प्रकृति – गर्म और खुश्क।
गैस – पेट में गैस बनती हो, पानी पीने के बाद पेट इस प्रकार फूलता हो, जैसे फुटबाल में हवा भर जाती है, तो ताजा लम्बे बैंगन की सब्जी, जब तक मौसम में बैंगन आता रहे, खाते रहें। इससे गैस की बीमारी दूर हो जायेगी। इससे यकृत और तिल्ली बढ़ी हुई हो तो उसमें भी आराम होता है।
हाथ-पैरों में पसीना – बैंगन का रस निकालकर हथेलियों और पगतलियों पर लगाने से पसीना निकलना बन्द हो जाता है।
चोट का दर्द – बैंगन को सेंककर, पीसकर कपड़े में इसकी चटनी डालकर निचोड़कर रस निकालकर चौथाई कप रस में स्वादानुसार गुड़ मिलाकर नित्य दो बार पीने से चोट के दर्द में आराम मिलता है।
अँगुलबेड़ा (Whitlow) – अँगूठा या अँगुली पक रही हो तो बैंगन को भूभल में सेंककर, काटकर पकने वाली जगह बाँधे। इससे सूजन, दर्द दूर हो जायेगा या पकाव लेकर फूटकर मवाद बाहर आ जायेगी।
हृदय – यह हृदय को शक्ति देता है।
बवासीर – बैंगन का दाँड (वह हिस्सा जिससे बैंगन जुड़ा रहता है) को पीसकर बवासीर पर लेप करने से दर्द और जलन में आराम मिलता है। बैंगन का दाँड और छिलके सुखा लें और फिर इनको कूट लें। जलते हुए कोयलों पर डालकर मस्से को धूनी दें। बैंगन को जला लें। इसकी राख शहद में मिलाकर मरहम बना लें। इसे मस्सों पर लगायें। मस्से सूखकर गिर जायेंगे।
हानि – किसी भी प्रकार के ज्वर के समय बैंगन न खायें। बैंगन गर्म होता है। अत: बवासीर व अनिद्रा के रोगी बैंगन न खायें। बैंगन लम्बे समय तक सेवन न करें।