मूड स्विंग का होम्योपैथिक इलाज
इस लेख में हम mood swing के एक केस की चर्चा करेंगे कि कैसे होम्योपैथिक दवा से इस समस्या का समाधान किया गया।
यह केस 22 वर्षीय महिला का है जिसे मासिक धर्म के पहले mood swing हुआ करता था।
इसके बारे में पूछने पर उसने बताया कि :- मुझे रोने का मन करता है, मैं Low fee करती हूँ। मासिक धर्म से 2 दिन पहले बहुत रोना आता है।
मासिक धर्म के ठीक होने के बाद मैं ठीक हो जाती हूँ। मुझे अपनी मां का साथ चाहिए। मेरे हर फैसले बुद्धि के बजाय भावनात्मक होते हैं।
मैं चीजों को बहुत आसानी से स्वीकार कर लेती हूं, मैं अडिग नहीं रह सकती, यहां तक कि मैं किसी बात में अपनी राय भी नहीं रख सकती हूँ ।
मैं स्कूल के दिनों से ही रोजाना सिर दर्द से पीड़ित रही हूँ, जब भी मैं ज्यादा मेहनत करती हूं या जब मैं धूप में बाहर जाती हूं तो मेरा सिर दर्द होने लगता है। सोने से सिर दर्द ठीक हो जाता है।
मैं अपने दोस्तों और फॅमिली मेंबर को manage नहीं कर पाती हूँ। मुझे लगता है जैसे कि मैं सब कुछ adjust कर रही हूँ । मेरा वजन भी तुरंत बढ़ जाता है। थोड़ा भी डाइट अधिक हुआ कि वजन बढ़ जाता है।
जब मैं अपनी बात किसी से share करती हूँ तो बहुत महसूस करती हूं। घर से बाहर निकलना खुद के दम पर कुछ करना मुझे पसंद है।
मुझे Metal से एलर्जी है, मैं सेफ्टी-पिन का स्पर्श भी सहन नहीं कर सकती। मुझे सच्चे रिश्ते की ख्वाहिश है।
शारीरक लक्षण देखें तो :- मासिक धर्म से 2 दिन पहले रोने की इच्छा, पैर और पीठ में दर्द भी होता है। प्यास – अधिक, 2-3 लीटर/दिन, ठंडा पानी पीना पसंद करती है। इच्छाएं – गर्म भोजन, मिठाई, पनीर, नमक
पसीना- सामान्य, त्वचा- सूखापन –
अब मामले को समझते हैं :-
मैंने देखा कि पूरे मामले में रोगी माँ के साथ संबंध के मुद्दों के बारे में बात करती है, भावनात्मक मुद्दों के बारे में, वह आसानी से दूसरों से प्रभावित हो जाती है और अपनी राय नहीं रख पाती।
किसी का साथ चाहती है। माँ से अलग होने का डर भी है। इस आधार पर मैंने उसे Placenta 1M की एक खुराक दिया।
करीब 2 महीने में रिपोर्ट मिला कि रोगी की भावनात्मक स्थिति पहले से काफी बेहतर है। वह कहती है कि अब वह कभी-कभार ही रोती है। मैं पहले से कहीं ज्यादा मजबूत महसूस कर रही हूं।
त्वचा की खुश्की में सुधार हुआ है। 9 किलो वजन भी कम हुआ है। रोगी में आत्मविश्वास आ गया है।
Placenta के बारे में मुख्य बात को धयान में रखना चाहिए – In Placenta, the desire for connection is stronger than fear of separation & survival after separation.
