परिचय : 1. इसे शंखपुष्पी (संस्कृत), शंखाहुली (हिन्दी), डानकुणी (बंगला), साखरवेल (मराठी), शंखावली (गुजराती), शंखपुष्पी (तेलुगु) तथा कन्वाल्वुलस प्लुरिकांलिस (लैटिन) कहते हैं।
2. शंखपुष्पी का पौधा बरसात के अन्त में, जाड़े में जमीन पर छत्ते की तरह फैला रहता है। शंखपुष्पी के पत्ते छोटे, बिना डंठल के, सफेदी लिये रोयेंदार और फूल शंख की आकृति जैसे सफेद होते हैं। शंखपुष्पी की जड़ सुतली या अंगुली के समान, कुछ रेशेदार हरियाली लिये सफेद होती है।
3. यह प्राय: सभी प्रान्तों तथा हिमालय, शिमला के तराई-प्रदेशों की साधारण सख्त, कंकरीली भूमि में मिलती है।
4. फूलों के रंग के अनुसार यह तीन प्रकार की होती है : सफेद, लाल (सर्पाक्षी) तथा नीली (विष्णुक्रान्ता)। सफेद फूलोंवाली वनस्पति ही असली ‘शंखपुष्पी’ है।
शंखपुष्पी के गुण : यह स्वाद में कषाय (कसैली), कटु (चरपरी) और तित्त (कड़वी), पचने पर मधुर तथा गुण में भारी, चिकनी होती है। इसका मुख्य प्रभाव मध्य (मस्तिष्क को बलदायक) रूप में वातनाड़ी-संस्थान पर पड़ता है। यह केशवृद्धिकर, अग्निदीपक, पाचक, हृदय को बल देनेवाली, कफ निकालनेवाली, स्वर ठीक करनेवाली, रसायन तथा बलप्रद है।
शंखपुष्पी के फायदे
1. मानसिक रोग : उन्माद, योषापस्मार और अपस्मार (मिरगी) में इसका रस 1-4 तोला तक पिलाया जा सकता है। इससे मल साफ होता हैं और पागलपन कम हो जाता हैं।
2. स्मरण-शक्ति का दौर्बल्य : शंखपुष्पी 6 माशा, काली मिर्च 5 माशा, छोटी इलायची 3 माशा, सबको पीसकर चीनी या मिश्री डालकर ग्रीष्म ऋतु में पीने से दाह शान्त होता है। बुद्धि तथा स्मरण-शक्ति बढ़ती है।
3. हिस्टीरिया : शंखपुष्पी 3 माशा, मुलेठी 3 माशा, शतावरी 3 माशा, बच 1 माशा, इनको मिलाकर दो मात्रा बना दूध के साथ सेवन करने से स्मरण-शक्ति और बुद्धि बढ़ती है। पागलपन या हिस्टीरिया में आराम मिलता है। गर्भाशय-दौर्बल्य दूर होता है और गर्भस्थापन की शक्ति आती है।