जिस प्रकार पुरुष के अण्डकोषों से ‘शुक्र-कीट’ उत्पन्न होते हैं, उसी प्रकार स्त्री की डिम्ब-ग्रन्थियों से ‘डिम्ब’ उत्पन्न होते हैं । इन ग्रन्थियों को ‘डिम्बकोष’ भी कहा जाता है । इनमें होने वाले विभिन्न उपसर्गों की चिकित्सा के विषय में आगे लिखे अनुसार समझना चाहिए ।
इस रोग में डिम्बकोष में प्रदाह के साथ जलन होती है । यह रोग नया तथा पुराना-दो प्रकार का होता है । ऋतु के समय सर्दी लगना, सहवास के कारण रज: बन्द हो जाना, चोट लगना तथा तेज मितली आदि कारणों से ‘नया-प्रदाह’ उत्पन्न होता है । नई बीमारी सहज ही अच्छी नहीं होती, तब वही ‘पुराने प्रदाह’ के रूप में बदल जाती है । इसमें उरु-सन्धि के कुछ ऊपर दर्द, कनकनाहट, दबाने अथवा हिलाने-डुलाने से दर्द में वृद्धि, संगमेच्छा, ज्वर तथा वमन आदि लक्षण प्रकट होते हैं ।
नये प्रदाह में निम्नलिखित होम्योपैथिक औषधियाँ लाभ करती हैं :-
ब्रायोनिया 30 – डॉ० जहार के मतानुसार यह इस रोग की श्रेष्ठ औषध है । गहरी साँस लेने पर डिम्बकोष में सुई बेधने जैसा दर्द, स्पर्श-असहिष्णुता तथा दाईं डिम्ब-ग्रन्थि से तीव्र दर्द का उठकर जाँघ तक फैल जाना-इनमें हितकर है ।
कोलोसिन्थ 6, 30 – यदि ‘ब्रायोनिया’ से लाभ न हो, रुग्णा दर्द की बेचैनी के कारंण दुहरी हुई जाती हो तथा पीड़ा वाले स्थान को दबाने से उसे कुछ आराम का अनुभव होता हो तो इस औषध का प्रयोग करना चाहिए ।
एपिस 6, 30 – डॉ० फैरिंगटन के मतानुसार दाईं डिम्ब-ग्रन्थि में सूजन, स्पर्श-असहिष्णुता, जलन एवं डंक लगने जैसे दर्द के लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।
लैकेसिस 6, 30 – यह औषध बाईं डिम्ब-ग्रन्थि की सूजन तथा प्रदाह में लाभकर है । डॉ० हैरिंग के मतानुसार यदि डिम्ब-ग्रन्थि में पस पड़ जाय तो भी यह औषध लाभ करती है। इसके रोगी में स्पर्श-असहिष्णुता भी पाई जाती है ।
आर्सेनिक 30 – डिम्ब-ग्रन्थि की सूजन में यदि सेंक से आराम मिलता हो तथा रुग्णा को थोड़ी-थोड़ी देर बाद घूंट-घूंट पानी की प्यास लगती हो तो इस औषध का प्रयोग लाभ करता है ।
हिपर-सल्फर 30 – डिम्ब-ग्रन्थि में पस पड़ जाने पर इसे दें।
प्लैटिना 6x, 30 – डॉ० फैरिंगटन के मतानुसार डिम्ब-ग्रन्थियों में पस पड़ जाने पर यदि ‘लैकेसिस’ तथा ‘हिपर’ से लाभ न हो तो इस औषध के सेवन से लाभ होता है । इस औषध की रोगिणी अपनी टाँगों को अलग-अलग फैलाकर सोती है तथा उसकी डिम्ब-ग्रन्थियों में जलन होती है ।
बेलाडोना 3x – सुई गढ़ने जैसा दर्द होने पर इसे दें।
एकोनाइट 3x – सर्दी लगने के कारण ऋतु बन्द हो जाने पर उत्पन्न हुए प्रदाह तथा पेशाब के कष्टकर में हितकर है ।
विशेष – इनके अतिरिक्त लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों के प्रयोग की आवश्यकता भी पड़ सकती हैं :- पल्सेटिला 6, मर्क-कोर 6, फेरम-फॉस 12x वि०, हैमामेलिस 6 ।
पुराने-प्रदाह में निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं:-
कोनियम 3 – डिम्बकोष का कड़ापन (पीव न पैदा होने तक की अवधि में), स्वल्प-रज: स्राव एवं बाँझपन के लक्षणों में इसका प्रयोग हितकर है ।
प्लैटिना 6 अथवा ग्रैफाइटिस 30 – ‘कोनियम‘ से लाभ न होने पर, इनमें से किसी एक का प्रयोग करें ।
थूजा 6 – ‘कोनियम‘ से लाभ न होने पर तथा बाँयीं ओर के डिम्बकोष के कड़े होने पर इसका प्रयोग करें ।
लैकेसिस 6 – डिम्बकोष की पीव भरी हालत में इसका प्रयोग लाभकर है । डॉ० हेरिंग के मतानुसार डिम्बकोष में पीव भर जाने की यह एकमात्र औषध है ।
डॉ० हयूज का मत निम्नानुसार है :-
मर्क-कोर 6 – पीव पैदा होने की आशंका में।
सिलिका 6 या हिपर-सल्फर 6 – पीव पैदा हो जाने पर ।
चायना 6 या फास्फोरिक-एसिड 6 – यदि पीव निकलने के कारण रुग्णा बहुत क्षीण हो गई हो ।
नाइट्रिक-एसिड 6, 30, पल्स 30 अथवा आरम-मेट 3, 200 – सूजाक के साथ डिम्ब-कोष प्रदाह होने पर ।
मर्क 6 – सूजाक के साथ डिम्ब-कोष प्रदाह होने पर, यदि पहले पारा प्रयोग में न लाया गया तो इसे दें ।
विशेष – पुराने डिम्ब-कोष प्रदाह में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ भी लाभ करती हैं:- लिलियम 6, सिमिसि 30, आरम-म्यूर 3 वि०, कैल्केरिया-फॉस 6x ।