श्वासतंत्र में किसी रुकावट की वजह से सांस फूलने लगती है इसी को दमा कहते हैं। फेफड़ों के कोष्ठों में श्लेष्मायुक्त पदार्थ (म्यूकस) जमने की वजह से, कोष्ठों में सिकुड़ाव एवं सूजन आने की वजह से अथवा इन सभी संयुक्त वजहों से दमा हो जाता है।
जब किसी व्यक्ति को तात्कालिक दमे का असर होता है, तो उसके फेफड़ों का घनत्व बढ़ जाता है जिससे सिकुड़े हुए फेफड़ों के कोष्ठ खुलने लगते हैं और बंद हो चुके कोष्ठ भी खुलते हैं। श्वासतंत्र से जुड़ी मांसपेशियों में भी खिंचाव होने लगता है। इससे ज्ञात हो जाता है कि रोग की तीव्रता क्या है। कभी-कभी तो पल्मोनरी धमनियों में खिंचाव की वजह से हृदय के दाहिने भाग पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है और हृदय-गति रुक सकती है।
दमा के लक्षण
• अधिकतर रोगियों में यह रोग अपनी तीव्रता के साथ ही प्रकट होता है एवं घंटों और दिनों तक बना रहता है, किन्तु तीव्रता घटती-बढ़ती रहती है।
• हल्की तीव्रता के समय, सांस लेने एवं छोड़ने में तकलीफ महसूस होती है, खांसी के साथ सफेद रंग का बलगम भी आने लगता है, किन्तु रोगी अपनी दिनचर्या के कार्य करता रहता है। शारीरिक जांच करने पर ऐसे रोगियों में लयबद्ध घरघराहट की आवाज फेफड़ों में, यंत्र द्वारा सुनने पर सुनाई पड़ती है।
• कुछ अधिक तीव्रता के साथ प्रकट होने पर श्वासकृच्छ (सांस लेने में अत्यधिक कष्ट) एवं छाती भी थोड़ा फूल जाती है, क्योंकि फेफड़ों का घनत्व बढ़ जाता है। सांस लेने तकलीफ बढ़ने के साथ-साथ आवाज भी निकलने लगती है। खांसी के साथ बलगम भी निकलने लगता है।
• अत्यधिक तीव्रता के साथ प्रकट होने पर सांस लेने में अत्यधिक तकलीफ महसूस होती है। खांसी बहुत आने लगती है एवं हांफने की आवाज भी निकलने लगती है। थूक निगलने में मरीज को परेशानी होने लगती है।
• अत्यधिक तीव्रता वाले दमे को ‘स्टेप्स-एस्मेटिक्स’ नाम दिया गया है अर्थात् ऐसा दमा जिसमें साधारण दवाएं भी कारगर नहीं हो पातीं। इस अवस्था में दो-तीन दिन तक तीव्रता बरकरार रहती है।
• इस तरह की तीव्रता के साथ थकान, बदन दर्द एवं डिहाइड्रेशन (शरीर में जल की कमी, दस्त वगैरह होने) के लक्षण भी प्रकट होने लगते हैं।
• तीव्रता में कमी न आने पर कुछ दिन के पश्चात् शरीर नीला पड़ने लगता है, श्वासतंत्र में भी जहर बनने लगता है एवं शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाने के कारण मृत्यु तक हो सकती है।
दमा के प्रकार
• एलर्जिक दमा – इस प्रकार के दमा में किसी वातावरणीय तत्त्व के प्रति प्रतिक्रियास्वरूप रोग के लक्षण प्रकट होने लगते हैं और एक-दो घंटे में समाप्त हो जाते हैं। जैसे गर्त, धुआं इत्यादि । बुखार, एक्जीमा भी हो सकते हैं।
• नॉन एलर्जिक – इसमें फेफड़ों के अंदर ही रुकावट पैदा होने लगती है। जीवन के चौथे चरण में अधिकांशत: इस प्रकार का दमा प्रकट होता है। इस तरह के रोगियों में सांस की अन्य तकलीफें भी बहुतायत में होती है। टॉन्सिल, साइनस आदि की परेशानी साथ में हो सकती है।
• संयुक्त प्रकार का – कुछ प्रतिशत रोगियों में एलर्जिक एवं नॉन एलर्जिक प्रकार का दमा संयुक्त रूप में रह सकता है।
• वातावरणीय कारकों – जैसे तापमान, नमी, दबाव एवं शारीरिक परिश्रम आदि की वजह से भी दमा हो सकता है।
• मानसिक तनाव एवं हृदय रोग की वजह से भी दमा रोग हो सकता है।
दमा का जाच
एक्सरे कराये जाने पर फेफड़ों का दायरा बढ़ा हुआ, छाती फूली हुई एवं फेफड़ों के आसपास फैलाव नजर आता है। थूक में ‘इयोसिनीफेल’ कोशिकाएं पाई जाती हैं। ‘पल्मोनरी फंक्शन’ जांच में फेफड़ों में रुकावट के लक्षण मिलते हैं।
रोकथाम एवं बचाव
