दूध में अनेक गुण हैं और यह सम्पूर्ण आहार है। प्रकृति ने नवजात शिशु के लिए सिर्फ दूध की ही व्यवस्था कर रखी है। शरीर के विकास के लिए दूध में समस्त आवश्यक एवं पौष्टिक तत्त्व होते हैं। यूं तो शिशु के लिए माता का दूध ही सर्वाधिक उपयुक्त रहता है, लेकिन यदि माता अस्वस्थ हो, बहुत कमजोर हो, पर्याप्त मात्रा में दूध न आता हो या माता का दूध किसी रोग के कारण दूषित हो गया हो, तो इन सब स्थितियों में शिशु को माता का दूध पिलाना उचित नहीं होता। यदि माता स्वस्थ और निरोग शरीर की हो, तब तो उसे अपना दूध अवश्य ही पिलाना चाहिए। ऐसी स्थिति न हो तो फिर गाय या बकरी का दूध पिलाना ही बेहतर रहता है।
माताओं को यह ध्यान रखना आवश्यक है कि दूध निश्चित समय पर पिलाया करें और इस बात का ख्याल रखें कि दूध पिलाते समय, किसी भी कारण से उसका शरीर गर्म न हो, ज्यादा थका हुआ न हो, विचार अच्छे हों, मन प्रसन्न हो। क्रोधित, शोकपूर्ण, दुखी और कुंदन वाली मन: स्थिति में बच्चे को दूध नहीं पिलाना चाहिए। पालथी लगाकर बैठकर, बच्चे को गोद में लिटाकर, एक हाथ से अपना स्तन पकड़े हुए शिशु के मुंह में लगाए हुए दूध पिलाना चाहिए। इससे शिशु प्रसन्न चित्त होकर ममता का अनुभव करते हुए दूध पीता है, जिससे दूध अच्छी तरह हजम होता है और शरीर को पूरा लाभ पहुंचाता है। जब तक शिशु के दांत ठीक से न निकल जाएं, तब तक यदि माता अपना ही दूध पिलाती रहे, तो शिशु का शरीर कमजोर और रोगी नहीं होगा तथा दांत-दाढ़ आसानी से निकल आते हैं।
• जब बच्घा दूध न पिये : प्राय: दो से पांच वर्ष की आयु में बच्चे स्तनपान के प्रति उपेक्षा का भाव दिखाते हैं। यह वह उम्र है जब बच्चे का शारीरिक विकास होता है और उसका वजन बढ़ता है। इसलिए इस आयु में उसे स्तनपान से वंचित करना हानिकारक है। प्रायः बच्चा स्तनपान शुरू करता है, फिर चीखता है, फिर स्तनपान करता है और फिर रोक देता है। ऐसे बच्चों की माताओं को चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। अध्ययनों से यह पता चलता है कि शिशुओं में स्तनपान के प्रति पैदा होने वाली यह अरुचि अस्थायी है, स्थायी नहीं। ऐसा कई विशेष कारणों से हो सकता है। कारण निम्न प्रकार हैं –
कारण
गर्भनिरोधक गोलियां : कुछ महिलाएं जब गर्भ निरोधक गोलियों का प्रयोग शुरू करती हैं, तो उसके दूध के साथ-साथ प्रोजेस्टेशन नामक द्रव का स्राव होने लगता है। इस समस्या से बचने के लिए अन्य गर्भनिरोधक उपायों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
गर्भावस्था : गर्भावस्था के दौरान शरीर में आने वाले हारमोन-संबंधी परिवर्तनों से मां के दूध का स्वाद बदल सकता है। शिशुओं को कुछ समय के लिए कृत्रिम दूध पिलाना पड़ सकता है, पर जैसे ही पर्याप्त दूध आना शुरू हो, फिर से स्तनपान शुरू करवा देना चाहिए।
मासिक धर्म : अनेक महिलाओं को बच्चे को स्तन-पान कराने के दिनों में मासिक स्राव नहीं होता, लेकिन कुछ महिलाओं को होता है। मासिक स्राव से पहले भी हारमोन-संबंधी परिवर्तन होते हैं। अत: इस समय दूध का स्वाद बदल सकता है। तब बच्चा स्तनपान के प्रति अरुचि दिखा सकता है, किंतु मासिक स्राव शुरू होने के बाद वह पुनः स्तनपान शुरू कर देगा।
बीमारी : कभी-कभी स्तनपान के प्रति अरुचि का कारण बच्चे की बीमारी भी होती है। अगर ऐसा हो तो अपने डॉक्टर से उसकी नाक व गले की जांच करवाएं।
दूध आने की प्रक्रिया
