परिचय : 1. इसे जीरक (संस्कृत), जीरा (हिन्दी), जीरे (बंगला), जिरं (मराठी), जीरुं (गुजराती), जीरकम (तमिल), जीलकरी (तेलुगु), कम्मन (अरबी) कहते हैं।
लेटिन नाम – क्यूमिनम साइमिनम (cuminum cyminum)
2. जीरा का पौधा 1-3 फुट ऊँचा, सोया-जैसा होता है। जीरा के पत्ते पंखे की तरह छोटे-छोटे होते हैं। फल लम्बे, छोटे, सफेद, कत्थई रंग के होते हैं।
3. यह प्राय: समस्त भारत में होता है। विशेषत: असम, बंगाल, राजस्थान में उत्पन्न होता हैं।
4. इसकी दो जातियाँ होती हैं। (क) जीरक (सफेद जीरा, ऊपर वर्णित) । (ख) कृष्णजीरक (काला जीरा-काबुली तथा देशी) ।
रासायनिक संघटन : इसमें चिकना तेल, गोंद 12 प्रतिशत, म्युसिलेज प्रोटीन थायमीन नामक उड़नशील तेल होते हैं। काले जीरे में उड़नशील, सुगन्धित तेल मिलता है।
जीरा के गुण : यह-स्वाद में चरपरा, पचने पर कटु तथा हल्का, रूखा और गर्म है। इसका मुख्य प्रभाव पाचन-संस्थान पर अग्निदीपक रूप में पड़ता है। यह शोथहर, शूलहर, रुचिकर, पाचक, कृमिनाशक, रक्तशोधक, मूत्रजनक, गर्भाशय-शोथहर, स्त्री-दुग्ध-शोधक तथा वर्धक, ज्वरहर तथा बलवर्धक है। जीरा पाचक और दर्दनाशक। जीरा एक स्वादिष्ट मसाला है। सफेद जीरा और काला जीरा दोनों के गुण समान होते हैं। जीरा से शरीर की क्रियायें ठीक रहती हैं।
जीरा के उपाय ( jeera ke upyog )
विषमज्वर-वातरोग : जीरा गुड़ के साथ खाने से विषमज्वर तथा वातरोग दूर होता है। जीरे को गुड़ से खाकर ऊपर से मट्ठा पीकर धूप में बैठने से पसीना आता है तथा ज्वर-दर्द में लाभ होता है।
कफपित्त : जीरा 2 तोला और धनिया 2 तोला घी में पकाकर खाने से कफपित्त, अरुचि और मन्दाग्नि रोग दूर होते हैं।
अर्श : अर्श, ग्रहणी और उदरशूल में जीरा शहद के साथ दें। बवासीर के मस्सों के दर्द में इसे मिश्री के साथ दें। इससे रुका हुआ पेशाब भी खुल जाता है।
स्त्रीरोग : श्वेत-प्रदर अथवा दुग्ध की कमी में जीरा भूनकर चीनी के साथ दें। गर्भाशय-शुद्धि के लिए गुड़ के साथ जीरा लाभदायक है।
मसाला : भोजन में मसाले के तौर पर नित्यप्रति थोड़ा-सा जीरा लेने से बलवृद्धि होती हैं तथा नेत्र-ज्योति बढ़ती है।
नेत्ररोग : जीरे को बारीक पीसकर सुरमे की तरह लगाने से नेत्ररोग दूर हो जाता है।
शीतपित्त : जीरे को उबालकर उसके पानी से मुख धोने से मुख सुन्दर होता है। उसी पानी से नहाने से बदन की खुजली तथा शीतपित्त भी मिटता हैं।
बिच्छू के काटने पर : बिच्छू के काटने पर जीरे को पीसकर सेंधानमक और धी मिलाकर गर्म लेप करें।
मुँह में बदबू आती हो तो जीरे को भूनकर खाने से दूर हो जाती है।