Video On Mood Swings
ऐसा रोग मानव प्रगति के साथ-साथ विकसित होता है। वैज्ञानिक अनुसंधानों का अच्छा या बुरा प्रभाव सामाजिक जीवन पर पड़ रहा है, लेकिन ये रोग कोई नई बीमारी नहीं है। जन्मोपरांत मानव संघर्षो के बीच घिर जाता है। संघर्षो की परिधियां असीम है। यह संघर्ष आदि से अन्त तक अनवरत चला करते है । इन्हीं संघर्षो के कारण ही यह रोग भी पनपने लगता है। इस रोग से पीड़ित लोग जब इधर-उधर की हरकतें करने लगता था तो लोग देवी-देवता का प्रकोप या जादू-टोना का असर समझ उसकी झाड़-फूंक करते थे और रोगी को पागल समझ लेते है, परन्तु वास्तव में वह पागल नहीं होता है। वह अन्य बीमारियों की तरह एक मात्र रोग है, जिसका उपचार संभव है। मूड स्विंग की कोई एक निश्चित परिभाषा नहीं है । दो स्थितियां है मेनिया और डिप्रेशन। मेनिया बीमारी की प्रथम स्थिति है। इसमें रोगी हवा में तैरने जैसे हल्कापन महसूस करता है। मस्तिष्क में विचारों का जमघट लगने लगता है। एक विचार समाप्त नही होता कि दूसरा विचार शुरू हो जाता है । विचारों का दबाव बढ़ने पर वह बोलना शुरू कर देता है और तेजी से बोलता ही रहता है उसके मन में न कोई दुःख होता है और न कोई अवसाद।
मेनिया के लक्षणों को तीन भागों में बांटा गया है :
- मूड स्विंग
- विचारों की भीड़-भाड़
- साइको मोटर एक्टीविटी यानी रोगी सक्रिय रहता है।
कभी-कभी मेनिया के रोगी में तीनों लक्षण पाये जाते है और कभी इनमें कोई एक प्रमुख रहता है। चिड़चिड़ापन, संदेह, भ्रम आदि अन्य लक्षण है।
मेनिया में रोगी को खबर नहीं रहती है कि वह कहां क्या कर रहा है। रोगी की स्थिति एक सी नहीं रहती। शुरूआत होती है और फिर कम हो जाती है। रोग से मुक्ति पाने के बाद रोगी की स्थिति डिप्रेसिव स्टेज में आ जाती है।
डिप्रेशन के भी तीन लक्षण है :- मेनिया में जहां विचार आते है और चले जाते है, डिप्रेसन में वहां सोचने में कठिनाई होती है। कोई विचार दिमाग में नहीं आता है। इसमें रोगी नितांत शांत रहता है। अवसाद की स्थिति सदैव बनी रहती है। चलना, फिरना, दौड़ना रोगी को अच्छा नहीं लगता है। वह चुपचाप स्थिर रहता है।
डिप्रेशन के रोगी में तीन प्रकार के भ्रम प्रमुख होते है
- Hypochondria: इसमें रोगी को अपने स्वास्थ्य की चिंता बढ़ जाती है।
- सेल्फ एक्यूजेटरी इसमें रोगी स्वयं को अपराधी मानता है। सारे दुर्भाग्यों की जड़ स्वयं को समझता है, जैसे- मै पापी हूं, मुझे सजा मिलनी चाहिए… आदि वह कहता रहता है और वह अपने लिए एक ही स्थान उपर्युक्त समझता है जहां उसके गुनाहों की सजा मिल सकती है।
- पर्सिक्यूटरी : रोगी को सबके प्रति संदेह हो जाता है । अमुक व्यक्ति उसका पीछा कर रहा है। वह हमें जान से मार देगा… आदि का भय सदैव बना रहता है। रोगी को आकुलता रहती है और चिड़चिड़ापन भी रहता है।
अगर डिप्रेशन सीवियर है तो रोगी बिस्तर पर ही पड़ा रहता है। कपड़े बदलना, खाना खिलाना आदि सभी काम दूसरों को करना पड़ता है । वह मौन पड़ा रहता है उसके मन में एक ही भावना प्रबल रहती है ‘मरने की’ ।
डिप्रेशन के रोगी का चेहरा उदास, भौहे सिकुड़ी हुई, आंखें भावहीन और अपनी आयु से अधिक उम्र का मालूम लगने लगता है। डिप्रेशन किसी भी प्रकार का हो इसके रोगी को आत्महत्या का भय सदैव बना रहता है। अत: डिप्रेशन के लक्षणों के सिद्ध हो जाने के बाद रोगी से सतर्क रहना आवश्यक हो जाता है। कभी-कभी मेनिया और डिप्रेशन दोनों एक साथ हो जाते है तो यह स्थिति रोगी के लिए गंभीर हो जाती है, परन्तु ऐसा बहुत कम होता है। प्रायः मेनिया के बाद ही डिप्रेशन होने लगता है, लेकिन इसका कोई निश्चित नियम नही है।