गले से पेट तक जाने वाली भोजन-नली, जिसमें होकर भोजन तथा पानी पेट में पहुँचता है, उसे अँग्रेजी में ‘गुलेट’ (Gullet) अथवा ‘ऑइसोफेगस’ (Oesophagus) कहा जाता है ।
इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभकर हैं :-
फास्फोरस 30 – यह औषध ‘शीत-प्रधान’ हैं । भोजन-नली में दर्द तथा निगलने में कष्ट होने पर इसका प्रयोग करें ।
मर्क-कोर 6 – भोजन-नली में जलन तथा निगलने में कष्ट होने पर इसका प्रयोग करें । इस औषध पर गर्मी-सर्दी का कोई विशेष प्रभाव नहीं होता, वैसे इसे ‘उष्णता प्रधान’ माना जाता है ।
साइक्यूटा 200 – निगलने का प्रयास करते ही गला घुटता हुआ-सा और बिल्कुल बन्द-सा प्रतीत हो तथा गले की शुरूआत ही रुकी हुई-सी लगती हो तो इसका प्रयोग हितकर रहता है ।
इग्नेशिया 200 – भोजन को निगलते समय वह गले के नीचे तो उतर जाय, परन्तु पेट का अग्र-भाग रुका हुआ-सा प्रतीत हो, अर्थात् (Cardiac End) पर पहुँच कर भोजन रुक जाता हो तो इस औषध का प्रयोग करना चाहिए ।
जैल्सीमियम 30 – गरम भोजन का निगलना आसान प्रतीत हो, निगलते समय गले से कान तक दर्द होता हो तथा गले से एक ढेला सा अटका हुआ अनुभव हो तो इसका प्रयोग करना चाहिए ।
विरेट्रम-विरि 6 – गले में आक्षेप पड़ने के कारण निगलना सम्भव न होने पर इसका प्रयोग करना उचित है ।
नैजा 6, 30 – गले में खुश्की, गला रुंधता हुआ सा एवं घुटता हुआ-सा प्रतीत हो तथा रोगी अपने गले को पकड़ता रहता हो तो इसका सेवन करें।