यदि आपके स्तनों की दुग्धग्रंथियों से चूचकों तक दूध आने की प्रक्रिया धीमी है, तो इस लम्बे इंतजार से शिशु धैर्य खो सकता है और वह परेशान होकर स्तनपान से मुंह चुरा सकता है। शुरू के महीनों में तो दूध तीव्र गति से आता है, पर बाद में यह गति घट जाती है। ऐसा तनाव, निष्क्रियता आदि के कारण भी होता है। जब बच्चा दूध नहीं पीता, तो मां परेशान होती है और इससे स्तनग्रंथियों से चूचकों तक दूध पहुंचने की प्रक्रिया और धीमी हो जाती है।
कम समय का सतनपान
जैसे-जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती है, स्तनपान में लगने वाला समय घटता है। तीन माह से अधिक उम्र वाले बच्चे, हर बार एक स्तन से केवल तीन से पांच मिनट ही स्तनपान करते हैं। इसे लेकर चिंतित होने की कोई बात नहीं है।
ध्यान न बंटना
बच्चे को स्तनपान कराते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि वह स्थान शांत हो और वहां बच्चे को आकर्षित करने वाली वस्तुएं न हों। इससे वह स्तनपान पर अधिक ध्यान केन्द्रित कर पाएगा। कई बार बच्चा बेवजह भी स्तनपान से मुंह मोड़ लेता है और ज्यों ही भूख लगती है, वह आसानी से दूध पीने लगता है। जब बच्चा सो जाए, तो उसे जागने के समय से थोड़ा-सा पहले उठा दीजिए और जब उसकी आंखों में नींद बाकी हो, तभी स्तनपान करा दीजिए। स्तनपान के प्रति अरुचि दिखाने वाले अधिकांश शिशु रात में और सुबह-सुबह काफी दूध पीते हैं। इन सबके अलावा यह भी हो सकता है कि मां के स्तनों में दूध की गांठे पड़ जाएं, स्तनों में भारीपन और दर्द रहने लगे। कई बार स्त्रियों को दूध उतरता ही नहीं है या बनता ही नहीं है। इसका समुचित निदान एवं उपचार आवश्यक है।
उपचार
यदि किन्हीं कारणोंवश बच्चा दूष न पी रहा हो, तो उन कारणों का निदान चिकित्सा से पूर्व आवश्यक है। यदि बच्चे को दस्त लग रहे हों, उल्टियां हो रही हों, दांत निकल रहे हों, पेट दर्द हो अथवा मां से संबंधित कारण हो मां के दूध ही न उतर रहा हो, तो इन सब कारणों के आधार पर उचित दवा का चुनाव करके दिया जाना श्रेयस्कर रहता है। ‘ब्रायोनिया’, ‘सीपिया’, ‘लेककैनाइनम’, ‘लैकडिफ्लोरेटम’, ‘फाइटोलक्का’, ‘कोनियम’, ‘एथूजा साइनेपियम’ , ‘कैल्केरिया कार्ब’, ‘सिना’, ‘नेट्रम कार्ब’, ‘फॉस्फोरस’, ‘पल्सेटिला’, ‘साइलेशिया’, ‘सल्फर’ औषधियां विभिन्न कारणों के लिए प्रयुक्त की जाती हैं।
यदि स्तन कठोर हो जाते हों और उनमें दर्द रहता हो (खास तौर से मासिक स्राव के समय) और मां बच्चे को दूध न पिला पाती हो, तो ‘कोनियम’ औषधि 30 अथवा 200 में देनी चाहिए।
यदि स्तनों में कठोर गांठे पड़ गई हों, तो ‘फाइटोलक्का’ सी.एम. शक्ति तक दी जा सकती है। दूध न उतर रहा हो, तो ‘ब्रायोनिया’ 30 अथवा 200 में दें।
ऐसी महिलाएं, जिनका मासिक अनियमित हो, मासिक के समय स्तनों में सूजन एवं दर्द हो, मासिक स्राव के बाद स्तन ठीक महसूस हों, दूध जल्दी सूखने लगे, तो 30 अथवा उच्च शक्ति में ‘लेककैनाइनम’ औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
बच्चा दूध पीते ही फौरन उल्टी कर दे, दही जैसी सफेद उल्टी हो, तो ‘एथूजा साइनेपियम’ 30 शक्ति में देनी चाहिए।
यदि मां को गुस्सा अधिक आता हो और गुस्से के बाद झुंझलाहट में दूध पिलाने के बाद बच्चे को हरे-सफेद दस्त लग जाएं और बच्चा जिद्दी हो, तो ‘कैमोमिला’ 30 में देनी चाहिए।
यदि बच्चे के दांत निकल रहे हों, तो ‘कैल्केरिया फॉस’ 3 × में दें।
यदि बच्चे के पेट में कीड़े हों, तो उसे ‘सिना’ 30 शक्ति में, हुक वार्म होने पर ‘थाइमोल’ अथवा ‘चीनीपोडियम’ निम्न शक्ति में देनी चाहिए।