इस रोग में रोगी के पेट में पानी एकत्रित हो जाता है जो मूत्र आदि के द्वारा निकल नहीं पाता है । इस वजह से रोगी का पेट फूलता जाता है और सामान्य आकार से बड़ा हो जाता है । इस रोग में रोगी का मूत्र बन्द या कम हो जाता है, कब्ज रहती है, हृदय तेजी से धड़कता है और प्यास बहुत लगती हैं । साँस लेने में कष्ट होता है और सूजन आ जाती है । यह रोग मुख्य रूप से यकृत (लिवर) की खराबी, प्लीहा की खराबी और गुदों की खराबी के कारण होता है। इसके अलावा अन्य बीमारियों के उपसर्ग के रूप में भी यह रोग हो जाता है ।
कॉन्वल्यूलस आर्व 2x, 30- पेट में पानी भरता रहता है जो अंगुलियों का दबाव देने से मालूम हो जाता है, कब्ज बनी रहती है, बहुत भूख लगती है, रोगी कमजोर होता जाता है- इन लक्षणों में देनी चाहिये ।
एपोसाइनम Q, 200– रोग के साथ में पाकस्थली में उत्तेजना, पानी पीते ही वमन हो जाना, कीचड़ की भाँति का मूत्र होना, अतिसार हो, शरीर में किसी भी प्रकार का शोथ ही तो देनी चाहिये ।
सेनिसियो 30- जलोदर के कारण पेट बहुत कड़ा हो जाये, मूत्र लाल रंग का हो जो कभी कम और कभी अधिक मात्रा में ही, निम्नांगों में शोथ हो तो देनी चाहिये ।
एपिस मेल 30, 200- मूत्र अत्यधिक मात्रा में हो पर प्यास नहीं लगे, शरीर में स्थान-स्थान पर डंक मारने जैसा दर्द और जलन हो तो यह दवा बहुत लाभकारी है ।
आर्सेनिक 30, 200- रोगी कमजोर होता जाये, प्यास तो ज्यादा लगे पर पानी कम पीये, रात को ऐसा लगे कि साँस बंद होने वाली है, बेचैनी रहे, रोगी बिस्तर छोड़कर भागना चाहे तो देनी चाहिये ।
चायना 30, 200– यकृत या प्लीहा की बीमारी के कारण रोग हुआ हो, शोथ भी हो तो देनी चाहिये ।
सल्फर 30, 200- किसी भी चर्म-रोग के दब जाने के कारण रोग पैदा हो जाये, शरीर की त्वचा गंदी-सी लगे, चेहरे पर सहज ही पसीना आ जाये, नाड़ी तेज चले, रोगी को तन्द्रा बनी रहे, विना दर्द का अतिसार हो तो दें।
एसिड फ्लोर 6, 30– व्हिस्की पीने से रोग हुआ हो जिसमें यकृत कड़ा और बड़ा हो जाये तो लाभप्रद है ।