परिचय : 1. इसे गुग्गुल (संस्कृत), गूगल (हिन्दी), गुग्गुल (बंगाली), गुगुल-मुकुल (मराठी), गुग्गल (गुजराती), मैहिषाक्षी (तमिल), गुग्गिल चेट्टु
(तेलुगु) तथा बाल्स-मोडेम्ड्रोन मुकुल (लैटिन) कहते हैं।
2. इसका वृक्ष छोटा, झाड़दार, हरापन लिये, पीले छालवाला होता है, पत्ते लम्बे, कागज के समान पतले, काँसेदार, चमकीले और नीम की तरह जुड़े होते हैं। इसकी लकड़ी कोमल और सफेद होती है। फूल लाल रंग के 2-3 एक साथ लगते हैं। फल मांसल, लम्बे, गोल और पकने पर लाल रंग के होते हैं।
3. इसके पौधे अधिकतर रेगिस्तानी भूमि में होते हैं। भारत में मारवाड़, कच्छ, काठियावाड़, असम, पूर्वी बंगाल और मैसूर में यह पाया जाता है।
4. इस वृक्ष के गोंद को गुग्गुल कहते हैं। गर्मी के समय सूर्य की धूप से तपकर गोंद पिघलती और शरद्ऋतु में जम जाती है।
गुग्गुल की दो जातियाँ मिलती हैं : कण-गूगल (ललाई लिये पीले कणोंवाला) तथा भैसा गूगल (हरापन लिये पीला)। प्राचीन शास्त्रों में इसके पाँच भेद वर्णित हैं – महिषाक्ष (काला), महानील (नीला), कुमुद (कपिश), पद्म (लाल) तथा कनक (पीला) गुग्गुल।
रासायनिक संघटन : इसमें उड़नशील तेल, रालयुक्त गोंद तथा कडुवा सत्त्व पाये जाते हैं।
गुग्गुल के गुण : यह स्वाद में कडुवा, चरपरा, मीठा, कसैला, पचने पर कडुवा तथा गुण में हलका, तीक्ष्ण और चिकना होता है। वातनाड़ी-संस्थान पर इसका मुख्य प्रभाव पड़ता है। यह पीड़ाहर, कीटाणुनाशक नाड़ियों को बलकारक, वायुसारक, अग्रिदीपक, यकृत-उत्तेजक, हृदय-बलदायक, शोथहर, कफ -नि:सारक, रसायन तथा बलदायक है।
गुग्गुल के लाभ
1. वातव्याधि : वातव्याधि, गृध्रसी (साइटिका) में 4 तोला गुग्गुल और 5 तोला रास्ना को घी में मिला गोलियाँ बना लें। एक-एक गोली प्रात:-सायं खाने से लाभ होता है।
2. सूजन : शरीर में शोथ (सूजन) होने पर गोमूत्र के साथ 4 रत्ती गुग्गुल सेवन करने से लाभ होता है। इसे गोमूत्र में मिला बाहर से लेप करने पर भी लाभ होता है।
3. फोड़ा-फुन्सी : फोड़ा-फुन्सी में जब सड़न और पीव हो, तो त्रिफला के काढ़े के साथ 4 रत्ती गुग्गुल लेना चाहिए। अथवा सायं 5 तोला पानी में त्रिफलाचूर्ण 6 माशा भिगोकर प्रात: गर्म कर छानकर पीने से लाभ होता है।
4. मगन्द : मगन्द (फिंचुला) में त्रिफला के साथ गुग्गुल सेवन करने से लाभ होता है।
5. कान का बहना : गुग्गुल को अग्नि पर डालकर धुँआँ लेने से कान का बहना बन्द हो जाता है।
6. फोड़ा-शोथ : फोड़ा या सूजन होने पर गुग्गुल गर्म कर कपड़े पर लगा लेप करने से लाभ होता है।
7. थायराइड में लाभ : गुग्गुल के सेवन से थायराइड ग्रंथि में सुधार होता है। शरीर का मोटापा कम कर गर्मी उत्पन्न करता है।
8. जोडों के दर्द में फायदेमंद : गुग्गुल के सेवन से जोडों के दर्द में बहुत लाभ मिलता है। जोडों में पैदा हुए अकड़न को भी गुग्गुल खाने से लाभ मिलता है।
शुद्ध करने की विधि : यह गोंद है। इसे शुद्ध करके ही लेना चाहिए। सर्वप्रथम गुग्गुल को त्रिफला के काढ़े में भिगो दें। फिर बारीक कपड़े से छान कड़ाही में शुद्ध घी में भूनें। जब सुगन्ध आये तथा चिपकना कम हो जाय तब इसे शुद्ध जानें।
सावधानी : गुग्गुल सेवन करते समय खटाई, मिर्च, तेज मसाले, मैथुन तथा व्यायाम और अत्यंत धुप का सेवन छोड़ देना चाहिए।