वर्षा ऋतु और भुट्टे का गहरा सम्बन्ध है। किसी को नर्म तो किसी को थोड़ा सख्त पसंद है। इमली की चटनी में उबले भुट्टे स्वादिष्ट होते हैं।
मक्के के दाने की ऊपरी परत रेशे की बनी होती है। इस परत के नीचे की सतह, जिसे एल्यूरोन परत कहते हैं, में बीस प्रतिशत प्रोटीन होता है। यहीं पर अत्यधिक मात्रा में विटामिन-बी भी पाया जाता है। इसके अंदर का भाग जिसे एंडोस्पर्म कहते हैं, में अधिकतर स्टार्च होता है और बिल्कुल अंदर का भाग जिसे कोशाणु कहते हैं, प्रोटीन, खनिज एवं वसा से भरपूर है।
मक्के के प्रोटीन में दो आवश्यक अमीनो अम्ल नहीं होते इसलिए यह प्रोटीन बहुत अच्छे प्रकार का नहीं माना जाता परंतु यदि मक्का को दाल या बेसन या दूध की किसी वस्तु के साथ खाया जाए, तो यह उत्तम प्रकार का हो जाता है। इसीलिए परंपरागत तरीके से मक्के की रोटी को सरसों के साग और रायते के साथ खाया जाए, तो यह बहुत ही संतुलित भोजन हो जाता है। मक्के में एक तत्त्व, फॉस्फोरस की मात्रा कम होती है और इसी कारण मक्के में पाया जाने वाला लौह तत्व बहुत अच्छी तरह से शरीर में अवशोषित होता है। मक्के पर नीबू का उपयोग करने से लौह तत्त्व का अवशोषण और भी अधिक होगा।
मक्के में कैरोटीन नाम का एक पदार्थ भी मिलता है, जो शरीर में जाकर विटामिन ‘ए’ बन जाता है। यह रात में देखने की क्षमता, त्वचा की देखभाल तथा बीमारियों से बचाव के लिए बहुत आवश्यक है। मक्के का रंग जितना गहरा पीला होता है, उतना अधिक उसमें कैरोटीन होता है। इसका रेशा एवं लौह लवण, कब्ज व खून की कमी वाले लोगों के लिए बहुत अच्छा है, खासकर यदि साथ में नीबू का उपयोग हो।
मक्के या मक्के के आटे के साथ दूध या बेसन का उपयोग करने से मक्के में पाया जाने वाला द्वितीय श्रेणी का प्रोटीन अच्छी गुणवत्ता का बन जाता है। किसी भी व्यंजन में अगर हरे पत्ते की सब्जियाँ मिलाएँ, तो अपने आप में संतुलित व्यंजन बन जाता है। अर्थात् मक्के के आटे की रोटी हरी चटनी व रायते के साथ लें, तो बहुत पौष्टिक होगा। इसी प्रकार दूध के साथ मक्के का उपयोग या सलाद के रूप में उबला मक्का, पनीर के टुकड़े और विभिन्न सब्जियों का मेल बहुत पौष्टिक है।
शक्तिवर्धक – ऋतु आने पर मक्का का सिरा, भुट्टा खाने से आमाशय को बल मिलता है। यह रक्तवर्धक है। मक्का के तेल की मालिश करने से शक्ति बढ़ती है।
तेल निकालने को विधि – ताजी दूधिया मक्का के दाने पीसकर काँच की शीशी में भरकर खुली हुई शीशी धूप में रखें। दूध सूखकर उड़ जायेगा और तेल शीशी में रह जायेगा। छानकर तेल को शीशी में भर लें और मालिश किया करें। दुर्बल बच्चों के पैरों पर मालिश करने से बच्चा जल्दी चलेगा। एक चम्मच तेल शर्बत में मिलाकर पीने से बल बढ़ता है।
बिवाइयाँ, दाद – हाथ-पैरों में चर्म रोग हों, दरारें पड़ गई हों, चिर गये हों, खुजली चलती हो, मवाद और रक्त निकलता हो तो ऐसे चर्म रोगों में मक्का का दलिया बिना नमक का बनाकर मलें, और दलिया लगा रहने दें। एक घण्टे बाद धोकर साफ कर लें। इस तरह ताजा गर्मा-गर्म दलिया नित्य दो बार लगायें। असाध्य समझे जाने वाले चर्म रोग ठीक हो जायेंगे। अनेक रोगियों ने यह अनुभूत नुस्खा बताया है।
खाँसी, कूकर खाँसी, जुकाम – मक्का का भुट्टा जलाकर उसकी राख पीस लें। इसमें स्वादानुसार सेंधा नमक मिला लें। नित्य चार बार चौथाई चम्मच गर्म पानी के साथ फंकी लें। लाभ होगा।
पेशाब की जलन – ताजा मक्का के भुट्टे पानी में उबालकर उस पानी को छानकर मिश्री मिलाकर पीने से पेशाब की जलन, गुर्दो की कमजोरी दूर हो जाती है।
पथरी – (1) मक्का के भुट्टे (मक्का के दानों सहित) जलाकर राख कर लें। एक कप पानी में दो चम्मच मक्का की राख घोलें फिर छानकर इस पानी को पी जायें, इससे पथरी गल जाती है। पेशाब साफ हो जाता है। (2) मक्का के सिर के बाल 30 ग्राम, कुलथी के पानी के साथ उबाल कर, छानकर पीने से पथरी निकल जाती है।
यक्ष्मा – जिसे यक्ष्मा का पूर्वरूप हो उसे मक्का की रोटी खानी चाहिए।
उल्टी – मक्का जलाकर पीस लें। इसकी आधा चम्मच राख आधा चम्मच शहद में मिलाकर हर आधे घण्टे से चाटने से उल्टी होना बन्द हो जाता है।
मानसिक तनाव, उदासी (Depression) – मक्का के दाने निकाले हुए भुट्टों को सुखा कर, जलाकर राख बना लें। इसकी चौथाई चम्मच एक चम्मच शहद में मिलाकर नित्य सुबह-शाम चाटें। मानसिक उदासी, निराशा दूर होगी।