त्वचा सम्बन्धी चिकित्सा के लिए ‘होम्योपैथी’ की विशेष प्रशंसा की जाती है। अन्य चिकित्सा-विधियों में जहाँ इन रोगों की चिकित्सा हेतु प्राय: शल्य-क्रिया का आश्रय लिया जाता है, वहाँ होम्योपैथी बिना चीर-फाड़ के ही रोग को समूल नष्ट कर देने में सक्षम सिद्ध होती है ।
कड़े, नोंकदार, लाल, कम ऊँचाई वाले तथा अलग-अलग – ऐसे उदभेदों को फुन्सी (Pimple or Acne) कहा जाता है । ये रक्तस्रावी ग्रन्थियों के भीतरी-भाग के पुराने प्रदाह के रूप में प्रकट होते हैं । जिन वसा ग्रन्थियों (Sebaceous glands) द्वारा बाहरी त्वचा पर पसीने के रूप में स्राव होता रहता है, उनके स्राव के रुक जाने पर भी फुन्सियाँ हो जाती है । युवावस्था में युवक तथा युवतियों के मुँह पर भी फुंन्सियाँ प्रकट होती हैं, उन्हें ‘मुँहासा’ कहते हैं। मुँह के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर भी ऐसी फुन्सियाँ हो सकती हैं।
फुन्सियों तथा मुँहासों की चिकित्सा के लिए लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभकर सिद्ध होती हैं :-
कार्बो-वेज 6, 30 – युवक-युवतियों के मुँहासों तथा फुन्सियों की नयी बीमारी में लाभकर है ।
कार्बो-ऐनीमैलिस 30 – चेहरे पर लाल रंग की फुन्सियों में हितकर है ।
रेडियम-ब्रोम 30 – इसे सप्ताह में एक बार देना चाहिए । यह फुन्सियों तथा मुँहासों की पुरानी बीमारी में हितकर है ।
कैलि-ब्रोम 30 – फुन्सियों की पुरानी बीमारी में हितकर है। डॉ० क्लार्क के मतानुसार सामान्य फुन्सियों की यह सर्वश्रेष्ठ औषध है। मुहाँसों तथा चमकीली लाल रंग की फुन्सियों के लिए ‘कैलिब्रोम 3x’ देना चाहिए ।
बेलाडोना 30 – यह हट्टे-कट्टे तन्दुरुस्त तथा रक्तपूर्ण शरीर वाले लोगों के मुँह की फुन्सियों में लाभकारी है ।
एसिड-फॉस 30 – दुबले-पतले व्यक्तियों की मुँह की फुन्सियों (मुँहासों) के लिए हितकर है ।
पल्सेटिला 30 – मासिक-धर्म की गड़बड़ी के कारण लड़कियों के मुँह पर निकलनेवाली फुन्सियों के लिए हितकर है।
बर्बोरिस एक्वीफोलियम Q – इस औषध के मूल-अर्क की 2 बूंदें प्रतिदिन दो बार देने से युवा-युवतियों के चेहरे की फुन्सियाँ (मुँहासे) ठीक हो जाते हैं। इस औषध का प्रयोग करते समय बीच-बीच में ‘सल्फर 30, 200’ सप्ताह में एक बार देते रहना हितकर रहता है ।
सल्फर 30 – चमकीली लाल रंग की परानी फुन्सियों में यह औषध लाभकारी है । मुँहासों की अन्य औषधियों के साथ इसे भी बीच-बीच में देते रहना हितकर रहता है ।
कार्बो ऐनिमेलिस 6 अथवा हाइड्रोकोटाइल 3x – स्त्रियों की जरायु की गड़बड़ी से उत्पन्न लालरंग की चमकीली फुन्सियों में, इनमें से किसी एक औषध का सेवन करना चाहिए ।
रसटाक्स 3 अथवा रेडियम ब्रोम 30 – पुरानी कठिन बीमारी में इनमें से किसी भी एक औषध की सप्ताह में एक मात्रा सेवन करनी चाहिए । बालों वाली जगह पर अथवा हथेली पर एक जगह ठीक होकर दूसरी जगह निकल आने वाली फुन्सियों में इस औषध को 30 तथा 200 शक्ति में देना हितकर रहता है । मलेरिया-ज्वर तथा वात-व्याधि के साथ होने वाली फुन्सियों-जिनमें खुजली भी मचती हो में भी लाभकर है ।
आर्स-आयोड 3x – कठिन बीमारी में इसे नया तैयार करके तथा प्रकाश से दूर रखते हुए, सप्ताह में एक बार भोजन के बाद सेवन करना चाहिए। मुँहासे, बार्बर्सइच तथा एक्जिमा आदि कष्ट-साध्य रोगों में भी यह लाभकर है ।
ऐनामेलिस 3 – हथेली पर ऐसी फुन्सियाँ, जो जहाँ निकली हो, ठीक होने के बाद फिर वहीं निकल आती है ।
क्लोरेलम 1x – त्वचा पर लाल दाने जैसी फुन्सियों एवं पित्ती जैसे चप्पड़ों में लाभकारी है ।
