सरकारी नौकरी में पिताजी के ट्रांसफर के बाद हमारा परिवार जब एक नये शहर में पहुंचा तो सरकारी आवास तत्काल न मिल सका। ऐसे में एक प्राइवेट मकान ही किराये पर लेना पड़ा। जहां सरकारी मकानों की कॉलोनी में मकान दूर-दूर है तथा पड़ोसी भी कभी-कभार ही मिलते-जुलते है। वहीं यहाँ के मकान एक दूसरे से लगे हुए थे। इस वजह से आस-पास परिवार वालों से जल्दी ही मेल-जोल हो गया।
महेश जी का परिवार इस मेल-जोल के मामले में अपवाद था। वे आस-पड़ोस के लोगों से मेल-जोल बढ़ाना पसन्द नहीं करते थे। उनके मकान का दरवाजा हमारे मकान के बिल्कुल सामने था, फिर भी कई महीने गुजर जाने पर भी उनसे मुलाकात नहीं हुई। महेश जी का रोज सुबह का एक नियमित कार्यक्रम था कि वे अपने तीन-चार वर्ष के बच्चे गौरव को स्कूटर से स्वयं छोड़ने जाते। ज्यादातर उनको इसी अवसर पर देखने का मौका मिलता था। स्कूल छोड़ने जाने का क्रम लगातार जारी रहता। गौरव भी अन्य बच्चों के साथ बाहर खेलता नहीं दीखता था, न ही अन्य बच्चों की तरह शरारत करता था। गौरव अपनी उम्र के बच्चों से लम्बाई में आधा ही था, पर उसका चेहरा बड़ों की तरह गंभीर व सख्त था। इस बच्चे में कुछ ऐसी बात थी जो अन्य बच्चों से अलग थी। गौरव की चौथी बर्थडे पर महेश जी ने आस-पड़ोस के सभी लोगों को पता नहीं कैसे बुला लिया। पहली बार उनके यहां जाने का मौका मिला, क्योंकि मुझे बच्चे के बारे में उसके अलग स्वभाव को देखकर जिज्ञासा थी, अतः सोचा कुछ और पास जाकर गौरव को समझा जाये। गौरव अपने हमउम्र बच्चों की तरह न तो अपनी बर्थडे पर उछल-कूद कर रहा था न अन्य बच्चों के साथ खेलकूद ही रहा था। वह अपना कोई खिलौना अपने एक हाथ में पकड़े गंभीर सा खड़ा था। गौरव की मां अपने मेहमानों की जलपान की व्यवस्था का भार कुछ समय के लिये घर के अन्य लोगों छोड़ कर अपने घनिष्ठ परिचय वाली महिलाओं के बीच आकर बैठ गई। स्वाभाविक रूप से कोई भी महिला अपने बच्चे की काबिलियत का जिक्र किये बिना ऐसे में कैसे रह सकती है। अतः गौरव की मां भी कहने लगी कि गौरव सभी बच्चों से निराला है। वह अन्य बच्चों की तरह दिन भर बाहर धूल में खेलकर अपने आपको गन्दा नहीं करता, न ही कभी और बच्चों की तरह ऊल-जलूल फरमाइश ही करता है। वह अकेला बैठे-बैठे ही अपना बहुत सारा समय किचन के बर्तनों को फर्श पर लाइन से लगा देने तथा फिर अपनी जगह रख देने में व्यतीत कर देता है। गौरव में कुछ अन्य गुण भी है। वह अपने सबसे पुराने खिलौने को हमेशा अपनी मुट्ठी में पकडे रहता है। सोते समय भी वह उसी प्रकार से उसकी मुट्ठी में बना रहता है। उस दिन साइकिल की चेन में गौरव का हाथ आने पर भी उसके मुंह से ‘उफ’ तक नहीं निकली तथा दिन भर वह सब कुछ वैसे ही करता रहा, जैसे चोट या दर्द का उसे कोई एहसास ही नहीं हुआ।
इसी दौरान किसी वृद्ध महिला का प्रवेश हुआ, जिन्हें गौरव की मां ने उचित सम्मान दिया और गौरव को भी आवाज देकर बुलाना चाहा। गौरव बिल्कुल सामने था, बुलाने पर भी उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई। वे उस महिला को लेकर स्वयं गौरव तक पहुंच गई। उस आगन्तुक महिला ने जैसे ही प्यार करने के लिये गौरव के बालों में हाथ फेरा, गौरव अजीब रूप से उनके हाथ को जोरदार झटका देकर वहां से चला गया। गौरव की इस हरकत के लिये उनकी मां