गले की श्लैष्मिक झिल्ली में एक प्रकार का धुमैला या उजला जैसा पर्दा पड़ जाता है और इसकी वजह से रोगी की साँस रुकने लगती है । रोग की साधारण अवस्था में गले में दर्द, खाने-पीने में कष्ट, निगलने में कष्ट, गले की गाँठे बढ़ जाना आदि लक्षण प्रकटते हैं । रोग की उग्रावस्था में कंपकंपी के साथ तेज बुखार, दस्त, कै, बेचैनी आदि लक्षण प्रकट हो जाते हैं और जब हृदय की क्रिया में गड़बड़ी हो जाती है तो स्थिति अत्यन्त ही गम्भीर हो जाती है । प्रायः गले में कुछ पक्षाघात की भी शिकायत हो जाती हैं । यह रोग छूत के द्वारा भी फैलता है । प्रायः यह रोग बच्चों को ही होता है परन्तु किसी भी आयु के व्यक्ति को हो सकता है ।
डिफ्थिरिनम 30, 200 – यह इस रोग की प्रतिषेधक औषधि है । घर में अगर किसी बच्चे को यह रोग हो जाये तो बाकी बचे सभी स्वस्थ बच्चों को एक-एक खुराक डिफ्थिरिनम 30 देनी चाहये । प्रतिषेधक के रूप में यह सिर्फ एक ही खुराक काफी है । Dr एच० सी० ऐलन ने बहुत से डिफ्थीरिया रोग से ग्रस्त बच्चों को सिर्फ डिफ्थिरिनम उच्चशक्ति में खिलाकर ही इस रोग से मुक्त कर दिया। डॉ० क्लार्क भी इस दवा पर भरोसा करते थे ।
मर्क सियानेटस 6, 30 – गलकोष में घाव अगर सड़ने लगे और पूरे मुँह में फैलने लगे यानि सड़ने वाली डिफ्थीरिया हो, मुँह से लार बहती हो तो इस दवा का प्रयोग लाभप्रद है ।
एकोनाइट 3x, 30 – रोग की उग्रावस्था में, खासकर जब स्वर-नली में प्रदाह हो, सिर-दर्द हो, आँखों व चेहरे का रंग लाल हो जाये तो लाभप्रद सिन्नद्र होती हैं ।
मर्क आयोड 3x – तालुमूल व गलकोष लाल, जीभ का रंग भी। लाल, निगलने में तकलीफ, श्वास में बदबू, लार बहना आदि लक्षणों में लाभप्रद सिरुद्र होती हैं ।
आर्सेनिक 6 – यह दवा प्रायः रोग की अंतिम अवस्था में दी जाती है। खासकर जब जख्म से पीव या खून बहता हो, नाड़ी क्षीण हो, गला फूला हो, गहरी सुस्ती हो तब इसका प्रयोग अवश्य करें |
इचिनेशिया Q – इस रोग की एक उत्कृष्ट औषधि है, लक्षणानुसार दें।