बवासीर का होम्योपैथिक इलाज
बवासीर और पुरानी पेचिश की समस्या को होम्योपैथिक दवा से कैसे ठीक किया गया, उसी के बारे में समझेंगे।
रोगी उम्र 32 वर्ष, रंग सांवला, लम्बे कद के मेरे पास इलाज करवाने के लिए आये। रोगी के परिवार में Filaria का इतिहास रहा था। उसके मां, बाप, भाई, बहन सभी को यह रोग हो चूका था।
वह ऐसे स्थान से संबंधित रहे है जहां फाईलेरिया का मच्छर अधिक जाता है। हाल के समय में रोगी पुरानी पेचिश से ग्रसित है। यह रोग उन्हें पिछले 5 वर्षों से है । फाईलेरिया के कोई लक्षण नहीं है।
पहले खुनी दस्त आते थे अब म्यूकस आ रहा है। पेट में मरोड़ भी होता है। उन्हें बवासीर की भी शिकायत हो गयी है । मस्से पाखाना करते समय बाहर आ जाते है । घुटने के बल बैठने पर भी मस्से बाहर आते है।
पाखाने में पिनवर्म्स काफी मात्रा में आते है। गुदा में खुजली, मस्सों में जलन, पाखाने करने में जलन होती है।
उपरोक्त लक्षणों को देखते हुए रोगी में सोरा और साइकोसिस दोनों देखने को मिलते है ।
सोरादोष का उपचार किये बिना रोगी को लाभ पहुंचाना मुश्किल है। इसलिये रोगी को Sulphur 0/30 LM पोटेंसी की दो खुराके रोजाना के हिसाब से 3 दिन की मैंने सलाह दी।
एक हफ्ते बाद रोगी ने बताया कि पाखाना में रक्त तथा आंव नहीं आयी, पिनवर्म्स अभी आ रहे हैं । कभी-कभी पेट में मरोड़ हो जाता है। सल्फर 0/30 की 4 खुराक चार दिन के लिये और दी गयी ।
10 दिन बाद रोगी ने बताया कि रक्त स्राव तथा पिनवर्म्स नहीं है, कब्ज भी नहीं है । मस्सा वैसे का वैसा ही है। Thuja 0/30 को सुबह और शाम 5 दिन मैंने लेने की सलाह दी।
10 दिन में मस्से के बाहर आने में आराम हुआ। 50% लाभ हो गया है। Thuja 0/30 को 5 दिन और लेने को मैंने कहा। इस बार रोगी का कहना था कि उसे हर प्रकार से लाभ रहा किन्तु दो दिन बाद फिर मस्सा बहने लगा।
अब यहां प्रश्न उठता है कि Thuja 0/30 का लगातार प्रयोग किया गया जबकि इस शक्ति को सी. एम. शक्ति के बराबर माना जाता है, किन्तु मेरा अनुभव है कि 0/30 शक्ति सी. एम. के मुकाबले कम प्रभावशाली है।
ये शक्तियां रोग शक्ति को उतना नही झकझोर पाती जितनी सेंटीसीमल शक्तियां झकझोरती है। इनका प्रभाव उतना स्थायी भी नहीं रह पाता है। ऐसे में मैंने रोगी को Thuja 10 M की एक खुराक लेने को कहा।
Thuja 10 M ने 0/30 से अधिक लाभ दिया और उतने दिनों तक उसे बहुत आराम रहा। अब उसे शिकायत है कि दवा ने Filaria के लक्षण उत्पन्न कर दिये । दबाने से दाहिनी टांग पर गड्ढा पड़ता है । चमड़ी मोटी हो रही है।
टांग में भारीपन है । रोगी की मलेरियल धातु होने के कारण और मलेरिया वाले स्थान में लंबे समय तक रहने के कारण मैंने Nat Sulph 1000 की एक खुराक दी। रोगी को काफी आराम है।
बवासीर का मस्सा बेर जैसा छोटा गोल है। Filaria के लक्षण नाम मात्र को है। किन्तु मस्सा घुटनों के बल बैठने से बाहर आ जाता है। बीच-बीच में खूब जलन और दर्द भी होता है। कब्ज फिर होने लगी। हाजमा भी गड़बड़ ही है।
पेट में भी जलन हो जाती है। मस्सा बाहर आ जाने, जलन और कब्ज भी है। उन्हें मट्ठा पीने की इच्छा काफी हो रही है।
यहां Causticum अंतिम रूप से निर्णायक रहा, क्योंकि बैठने से मस्सा बाहर आना इसका प्रधान लक्षण है। मट्ठा पीना अच्छा लगना दूसरा सुंदर लक्षण है। Causticum 1M देने से सभी लक्षण ठीक हो गए।
Sulphur की जलन ठंडे पदार्थों से बढ़ती है। Caust के रोगी को मट्ठा पीना आनंददायक तथा सुख देता है, किन्तु अन्य लक्षणों को सल्फर थूजा तथा नेट्रम सल्फ दिये बगैर ठीक नहीं किया जा सकता था।
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Bawaseer Ka Homeopathic Ilaj