को सभी के सामने लज्जित होना पड़ा। फिर भी बात को संभालते हुए वे बताने लगी कि कभी-कभार ही उसे इस तरह गुस्सा आता है, अन्यथा बहुत ही अनुशासित बच्चा है। हां, एक और आदत है गौरव में, यदि कोई भी व्यक्ति उसकी चीजों को जरा ही इधर-उधर उठाकर रख दे तो वह जोर-जोर से चीखने लगता है। पार्टी में सभी लोग कुछ न कुछ बोल रहे थे, तब भी गौरव के विषय में उनकी मां द्वारा बतायी गयी बातें मैं ध्यानपूर्वक सुन भी रहा था, जिससे लग रहा था कुछ अलग है उसमें।
इसके बाद यह बालक मेरे लिये उत्सुकता का विषय बना रहा। मै उसकी गतिविधियों को ध्यानपूर्वक देखने लगा। उसे अकेले ही छत पर स्वयं से बात करता पाया। उसका किसी भी चीज को मांगने पर ‘मैं’ या ‘मुझे’ की जगह ‘तुम’ ‘तुमको’ का इस्तेमाल बड़ा अजीब सा लगा। एक दिन क्रिकेट बैट को देखकर बोला, ‘तुमको, यह बैट चाहिए।’ जबकि मुझसे मेरा बैट अपने खेलने के लिये मांगना चाहता था। वह इस प्रकार उल्टे शब्दों का प्रयोग अक्सर करता था। कुछ शब्द ऐसे भी होते कि जोड़-घटाव करने पर भी अर्थ स्पष्ट नहीं हो पाता था। आज समय गुजरे लगभग तीस वर्ष हो चुके है और मेरे पास ऑटिज्म का कोई केस आता है तो अतीत की वह धुंधली याद, जिसमे गौरव जुड़ा है, स्पष्ट होने लगती है।
क्या है ऑटिज्म ?
ऑटिज्म तीन वर्ष की आयु से पूर्व बच्चों में होने वाला मनोविकार है। इस विकार में अनेक प्रकार की व्यावहारिक कमी बच्चों में पायी जाती है, जो उसमें मानसिक विकास के दौरान आये दोषों के रूप में देखी जा सकती है। बच्चे में अकेले रहने की प्रवृत्ति, एक तरह का खेल खेलना, जिसमें अन्य बच्चे की आवश्यकता न हो, चंचलता का या तो अभाव या अत्यधिक चंचलता, हावभाव से गंभीर बना रहना, बोलचाल में विचित्र शब्दों का इस्तेमाल करना, शारीरिक कष्टों को आराम से झेलने की प्रवृत्ति, खिलौने या उसका कोई सामान किसी के द्वारा इधर-उधर हटा देने पर आग-बबूला हो जाना, दूसरों के प्रति संवेदना का अभाव इत्यादि लक्षण देखने को मिलते हैं, सभी लक्षण यह संकेत करता है कि कही बच्चा ऑटिज्म नामक मानसिक विकार से पीड़ित तो नहीं है। वैज्ञानिक सर्वेक्षण में पता चला है कि लड़कों में यह रोग लड़कियों से तीन से पांच गुना अधिक पाया जाता है। उम्र बढ़ने के साथ जैसे-जैसे सामाजिक दायित्वों का बोझ बढ़ता है, बच्चा और भी असफलता को प्राप्त करता है। पढ़ाई में वह शुरू से ही पिछड़ने लगता है, कोई भी साथी या दोस्त बनाने में असफल रहता है।
ऑटिज्म के कारण
उन बच्चों में, जिनके पालन-पोषण में, मां-बाप अत्यधिक अनुशासित करने की धुन में, प्यार बच्चों को नहीं दे पाते, उनमे यह व्यावहारिक विसंगति आ जाती है। गर्भ के प्रथम तीन माह में माता को इंफेक्शन से भी यह समस्या होती है। मां का संक्रमण गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क व स्नायु-तंत्र को ग्रसित करके रोग की उत्पत्ति करता है। जन्म के समय बच्चे के सिर पर लगी चोट भी इस प्रकार की गड़बड़ी का कारण हो सकती है। प्रसव के दौरान गर्भस्थ शिशु के चारों ओर पायी जानेवाली झिल्ली भी कभी-कभी जल्द फट जाती है और वह द्रव्य सांस की नली में जाने से दिमाग में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, जिससे यह स्थिति बनती है।
ऑटिज्म रोग के सुधार की क्या संभावनाएं हैं ?
