कारण – अधिक खान-पान के कारण पाकाशय का नीचे का मुँह जब बन्द हो जाता है, तब इस रोग की उत्पत्ति होती है । रोग के बहुत पुराने हो जाने पर, शरीर के अन्य-यन्त्र भी विकार-ग्रस्त हो सकते हैं।
लक्षण – पेट बढ़ जाना, अधिक कब्ज, खट्टी वमन, वमन का रंग रबर जैसा तथा गंदला होना ।
चिकित्सा – इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ हितकर हैं :-
नक्स-वोमिका 3x, 30 – खान-पान की गड़बड़ी अथवा पाकाशय की दीवारों के कमजोर हो जाने पर इसके प्रयोग से दुर्बल माँसपेशियाँ सशक्त हो जाती हैं। ।
सिपिया 30 – रोगी का शरीर दुर्बल तथा पीला हो, खट्टी वस्तुएँ खाने की इच्छा, यकृत्-दोष, मुख में तिता अथवा नमकीनपन, अजीर्ण, खाद्य, पित्त अथवा श्लेष्मायुक्त वमन, अधिक स्राव अथवा पीब-युक्त श्वेत प्रदर अथवा वायु का बाहर निकल जाना, पाकाशय के निम्न भाग का कठोर तथा भारी अनुभव होना तथा बदरंग पेशाब आदि लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।
हाइड्रैस्टिस Q, 3 – पाकाशय की दीवार का मोटा अथवा जख्मयुक्त होना, खाई हुई वस्तुओं की वमन, खट्टी डकारें आना, जीभ तर अथवा लेप चढ़ी, रक्ताल्पता, कलेजे में धड़कन, तलपेट में दर्द, सामने कपाल में दर्द, आंवयुक्त, थक्का-थक्का पाखाना तथा पाकाशय में खालीपन का अनुभव-इन सब लक्षणों में इस औषध के प्रयोग से लाभ होता है ।