकीन हो जाना आदि लक्षण प्रकट होते हैं । वमन के द्वारा निकलने वाले पाकाशय के स्राव का रंग तथा परिमाण हर समय एक – सा नहीं होता । पाकाशय से निकलने वाले रक्त का रंग कुछ काला तथा बिना फेन का होता है। कभी-कभी उसके साथ खाये हुए पदार्थ का अंश भी निकलता है, जबकि फेफड़े से निकलने वाले रक्त की वमन में रक्त का रंग चमकीला-लाल, फेन तथा श्लेष्मायुक्त होता है और उसके साथ खाये हुए पदार्थ का अंश नहीं होता । फेफड़े से निकलने वाले रक्त की उल्टी से पूर्व श्वास कष्ट तथा छाती के दर्द की शिकायत भी प्रकट होती है ।
चिकित्सा – इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग लाभकर रहता है :-
हैमामेलिस Q, 1, 6 – यह इस रोग की सर्वोत्तम औषध मानी जाती है। पेट में गुड़गुड़ाहट, तेज, काँपती हुई तथा ठण्डी नाड़ी, कमजोरी, बिना कष्ट के रक्त-वमन तथा काले नीले रंग का खून निकलना-इन सब लक्षणों में इस औषध को 15-15 मिनट के अन्तर से देना चाहिए ।
क्रोटेलस 6 – पेट से काले रंग के खून की उल्टी (ऐसा प्राय: पेट में फोड़ा अथवा कैंसर होने के कारण होता है) एवं शरीर के सभी अंगों तथा त्वचा के छिद्र से रक्तस्राव के लक्षण में यह औषध विशेष लाभ करती है ।
इपिकाक 3x, 6, 30 – मिचली अथवा वमन के साथ चमकीले लाल रंग के रक्त का स्राव, थोडी देर तक ठहरने वाली तथा बारम्बार आने वाली खाँसी, जीभ का तर होना तथा मुँह का स्वाद नमकीन हो जाना – इन सब लक्षणों में यह औषध लाभ करती हैं ।
एकोनाइट 3x – जिन रक्त-प्रधान मनुष्यों का मुंह लाल रंग का हो, उनके पाकाशय में अचानक ही दर्द उठकर रक्त की वमन होना, कलेजे का धड़कना, ज्वर, घबराहट तथा पूर्ण नाड़ी के लक्षणों में यह औषध हितकर है ।
मिलिफोलियम Q, 1x, 3 – डॉ० फैरिंगटन के मतानुसार चमकीले लाल रंग के रक्त-स्राव में यह औषध विशेष लाभ करती है। आँतों में खून आना तथा बवासीर के चमकीले रक्त-स्राव में भी हितकर है ।
चायना 3, 30 – अत्यधिक परिमाण में रक्त की वमन होकर, रोगी के अशक्त हो जाने पर हाथ-पाँव ठण्डे पड़ कर नाड़ी के क्षीण होने अथवा मूर्छा के लक्षणों में । मासिक-धर्म की गड़बड़ी के कारण मुख से रक्त-स्राव हो तो भी यह लाभ करती है।
पल्सेटिला 3 – मासिक-धर्म के समय किसी गड़बड़ी के कारण योनि-मार्ग से रक्त-स्राव न होकर, यदि मुख अथवा नाक से रक्त बहने लगे तो इसका प्रयोग हितकर रहता है ।
आर्सेनिक 3x – रक्त-वमन के साथ ही कलेजे में धड़कन, शरीर में दाह, अत्यधिक प्यास, चेहरे पर मलिनता तथा नाड़ी में क्षीणता के लक्षण होने में लाभकारी है।
आर्निका 3x, 30 – थक्के बँधे रक्त की वमन तथा खाने-पीने के कारण उसमें वृद्धि, अधिक परिश्रम अथवा किसी आघात के कारण होने वाले रक्तस्राव में उपयोगी है।
कार्बो-वेज 6, 30 – हिमांग अवस्था में पित्त अथवा खून की वमन होने पर इसका प्रयोग करना चाहिए ।
विशेष – उत्त औषधियों के अतिरिक्त लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों के प्रयोग की भी कभी-कभी आवश्यकता पड़ सकती है :-
नक्स-वोमिका 6, फास्फोरस 6, क्रोकस 2x, फेरम 6, बेलाडोना 6 तथा सिकेल 2x, 3 आदि ।