लक्षण – अण्डकोषों के जल-संचय हो जाने पर वे फूलकर कड़े हो जाते हैं। यह रोग एकादशी से पूर्णिमा तक बढ़ता है, फिर घटने लगता है । इस पानी को ऑपरेशन द्वारा भी निकाला जा सकता है ।
लक्षण-भेद से यह रोग दो प्रकार का होता है – (1) जन्म-जात एवं (2) कारण जात । इस रोग में कभी दर्द होता है, और कभी नहीं भी होता ।
कारण – चोट लगने, अण्डकोष के झूल पड़ने, घुड़सवारी, स्वास्थ्य की खराबी, अण्डकोषों की शिराओं का फूल जाना, स्थानिक-प्रदाह तथा अन्य कारणों से भी यह रोग हो सकता है । इस रोग के अधिक बढ़ जाने पर अण्डकोष तरबूजे जितने बड़े आकार के भी हो सकते हैं । यह रोग वंश-परम्परागत भी देखा जाता है ।
जन्मजात-रोग की चिकित्सा
(Congenital Hydrocele)
चिकित्सा – इसमें लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-
ब्रायोनिया 3 – यदि कोश-वृद्धि जन्मजात हो तो इसे प्रति तीन घण्टे के अन्तर से देना चाहिए ।
एब्रोटेनम 3, 30 – यह औषध बच्चों की अण्डकोष वृद्धि में लाभकारी है।
कैल्केरिया-कार्ब – यह भी बच्चों की अण्डकोष-वृद्धि में हितकर है। अण्डकोषों का फूलना, कड़ापन, खींचन अथवा चोट जैसा दर्द, रेतरज्जु की सूजन एवं कैल्केरिया धातुगत लक्षणों में इसे देना चाहिए ।
कारण – जात रोग की चिकित्सा
(Acquired Hydrocele)
रोडोडेन्ड्रन 3x, 6 – यह औषध बच्चों की नयी बीमारी में हितकर है, विशेषकर उस स्थिति में जब कि दाँया अण्डकोष आक्रान्त हो और उसमें दर्द होता हो तथा आँधी या वर्षा आने से पूर्व उस दर्द में वृद्धि होती हो ।
रस-टाक्स 6, 30 – यदि बरसाती मौसम में अथवा सर्दी लगने से दर्द बढ़ता हो तो इसे देना चाहिए। रोडोडेन्ड्रन से लाभ न होने पर इसे देना उचित है ।
पल्सेटिला 3, 30 – यदि बाँया अण्डकोष आक्रान्त हो, उसमें दर्द रहे और वह धीरे-धीरे बढ़ रहा हो तो इसका प्रयोग करना उचित हैं ।
सिलिका 6, 30 – यदि हर पूर्णिमा तथा अमावस्या को रोग बढ़ता हो तो इस औषध का सेवन करना चाहिए ।
एपिस – शरीर के किसी अन्य दर्द में मधुमक्खी आदि के काटने के कारण अण्डकोष में विसर्प की भाँति सूजन, तेज सुई, काँटा गढ़ने जैसा दर्द, ठण्डे प्रयोग से दर्द का घटना, प्यास का अभाव, आँख की निचली पलक का फूल जाना, अण्डकोष का शोथ, शरीर के किसी अंग में शोथ के लक्षणों में इसका प्रयोग करना चाहिए तथा सिर-दर्द सहित अण्डकोष वृद्धि के लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।
एकोनाइट 30 – नवीन प्रदाह के कारण अण्डकोष वृद्धि, ज्वर, मानसिक अस्थिरता तथा तीव्र दर्द के लक्षणों में विशेष हितकर हैं ।
हेलिबोरस – किसी प्रकार के उदभेद के बैठ जाने पर यदि किसी पार्श्व का अण्डकोष फूल गया हो तो उसमें हितकर है ।
फास्फोरस – सूजाक के कारण अण्डकोष वृद्धि तथा कोषावरक-त्वचा के प्रदाह में एवं अत्यधिक शुक्र-क्षय के कारण होने वाली बीमारी में हितकर है ।
एसिड-फ्लोरिक – उपदंश के परिणाम-स्वरूप हुई अण्डकोष-वृद्धि अथवा शिरा के अर्बुद में यह हितकर है।
आयोडियम – दर्द रहित अंडकोष की सूजन, दुर्गन्धित पसीना, शीर्णता, ग्रंथियाँ में बृद्धि एवं कड़ापन तथा राक्षसी-भूख आदि के लक्षणों में लाभकारी है।
मर्क-आयोड-रूब्रम – उपदंश के कारण बाँयें अण्डकोष के मांसार्बुद एवं दाँयें अण्डकोष के रेतोरेज्जु की स्पर्श-असहिष्णता में लाभकर है।
सल्फर – यदि पारा-दोष मौजूद हो तथा किसी अन्य औषध से लाभ न हो तो इसे देने से लाभ होता है ।
साइलीशिया 6 – अण्डकोषों में जल-संचय के साथ ही यदि जननांग प्रदेश तथा सिर में पसीना तथा खुजली के लक्षण हों, रोगी का शरीर पतला-दुबला और शीत-प्रकृति का हो तो यह औषध लाभ करती है। यदि रोग पूर्णिमा तथा अमावस्या को बढ़ता हो तो भी इसका प्रयोग लाभकर रहता है ।
ग्रैफाइटिस 6, 30 – बाँयें अण्डकोष में जल-संचय, जननेन्द्रिय में शोथ, अण्डाकोषावरक-झिल्ली में शोथ, अण्डकोषावरक त्वचा पर फुन्सियाँ तथा इन सबके साथ ही कभी-कभी स्वप्नदोष हो जाने के लक्षणों में यह औषध लाभ करती है । चर्मरोग के बैठ जाने के कारण बाएं-पार्श्व के रोग में विशेष हितकर है ।
आर्निका 12 – यदि चोट लगने के कारण कोषवृद्धि हुई हो तो इस औषध को चार-चार घण्टे के अन्तर से कुछ दिन देना चाहिए ।
ब्रायोनिया 3, 30 – जन्म-जात अण्ड-वृद्धि तथा अण्डकोषों में गोली लगने जैसा दर्द एवं बैठे-बैठे सुई चुभने जैसे दर्द के लक्षणों में हितकर है।
स्पंजिया Q, 2x, 3x, 3, 6 – अण्डकोषों का फूलकर लाल रंग का हो जाना और उनमें टपक जैसा दर्द होना-इन सब लक्षणों में हितकर है । नये रोग की प्रादाहिक-अवस्था में विशेष लाभकर है ।
हैमामेलिस 1x – अण्डकोष में जल-संचय के साथ ही शुक्र-रज्जु की शिराओं की वृद्धि के लक्षण में लाभकर है।
विशेष – इसके अतिरिक्त लक्षणानुसार कभी-कभी निम्नलिखित औषधियों के प्रयोग की भी आवश्यकता पड़ सकती है :- रस टॉक्स 6, आयोड 6, सल्फर 30 तथा एपिस 6 ।
बेल के काँटे अथवा सुई द्वारा अण्डकोष को दो-तीन स्थानों पर छेदकर पानी बाहर निकाल देने तथा लंगोट पहनने से भी इस रोग में लाभ होता है ।