उन पदार्थों एवं वस्तुओं जिनकी वजह से दमा होने लगता है, से मरीज को दूर रखना अत्यंत आवश्यक है। यह ज्ञात होने पर भी कि अमुक वस्तु से परेशानी बढ़ जाती है, उसके बचाव के साथ-साथ सतर्कता बरतना भी आवश्यक है। धूम्रपान, धूल, धुआं आदि से भी बचना आवश्यक है। ऐसी अंग्रेजी दवाओं,जिनसे दमा प्रकट होने लगे, बचाव आवश्यक है। वाता-वरणीय तापमान, दबाव एवं नमी का भी ख्याल रखना आवश्यक है। ऐसे रोगियों को मानसिक परेशानियों से बचना चाहिए। साथ ही मोटे रोगियों का वजन घटवाना भी आवश्यक है।
दमा का होमियोपैथिक उपचार
लक्षणों की समानता के आधार पर निम्नलिखित होमियोपैथिक दवाएं अत्यंत कारगर रहती हैं -‘इपिकॉक’, ‘आर्सेनिक’, ‘यूकेलिप्टस’, ‘एड्रीनेलीन’, ‘नेट्रमसल्फ’, ‘सैग्युनेरिया स्पोंजिया’, ‘अरेलिया रेसिमोसा’ एवं ‘ब्लाटा ओर’ आदि दवाएं अत्यंत लाभप्रद हैं।
ओरेलिया रेसिमोसा : आधी रात के समय खांसी उठे, सोते समय शरीर से खूब पसीना निकले, लेटते ही खांसी उठे, नींद की झपकी लगते ही खांसी चले, गले में कुछ अटका-सा लगना, आधी रात को दमा उठना आदि लक्षणों पर इस दवा का मूल अर्क (मदरटिंचर) या 6 शक्ति वाला अर्क (टिंचर) प्रयोग करना चाहिए। आधे कप पानी में 5-6 बूंद दवा डालकर 1-1 चम्मच दवा 2-2 घण्टे पर दें।
एकोनाइट-30 : यह बहुत पेटेन्ट दवा है जो शीघ्र प्रभाव करती है। खुली हवा में आराम मालूम देना, खुश्क ठण्डी हवा या ठण्ड के प्रभाव से कष्ट उत्पन्न होना, रोगी को घबराहट और बेचैनी बहुत होना, प्यास ज्यादा लगती हो, भय व घबराहट से शरीर पसीने-पसीने हो रहा हो, जिस तरफ लेटे उसी तरफ के अंग से पसीना निकले, रोग का अचानक और प्रबल वेग से आक्रमण हो, तो यह लाभकारी है।
ग्रिण्डेलिया-Q : नींद आते ही श्वास कष्ट हो और नींद खुल जाए, ताकि सांस ली जा सके, गले से सांस निकलते समय सू-सू या सीटी बजने जैसी ध्वनि हो, रोगी लेट कर सांस न ले सके, तो उठ कर बैठ जाए, खांसने पर काफी मात्रा में कफ निकले, कफ निकल जाने पर आराम मालूम हो, श्वास धीरे-धीरे फूलती जाए और तेजी से फूलने लगे, तो इस दवा का मदरटिंचर चार बूंदें आधे कप पानी में डालकर 2-2 घण्टे पर 1-1 चम्मच पिलाना चाहिए। इसको 30 शक्ति में भी 2-2 घण्टे पर प्रयोग कर सकते हैं। दमा के पुराने रोगियों के लिए यह अच्छी गुणकारी दवा है।
इपिकॉक-30 : फेफड़ों में कफ का भारी जमाव होना और जी मिचलाना, उल्टी जैसा जी होना, कफ निकालने के लिए रोगी का लगातार खांसना, खुली हवा में कष्ट का कम होना, गर्मी या नम हवा से कष्ट बढ़ना, गरिष्ठ भोजन करने से कष्ट बढ़ना, खास कर बच्चों को ब्रोंकाइटिस के कारण दम फूलना और लक्षणों का तेजी से बढ़ना आदि, साथ में जुकाम भी हो, कफ ज्यादा जमा हो जाने से सांस लेने में असुविधा हो रही हो, तो इस दवा की 30 शक्ति वाली 8-10 गोली 2-2 घण्टे पर चूसनी चाहिए। आराम होते ही दवा देना बंद कर देनी चाहिए। बच्चों को आधी मात्रा में गोलियां देनी चाहिए।
एण्टिमटार्ट-30 : श्वास रोग की यह खास दवा है, जबकि खांसी के साथ कफ की गड़गड़ाहट भी होती हो। खांसने पर कफ निकलने से आराम मालूम दे, बहुत खांसने पर थोड़ा सा कफ निकले और फिर राहत का अनुभव हो, खुली हवा में अच्छा लगे, उठ कर बैठने से आराम मालूम पड़े, ठंडा लगने से रोग बढ़े, लेटने से कष्ट बढ़े, कफ की गड़गड़ सुनाई दे, कफ मुश्किल से निकलता हो, नमी से रोग बढ़े, कमजोरी के कारण रोगी सुस्ती तथा नींद का अनुभव करे, उल्टी हो जाए, तो आराम मालूम दे और जी मिचलाना बंद हो जाए, तो इन लक्षणों वाले रोगी को इस दवा की 30 शक्ति वाली 8-10 गोलियां 3-3 घण्टे पर देनी चाहिए। गोली मुंह में रख कर चूसनी चाहिए।
ब्लाटा ओर Q : मजबूत कद-काठी के रोगी में फेफड़ों के संक्रमण के साथ दमा भी हो, तो मूल अर्क देना चाहिए।