गुदा के दीवारों में शिराओं की वृद्धि के रूप में इसे परिभाषित किया जाता है। गुदा के चारों ओर शिराएं फैल जाती हैं और उनमें सूजन हो जाती है। बाह्य बवासीर गुदा संवरणी के बाहर त्वचा से ढका होता है। आंतरिक बवासीर गुदा संवरणी के अंदर गहराई में श्लैष्मिक
झिल्लियों से ढका होता है।
बवासीर के सामान्य कारण :
1. तीव्र कब्ज का लगातार बना रहना,
2. अनियमित भोजनं की आादत,
3. अत्यधिक मसालेदार और मिर्चयुक्त्त भोजन,
4. आधुनिक एलोपैथिक औषधियां ।
एलोपैथी : डैफलॉन टैब्लेट्स और प्रॉक्टोसिडिल या एनोवेट मलहम ।
एलोपैथी का प्रभाव : संवेदनाहरण का प्रभाव उत्पन्न करने के कारण इन मलहमों से अस्थाई आराम मिलता है।
डैफलॉन अधिकांश केसेज़ में आमाशयशोथ उत्पन्न करता है। सवांगीण या स्थानिक उपचार से रोगी की स्थाई लाभ नहीं मिलता।
शल्यचिकित्सा : अधिकांश रोगी यह महसूस करते हैं कि शल्यचिकित्सा से उन्हें जीवन भर के लिए स्थाई लाभ मिल जायेगा। किंतु वे भ्रम में हैं। मैंने ऐसे सैकड़ों रोगियों को देखा है जो शल्यक्रिया के बाद जल्दी ही या कुछ समय बाद अनेक समस्याओं, जैसे- पीड़ा, जलन, दुखन आदि से पीड़ित हो जाते हैं।
मैंने कुछ ऐसे रोगियों को भी देखा है जिन्हें ऑपरेशन के बाद कुछ समय तक एंटीबायोटिक्स दिया गया था। इन एंटीबायोटिक्स के कारण गुदा और मलाशय की शिराओं में रक्तसंकुलन उत्पन्न हो जाता है।
स्टेरॉयडरहित प्रदाहरोधी औषधियों से बड़ी आंत, मलाशय और गुदा की श्लैष्मिक झिल्लियों में अल्सर बन जाते हैं।
दीर्घकालिक जटिलताएं, जैसे- गुदाभ्रंश, संकीर्णता (स्टेनोसिस) और निकुंचन (स्ट्रिक्चर) आदि आम परेशानियां हैं। ऑपरेशन के बाद रोग का पुनः आक्रमण भी अक्सर हो जाता है क्योंकि रोग का मूल कारण इस चिकित्सा से समाप्त नहीं होता।
होम्योपैथी : मेरा अनुभव है कि होम्योपैथी ने मुझे कभी निराश नहीं किया है, किंतु शर्त यह है कि रोगी को दृढ़ इच्छाशक्ति से अपने भोजन संबंधी आदतों पर नियंत्रण रखना होगा।
उग्र स्थिति में निम्नांकित औषधियां : – एलो 30 और नाइट्रिक एसिड 80 + हेमामेलिस 80 पर्यायक्रम से।
कब्ज के साथ जीर्ण केसेज़ में :
ईस्क्यूलस 30 + हेमामेलिस 30 + पोडोफायलम 80 तथा सप्ताह में एक खुराक सल्फर 200, अधिकांश केसेज़ को निरोग कर देते हैं।
यदि गुदा-विदर (फिशर) हो तो कॉलिंसोनिया 30 और नक्स वोमिका 80 (यदि दस्त हो तो) पर्यायक्रम से।
यदि बवासीर (पाइल्स) यकृत् के संक्रमण के साथ हो, जो कि अक्सर हुआ करता है, तो काडुअस एम.Q 5 बूंद भोजन के बाद सुबह-शाम बहुत अच्छा कार्य करती है।
केस
जीर्णकालिक आमाशयशोथ : 50 वर्षीय एक व्यक्ति जो मंत्रालय में सचिव थे, इस शिकायत के साथ आए कि उनकी आतें कभी साफ नहीं होतीं। वह उदरोद्धं प्रदेश में कष्ट और हृदय के उपरी क्षेत्र में दबाव महसूस कर रहे थे। साथ ही उनके आमाशय और आंतों में वायु बंधकर रह जाती थी और उसका निष्कासन आसानी से नहीं होता था। उनकी पत्नी ने मुझे बताया कि भोजन के बाद उन्हें बहुत तेज नीद आती थी। गला बहुत सूखा था। जठरांत्ररोग चिकित्सकों और हृदयरोग विशेषज्ञों को सभी प्रकार की जांच के बाद भी कोई स्पष्ट कारण नहीं मिला और उन्होंने उन्हें वेलियम लेने की सलाह दी जिसके कारण कुछ समय बाद उन्हें ‘अवसाद या डिप्रेशन’ की शिकायत हो गई। मेरे पास आने से पहले उन्होंने एक प्रसिद्ध होम्योपैथ चिकित्सक से उपचार लिया था जिसका उन्हें लाभ भी मिला किंतु रोग का आक्रमण पुनः हो गया। मैंने उन्हें निम्नलिखित उपचार दिया जिसके चमत्कारिक परिणाम मिले ।
होम्योपैथी : क्रेटेगस Q + कैक्टस Q (1 : 1) भोजन के बाद दिन में दो बार । नक्स मस्केटा 200 रात में, एबीज निग्रा 80 तथा कैलीफास 6x दिन में तीन बार।
इसके विपरीत एलोपैथिक उपचार जो वह ले रहे थे वह ‘रानीटाइडिन’ था जिससे उन्हें कब्ज हो जाया करता था। ‘ओसिड’ से भी सिर में भारीपन हो जाता था।