यदि ऑटिज्म के बच्चों को अपने हाल पर छोड़ दिया जाये तो लगभग दो तिहाई बच्चे बड़े होकर भी अपनी व्यावहारिक कमियों के कारण जीवन के किसी क्षेत्र में सफल नहीं हो पाते तथा दूसरों पर उनकी निर्भरता बनी ही रहती है। इस समस्या का सामना कर रहे बच्चे, जिनकी बुद्धि I.Q. लेवल 70 से अधिक है और जिन्हें घर वालों का अच्छा सहारा भी है, उनके अंदर सुधार की संभावना अधिक रहती है। वे बच्चे, जिनकी बुद्धि स्तर कम है उनके अंदर सुधार होने की संभावना कम ही रहती है। सुधार के तरीके और दवाओं से काफी हद तक बच्चों के मूलभूत विकार को नियंत्रित हो जाता है। जैसे एकाग्रता को बढ़ाने और मनोभावों को शांत करने की दवाएं अच्छा काम करती है। अतः जब दवाओं के प्रभाव से बच्चा कुछ ठीक हो जाये तो उसे सिखाना ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। बच्चे को एकांत या अकेले में नहीं रहने दें तथा अन्य बच्चों के साथ खेलने को प्रोत्साहित करें। स्वयं यह देखने की कोशिश करें कि कहां और कैसे वह अन्य लोगों में मिलने में दिक्कत का सामना कर रहा है। ऐसे बच्चों को सम्मिलित खेलों में लगाये रखने के लिये मां-बाप को स्वयं भी खेलों में भाग लेते हुए पता करना होता है कि वह सहजता से अन्य बच्चों को स्वीकार कर पाता है या नहीं। यदि नहीं तो उसे लगातार सिखाते रहना होगा और सही परिणामों को पाने तक जी-जान से कोशिश करनी होगी। चूंकि ऑटिज्म के शिकार बच्चे केवल कुछ रटे-रटाये कार्य बिल्कुल वैसे ही दोहराने के आदी हो जाते है। अतः उन्हें इसके स्थान पर नये रचनात्मक कार्य जैसे-हेण्डीक्राफ्ट के ऐसे आइटम, जिनमें उनके द्वारा कुछ नया करने का उद्देश्य पूरा होता है, सिखाये जायें।
ऑटिज्म का होम्योपैथिक उपचार और दवा
Borax 30 – इसमें बच्चा सीढ़ी या नीचे उतरते समय बहुत डरता है। किसी भी रोग में ऊँचे स्थान से नीचे की ओर उतारते समय भय लगने पर यह दवा रोग को जड़ से ठीक कर देता है। अन्य लक्षण में जरा सी भी आवाज से जरुरत से ज्यादा रोना और चुप न होना। ऐसा लक्षण मिले तो इस दवा का सेवन कराएं। 2 बून्द सुबह और शाम जीभ पर देना है।
Calcarea carb 30 – मोटा थुलथुला, डरपोक, सोते समय माथे पर पसीना आना, शाम के समय अधिक डरना, चिड़चिड़ापन, सिखाई हुई बात जल्दी भूलना, बार-बार एक ही शब्द को बोलना जैसे लक्षण में उपयोगी दवा है। ऐसे लक्षण पर 2 बून्द सुबह एक बार जीभ पर देना है।
Baryta Carb 30 – रोगी का दिमाग मन्दबुद्धि बालक की तरह होता है, एक ही चीज़ को सीखना भी मुश्किल होता है, शर्मिला, एक ही खिलौने से और अकेले ही खेलते रहना, एक कोने में बैठे सारा समय बिताना, चलना भी देरी से सीखता है। चेहरा बड़ों जैसा परन्तु दिमाग बच्चों जैसा होता है। ऐसा लक्षण मिले तो इस दवा का सेवन कराएं। 2 बून्द सुबह और शाम जीभ पर देना है।
Tarentula Hispanica 30 – बच्चे में अत्यधिक चंचलता रहती है, चीजों को तोडना-फोड़ना, किसी को मारना, हाथ को दाँतों से काटना, जरुरत से ज्यादा उछल-कूद करना, झूठ बोलना, चीजें चुराना, एक जगह टिक कर बैठ नहीं पाना, बहाना बनाना, इसके बावजूद डाटने और मारने का डर बच्चे में रहता है। ऐसा लक्षण मिले तो इस दवा का सेवन कराएं। 2 बून्द सुबह और शाम जीभ पर देना है।
Agaricus 30 – टुटा-फूटा शब्द बोलना, किसी वाक्य को पूरा नहीं बोल सकता, गीत बनाने में व्यस्त रहना, बात बदलते रहना, निडर रहना, अंग फड़कना, जो बच्चे देर से बोलना सीखते हैं, उनमे भी यह अच्छा काम करता है। ऐसा लक्षण मिले तो इस दवा का सेवन कराएं। 2 बून्द सुबह और शाम जीभ पर देना है।
ऑटिज्म की होम्योपैथिक दवाएं बहुत सारी हैं, वो बच्चे के लक्षण पर निर्भर करता है। यहाँ मैंने कुछ मुख्य दवाओं का वर्णन किया है।