लक्षण – हाथ अथवा पाँव में घाव हो जाने एवं कटी हुई जगह से किसी जीवाणु के शरीर में प्रविष्ट हो जाने पर, स्नायुओं में उत्तेजना हो जाने के कारण यह रोग हो जाता है। इस रोग के जीवाणु प्राय: घोड़े की लीद में अधिक पाये जाते हैं। ये जीवाणु ही इस रोग की उत्पत्ति के मुख्य कारण हैं ।
इस रोग में सर्वप्रथम मुँह फाड़ने की शक्ति नहीं रहती, गर्दन कड़ी तथा अकड़ी हुई हो जाती है, गले में दर्द होता है तथा जबड़े बन्द हो जाते हैं, परन्तु रोगी का चेहरा प्रसन्न दिखाई देता है। फिर चेहरे की पेशियाँ कड़ी होकर आक्षेप या खिंचाव आरम्भ होता है। उस समय रोगी टकटकी लगाकर देखने लगता है। अन्त में, अकड़न उत्पन्न होकर सम्पूर्ण शरीर धनुष की भांति टेढ़ा हो जाता है। कोई रोगी सामने की ओर, और कोई पीछे की ओर झुक जाता है। यह रोग किसी भी आयु में हो सकता है । सामान्यत: उन नवजात शिशुओं को-जिनके पाँव में किसी कारण जख्म हो गया हो-यह रोग होने का भय अधिक होता हैं । बच्चे की नाभि के मार्ग के घाव से भी इस रोग के कीटाणु उसके शरीर में प्रविष्ट हो सकते हैं । नाल काटते समय गन्दे औजार अथवा कपड़े का संसर्ग होने से भी इस रोग के कीटाणु बालक के शरीर में प्रविष्ट हो जाते हैं ।
इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित होम्योपैथिक औषधियाँ लाभ करती हैं :-
लीडम 30, 200 – शरीर में कहीं चोट लगने पर टिटनस होने की सम्भावना हो सकती है तथा जबड़ा बैठ सकता है। ऐसी स्थिति में तुरन्त ही इस औषध का प्रयोग करना चाहिए। यह एण्टी-टिटनस औषध है। मनुष्यों के अतिरिक्त पशुओं के लिए भी इस रोग में लाभ करती हैं ।
हाइपेरिकम 3, 200 – यदि लीडम का समय निकल गया हो तथा चोट लगने वाले स्थान में दर्द उतरने-चढ़ने लगा हो तो फिर इस औषध को दे देना आवश्यक है। इसके प्रयोग से जबड़ा बैठना, पीठ का धनुषाकार हो जाना आदि भयंकर कष्टों से छुटकारा पाया जा सकता है। टिटेनस की आशंका होते ही पहले लीडम और फिर हाइपेरिकम का क्षेत्र आता है ।
नक्स वोमिका 30 – यह इस रोग की मुख्य औषध मानी जाती है । पीठ का धनुष की भाँति डेढ़ा मुड़ जाना, आँख तथा चेहरे में टेढ़ापन, श्वास का भारी हो जाना, तथा हाँफने लगना आदि लक्षणों में इसे देना चाहिए । मानसिक-लक्षणों की प्रधानता में यह औषध विशेष लाभ करती है ।
इग्नेशिया 30 – यदि टिटनस के लक्षण उद्वेग-प्रधान हों तथा जबड़ा बैठने एवं पीठ के धनुषाकार हो जाने के लक्षण प्रकट हो गये हों तो नक्स के स्थान पर इस औषध को देना चाहिए ।
हायड्रोसायनिक-ऐसिड 6 – जबड़े का बैठ जाना, साँस रुकना, मुँह से झाग आना, शरीर में अकड़न, पीठ का पीछे की ओर मुड़ जाना तथा रोग का अचानक आक्रमण होना-इन लक्षणों में यह औषध भी बहुत लाभ करती है। इसका मेरुदण्ड पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