कैल्केरिया-फॉस 200 – युवतियों के मुँहासों में हर तीसरे दिन एक मात्रा देने से लाभ होता है ।
सार्सापैरिल्ला 1, 3, 6 – ऋतुकाल में स्त्रियों में खुजली मचने वाले दानों तथा उसी समय दायीं जाँघ के मोड़ के उदभेदों में होने वाले दानों के लिए हितकर है ।
सेलेनियम 30 – त्वचा के मोड़ों, विशेषत: जोड़ों पर तथा गिट्टे के जोड़ पर निकलने वाले फुन्सी जैसे दानों में हितकर है ।
ऐन्थ्राकोकैली 3x – यह त्वचा के अनेक रोगों में लाभकर है । अण्डकोष, हाथ, कन्धे तथा घुटनों के नीचे की हड्डी आदि पर दाने, फुन्सी एवं नथुनों का फटना आदि में हितकर है। इस औषध का रोग पूर्णिमा को घट जाया करता है।
लोबेलिया 3 – अँगुलियों, हथेली के पृष्ठभाग तथा छोटी बाँह पर खुजली वाले दानों में लाभकर है ।
क्रोटन-टिग 6, 30 – जननेन्द्रिय, अण्डकोष, आँख तथा खोपड़ी पर खुजली वाली फुन्सियों में लाभकर है।
कार्डअस Q – वक्षास्थि के नीचे त्वचा पर खुजली वाले दानों में दें। ऐसे दाने प्राय: जिगर के रोग के कारण उत्पन्न होते हैं ।
ओलियेण्डर 3, 30 – खोपड़ी पर खुजली-युक्त उदभेद, जिनमें सिर में जू पड़ जाने जैसी खुजली मचती हो तथा खुजाने के बाद चुभनयुक्त दर्द होता हो, में दें ।
ऐपिस 30 – त्वचा पर अचानक ही ऐसे लाल रंग के दानों का उभर आना, जिनमें खुजली, जलन तथा चुभन होती हो, में हितकर है । ऐसे दाने प्राय: ठण्ड लगने तथा मलेरिया-ज्वर के कारण उत्पन्न हो जाया करते हैं।
आर्सेनिक 30 – ‘एपिस’ जैसे परन्तु आकार में उनसे छोटे दाने । यदि ऐसे दाने मछली खाने के कारण उत्पन्न हुए हों, तो उनमें यह विशेष रूप से लाभकारी है।
पिक्स लिक्विडा 1, 6 – हथेली के पृष्ठ-भाग पर हो जाने वाली ऐसी फुंन्सियाँ, जिनमें खुजली मचती हो तथा खुजाते-खुजाते खून निकल आता हो में हितकर है।
कैल्के-कार्ब 6 अथवा एसिड-नाइ 6 – स्त्रियों के मुँहासों के लिए इनमें से किसी भी एक औषध का सेवन लाभकारी रहता है ।
विन्का-माइनर 3 – मुँह, खोपड़ी तथा कान के पर्दे के पीछे निकलने वाली तथा दुर्गन्धित स्राव वाली ऐसी फुन्सियाँ, जिनका स्राव सूखकर छिलके का रूप धारण कर लेता हो और उसके नीचे पस (मवाद) सड़ता रहता हो – में यह औषध लाभ करती है । ऐसी फुन्सियों के कारण बाल झड़ जाते हैं तथा उनके स्थान पर सफेद बाल उग आते हैं, जिनके नीचे से स्राव निकलता रहता है और वे आपस में सट भी जाते हैं। ऐसे स्थानों पर खुजली भी मचती है।
पैट्रोलियम 3, 30, 200 – ऐसी फुन्सियाँ, जिनमें खुजली इतनी अधिक मचती है कि उन्हें खुजाते-खुजाते खून निकल आता है तथा उसके बाद आराम का अनुभव भी होता है ।
कैल्केरिया पिकरेटा 3x, 6x – युवकों के मुँहासों में इस औषध को नित्य एक-दो महीने तक सेवन कराते रहने से लाभ होता है ।
सैंगुइनेरिया 6 – यह औषध मुँहासों के लिए हितकर है। जिन स्त्रियों को रजोधर्म की अनियमितता अथवा ऋतु-स्राव कम आने के कारण चेहरे पर फुन्सियाँ हो जाती हों, उनके लिए विशेष लाभकर है।
ऐस्टेरियास रूबेन्स 6 – युवावस्था में चेहरे पर फुन्सियाँ (मुँहासे) होने की प्रवृति एवं नाक, ठोड़ी तथा मुँह पर फुन्सियों में लाभकारी है । इसे मुँहासों की स्पेसिफिक-औषध माना जाता है ।
सल्फर-आयोडाइड 3x – किसी भी प्रकार की चेहरे की फुन्सियाँ, त्वचा के कष्ट-साध्य रोग – मुँहासे, बार्बर्स-ईंच, बहने वाली एक्जिमा आदि में लाभकारी है।
हाइड्रो-क्रोटाइल 6 – जरायु के गड़बड़ी के कारण चेहरे पर उत्पन्न होने वाली फुन्सियों में लाभकर है।
डल्कामारा 30 – मासिक-धर्म होने से पूर्व चेहरे पर होने वाली फुन्सियों में हितकर है ।