शक्तिवर्धक – 2 चम्मच जीरा, एक कप पानी में रात को भिगो दें। प्रात: छानकर शक्कर मिलाकर पियें, इससे ताकत आती है।
हृदय रोग – दस ग्राम पिसा जीरा एक कप पानी में भिगोकर प्रात: छानकर मिश्री मिलाकर नित्य पीते रहने से हृदय रोग में लाभदायक है। पेशाब अधिक लाकर हृदय को शक्ति देता है।
खाँसी – एक चम्मच जीरा और एक चम्मच सौंफ पीसकर आधा चम्मच शहद में मिलाकर खाने से खाँसी ठीक होती है। ऐसी तीन खुराक नित्य लें।
मलेरिया – एक चम्मच जीरा बिना सेंका हुआ पीस लें। इसका तीन गुना गुड़ इसमें मिलाकर इसकी तीन गोलियाँ बना लें। निश्चित समय पर सर्दी लगकर आने वाले मलेरिया के बुखार के आने से पहले एक-एक घण्टे से एक-एक गोली लें। कुछ दिन नित्य लेते रहें। मलेरिया ठीक हो जायेगा।
मलेरिया आने पर एक चम्मच करेले के रस में 1-1 चम्मच जीरा और गुड़ मिलाकर 3 बार लेना लाभप्रद है।
रक्तस्रावी अर्श – जीरा, सौंफ, धनिया – प्रत्येक एक चम्मच एक गिलास पानी में उबालें। आधा पानी रहने पर छानकर एक चम्मच देशी घी मिलाकर सुबह-शाम पीने से बवासीर में रक्त गिरना बन्द हो जाता है। यह गर्भवती स्त्रियों के बवासीर में अधिक लाभदायक है।
बवासीर (अरक्तस्रावी) – जीरा और मिश्री समान मात्रा में पीसकर एक-एक चम्मच तीन बार ठण्डे पानी के साथ फंकी लें तथा जीरा पानी में पीसकर गुदा पर लेप करें। इससे बवासीर की सूजन और दर्द में लाभ होगा।
बवासीर दर्दपूर्ण – (1) जीरा बारीक पीसकर घी में गर्म करके मस्सों पर लगायें। दर्द दूर होगा। (2) एक चम्मच जीरा, चौथाई चम्मच कालीमिर्च पीसकर एक औंस शहद में मिला लें। इसकी एक-एक चम्मच नित्य तीन बार चाटें। दर्दपूर्ण बवासीर ठीक हो जायेंगे।
बवासीर, स्तन में हुई गाँठ, अण्डकोश को सूजन एवं पेट दर्द में जीरे का लेप लगाने पर पीड़ा शान्त होती है।
पुराना मन्द ज्वर, रुक-रुक कर आने वाला ज्वर, ज्वर में कमजोरी, स्त्री-रोग, दूध-वृद्धि – कच्चा जीरा पीसकर समान मात्रा में गुड़ मिलाकर मटर के दाने के बराबर गोलियाँ बना लें। ये दो-दो गोलियाँ नित्य तीन बार खाकर पानी पियें। इससे स्त्रियों का दूध बढ़ेगा तथा गर्भाशय और योनि की सूजन, प्रसव के बाद गर्भाशय की शुद्धि और श्वेत-प्रदर, ज्वर आदि में लाभ होता है।
बुखार – एक चम्मच जीरा एक कप पानी में उबालें। अच्छी तरह उबलने के बाद छानकर इसका पानी पिलायें। इससे ज्वर का ताप कम होता है। बुखार आने पर एक चम्मच भर जीरे को गुड़ के साथ नित्य तीन बार देने से बुखार कम हो जाता है।
पुराना बुखार – कच्चा पिसा हुआ जीरा एक ग्राम इतने ही गुड़ में मिलाकर नित्य तीन बार लेते रहने से पुराना बुखार ठीक हो जाता है।