फाइज़ोस्टिग्मा 3 – मेरुदण्ड की उत्तेजना, मेरुदण्ड तथा टांगों का अकड़ जाना, आँखों की पुतलियों का कभी फैलना और कभी सिकुड़ जाना-इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।
साइक्यूटा-विरोसा 6, 30, 200 – अचानक ही शरीर का कड़ा पड़ जाना, आक्षेप पड़ना, अंग-स्फुरण के बाद शरीर का अत्यधिक शक्तिहीन हो जाना, साँस में रुकावट, जबड़े का अकड़ जाना, रोगी का पीठ की ओर अकड़ जाना एवं स्पर्श करने पर अकड़न का पुन: हो जाना, भोजन नली में आक्षेप तथा रोगी द्वारा किसी एक बिन्दु (वस्तु) पर आँख जमाये रखना-इन सब लक्षणों में यह औषध बहुत लाभ करती है।
कार्बोलिक-ऐसिड 3, 30 – टिटनस रोग की यह भी अत्यन्त प्रभावशाली औषध मानी जाती है ।
स्ट्रैमोनियम 30 – टिटनस के आक्षेप, छाती में आक्षेप तथा रोशनी एवं स्पर्श द्वारा रोग के बढ़ने में लक्षणों में यह हितकर है।
ऐकोनाइट 30 – यदि नवजात-शिशु के जबड़े जकड़ गये हों, उसे ज्वर हो और बेचैनी से चिल्लाता हो तो इसे देना हितकर रहता है ।
जेल्सीमियम 30 – जो रोगी अपने जबड़े को इधर-उधर हिलाता हो, उसके लिए उपयोगी है ।
बेलाडोना 30 – बच्चों को अकड़न पड़ जाने एवं जबड़ा जकड़ जाने के लक्षणों में हितकर है ।
टिटनस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग करना चाहिए :-
(1) टिटनस में यदि जोर की खींचन न हो – हाइपेरिकम Q, 30, नक्सवोमिका 1x, इनान्थि 3x, आर्निका 3, हाइड्रोसियानिक एसिड 3 ।
(2) यदि थोड़ा दबाने से ही दर्द का अनुभव होता हो तो – आर्निका 3 ।
(3) यदि चेहरा नीला पड़ गया हो – इनान्थि 3x ।
(4) अभिघात से उत्पन्न धनुष्टंकार में बहुत तीव्र अकड़न होने पर-एसिडहाइड्रो 3, 30 ।
(5) अभिघात से उत्पन्न हुए टिटनस में रह-रहकर अकड़न हो तथा रोगी पीछे की ओर झुक गया हो तो – नक्स-वोमिका 6 ।
(6) अकड़न के समय सर्दी का अनुभव हो तथा पसीना आता हो तो – ऐकोनाइट रेडिक्स 1x ।
(7) सम्पूर्ण शरीर की पेशियाँ सख्त हो जाने पर – फाइसोस्टिग्मा 3 ।
(8) शरीर का कड़ा होना, अंगों का टेढ़ा होना, बहुत देर बाद अकड़न छूटना, बेहोशी, टकटकी लगाकर देखते रहना, श्वास में कष्ट, चेहरे पर लाली, मुँह से फेन निकलना तथा पीछे की ओर झुक जाने के लक्षणों में – साइक्यूटा विरोसा 6।
(9) चोट से उत्पन्न हुए टिटनस में श्वासावरोध की तैयारी तथा सम्पूर्ण शरीर के कभी नरम तथा कभी कड़ा होने के लक्षणों में – नक्स वोमिका 3x ।
- चोट वाले स्थान पर कैलेण्डुला-लोशन (कैलेण्डुला मूल-अर्क 1 ड्राम को 1 औंस पानी में डाल कर तैयार कर लें) का फाहा रखें ।
- अधिक तेज अकड़न हो तो क्लोरोफार्म सुंघाया अथवा ब्रोमाइड आफ पोटाशियम सेवन कराया जा सकता है।
टिप्पणी – रोगी को जमीन पर लिटाना उचित है । चारपाई आदि पर लिटाने से उसके सिर पर चोट लगने का खतरा रहता है ।