आयुर्वेद में रसाहार को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। उत्तम स्वास्थ्य के लिए फलों और सब्जियों का रस लेना जरूरी होता है। आजकल प्राकृतिक चिकित्सक बीमारियों के अनुरूप अलग-अलग किस्म के फलों और सब्जियों के रस का प्रयोग कराके सफलतापूर्वक उपचार करते हैं। स्वस्थ और नीरोग बने रहने के लिए कम से कम दिनभर में दो बार रसाहार जरूर करना चाहिए। इससे शरीर में शक्ति और कांति बढ़ती है। मस्तिष्क में तरो-ताजगी आती है।
रसाहार के अनेक लाभ हैं। इससे वे सारे पौष्टिक तत्व मिल जाते हैं, जो शरीर को पुष्ट बनाते हैं। साथ ही इससे शरीर की सफाई का कार्य भी हो जाता है। शरीर में व्याप्त गंदे एवं विषैले तत्व रसाहार द्वारा बाहर निकल जाते हैं। स्नायु तंत्र को मजबूत बनाने में भी रसाहार महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। फलों का रस शरीर को शुद्ध करता है, जबकि सब्जियों का रस शरीर को मजबूत बनाता है।
कुछ फलों एवं सब्जियों का रस स्वाद की दृष्टि से अच्छा नहीं होता। इस कारण रसाहार करने वाले को इसके सेवन में कठिनाई महसूस होती है। ऐसी स्थिति में रस में मट्ठा, काला नमक एवं कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर उसका सेवन किया जा सकता है। इससे मुंह का जायका भी ठीक रहता है। रसाहार द्वारा स्वास्थ्य – लाभ हेतु भोजन को त्याग देना चाहिए। रसाहार का प्रयोग तब तक करना चाहिए, जब तक रोग ठीक न हो जाए। इसे ‘जूस फास्टिंग’ भी कहते हैं। आमतौर पर रसाहार द्वारा चिकित्सा करने वाले हर तीसरे घंटे पर रस देते हैं।
रसाहार की शुरुआत में कुछ शारीरिक परेशानियां भी हो सकती हैं, जैसे ज्वर, बदन-दर्द, कमजोरी, पेट दर्द, सिर दर्द, अनिद्रा आदि। ऐसे में न तो घबराना चाहिए और न ही रसाहार छोड़कर किसी चिकित्सक के पास जाना चाहिए। ऐसी व्याधियां इस बात का संकेत करती हैं कि शरीर का विष बाहर निकल रहा है। विधिवत एक-दो माह तक रसाहार करने के बाद ही धीरे-धीरे अल्प मात्रा में ठोस आहार का सेवन शुरू करना चाहिए। मगर इस दौरान भी पर्यात मात्रा में फलाहार और रसाहार करते रहना चाहिए। रसाहार की अवधि में कठोर श्रम नहीं करना चाहिए तथा पर्याप्त समय तक आराम करना चाहिए।
सब्जियों तथा फलों का रस निकालते समय स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना चाहिए। फल या सब्जियां अच्छी क्वालिटी के होने चाहिए। वे सड़े-गले या बासी न हों। रस निकालने के बाद उन्हें अधिक देर तक न रखें, बल्कि तत्काल उनका सेवन कर लें। रसाहार के दौरान नियम एवं संयमपूर्वक रहना चाहिए। मन में अनिश्चितता का भाव रखते हुए पर्यात समय तक विश्राम करना चाहिए।
रोग निदान रसाहार द्वारा हर रोग की चिकित्सा संभव है। प्रत्येक रोग के लिए विशेष फल एवं सब्जियां हैं, जिनका रस लेना चाहिए। कोढ़ जैसे भयानक रोग का इलाज करेले और नीम के रस से सफलतापूर्वक किया जा सकता है। आइए, अब यह भी जान लें कि किन रोगों में किन रसों का सेवन लाभप्रद रहता है –
रोग | रसाहार |
अनिद्रा | अंगूर एवं सेब का रस। |
इंफ्लूएंजा | मौसमी तथा गाजर का रस। |
कैंसर | अंगूर, तुलसी के पत्तों और गाजर का रस। |
अम्लपित्त | गाजर, मौसमी, संतरे, पालक और अंगूर का रस। |
भूख की कमी | नीबू एवं टमाटर का रस। |
कील मुँहासे | गाजर, तरबूज, पालक तथा प्याज का रस। |
दमा | गाजर, पत्तागोभी, चुकंदर एवं अंगूर का रस। |
रक्तशोधन | सेब, टमाटर, पालक, चुकंदर, नीबू, पत्तागोभी तथा गाजर का रस । |
पीलिया | संतरा, मौसमी, अंगूर, गन्ना, सेब तथा किशमिश का रस। |
पथरी | ककड़ी का रस। |
मधुमेह | गाजर, करेले, पालक और पत्तागोभी का रस। |
सर्दी एवं कफ | गाजर, लहसुन तथा पत्तागोभी का रस। |
रक्ताल्पता | चुकंदर एवं गाजर का रस। |
फोड़ा-फुंसी | पालक, ककड़ी तथा गाजर का रस (लहसुन का थोड़ा-सा रस मिलाकर) । |
निम्न रक्तचाप | सभी मीठे फलों का रस। |
उच्च रक्तचाप | गाजर, संतरे तथा मौसमी का रस। |
अल्सर | गाजर, अंगूर और पत्तागोभी का रस। |
मासिकधर्म की पीड़ा | अनन्नास का रस। |