सिफलिस को हिन्दी में उपदंश या फिरंग या गर्मी रोग कहते हैं। यह एक संक्रामक यौन रोग है जो ऐसे स्री-पुरुष के सम्पर्क में आने वालों को होता है जो पहले से ही सिफलिस से ग्रस्त हो अर्थात् यह एक छूत का रोग है।
परस्त्रीगमन व परपुरुषगमन के अलावा उन्हें भी यह रोग होता है जो भले ही यौन सम्बंध न करते हों पर ऐसे रोगी स्त्री या पुरुष के निकट सम्पर्क में रहते हों, उनके वस्रों का इस्तेमाल करते हों। सिफलिस वंशानुगत भी हो सकती है। इस रोग की तीन अवस्थाएं होती हैं :
प्राथमिक अवस्था : सिफलिस रोग से ग्रस्त व्यक्ति के साथ सहवास करने वाले व्यक्ति (स्त्री या पुरुष) को यह रोग लगभग 15-20 दिन में हो जाता है। जिस किसी को यह रोग होता है, उसकी जननेन्द्रिय पर मटर के दाने के बराबर एक फुंसी हो जाती है जो लाल रंग की और कठोर होती है। इसमें दर्द नहीं होता।इस फुंसी कां बीच का भाग नीचा और चारों तरफ के किनारे ऊंचे होते हैं। यह फुंसी जब फूटकर घाव बन जाती है तो इसमें पस (पीप) पड़ जाता है। इस घाव को कैंकर कहते हैं।
दूसरी अवस्था : थोड़े दिन बाद यह घाव सूख सकता है, जिससे भ्रम होता है कि रोग दूर हो गया, पर ऐसा नहीं होता और लगभग छ: सप्ताह बाद इसके लक्षण पुनः प्रकट होते हैं। इतने समय में सिफलिस का प्रभाव शरीर के अंदर रक्त के माध्यम से फैल जाता है जिस से गले व मुंह में छाले व घाव होना, सिर व हड्डियों में दर्द होना और गुदा द्वार के आसपास मस्से हो जाते हैं। त्वचा पर लाल चकत्ते पड़ जाते हैं, टॉन्सिल्स सूज जाते हैं, मुंह में लार भरी रहती है व दुर्गध आने लगती है।
तीसरी अवस्था : यदि समय रहते उचित इलाज न किया जाए, तो सिफलिस रोग गम्भीर अवस्था में पहुंच जाता है। इस अवस्था में शरीर की हड्डियां गलने लगती हैं, नाक की हड्डी गल जाती है, नाक पिचक जाती है, शरीर में गाँठे हो जाती हैं, अण्डकोषों का आकार बढ़ जाता है और वे कठोर हो जाते हैं। इस अवस्था में इलाज होना मुश्किल होता है।
सिफलिस का होम्योपैथिक उपचार
प्राथमिक अवस्था में ‘सिफिलाइनम’ औषधि 1000 शक्ति की तीन खुराक लें। अगले दिन से ‘मर्कसॉल’ 200 व ‘नाइट्रिक एसिड’ 200 की दो खुराक (सुबह-शाम) नौ दिन तक लें। तत्पश्चात् सिफिलाइनम 1000 शक्ति में पुनः तीन खुराक लें इसके बाद एक सप्ताह तक ‘मर्ककॉर’ 30 शक्ति में लें। इस क्रम से एक माह तक औषधीय सेवन करें। यदि लाभ न हो तो निश्चित रूप से रोग की द्वितीय अवस्था प्रारम्भ हो चुकी है जिसमें योग्य चिकित्सक की देखरेख में ही औषधि लेनी चाहिए।
दवा लेने के साथ-साथ घाव की सफाई भी आवश्यक है। घाव को साफ पानी व पोटाशियम परमैंगनेट (लाल दवा) से धोकर कोई एण्टिसेप्टिक पाउडर लगा लें।
सिफलिस रोग में लक्षणों की समानता के आधार पर ‘ओरममेट’ उच्च शक्ति में व ‘काली हाइड्रोयडिकम’ निम्न शक्ति में उपयोगी रहती हैं।
सोयाबीन-एक स्वस्थ पोषक आहार
विशेषज्ञों के अनुसार जिन देशों में सोयाबीन का सेवन वहां के निवासियों द्वारा नियमित रुप से किया जाता है, वहां के लोगों को हृदय रोग होने का खतरा कम होता है। सोया कोलेस्ट्रौल रहित होता है। एक शोध के अनुसार प्रतिदिन दो गिलास सोया दूध का सेवन बढ़े कोलेस्ट्रॉल के स्तर को 25 प्रतिशत तक कम करता है। सोया प्रोटीन अत्यंत पोषक होता है और इसमें सभी जरूरी अमीनो एसिड शामिल होते हैं। सोया दूध में गाय के दूध से आधी कैलोरी और वसा की मात्रा पाई जाती है। इसमें संतृप्त वसा की मात्रा बहुत ही कम होती है। इसमें प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं। सोया आयरन, जिंक, मैग्नीशियम और बी विटामिन का अच्छा स्रोत है। सोया 100 प्रतिशत पाच्य होता है। सोया का अधिक सेवन स्तन कैंसर के होने की संभावना को भी 50 प्रतिशत तक कम करता है क्योंकि इसमें पाए जाने वाले फाइटोएस्ट्रोजन हार्मोन रक्त में एस्ट्रोजन के अधिक स्तर को (कम करते हैं जो स्तन कैंसर का एक कारण है।