इसमें मलद्वार के बाहर या भीतर सूजन के साथ मस्से हो जाते हैं। कभीकभी मलद्वार के बाहर व भीतर- दोनों ओर भी ये मस्से हो जाते हैं । साथ में मलद्वार में खुजली, जलन, सुरसुराहट, दर्द आदि लक्षण भी रहते हैं । पुरानी कब्ज, हृदय-रोग, यकृत में खून की अधिकता, मल-त्याग के समय अत्यधिक कॉखना, गरिष्ठ व गरम प्रकृति के पदार्थों का अधिक सेवन करने आदि कारणों से यह रोग होता है । यह रोग दो प्रकार का होता है- बादी बवासीर या खूनी बवासीर । बादी बवासीर में मलद्वार के आस-पास या भीतर कष्टदायक बड़े-बड़े मस्से रहते हैं। खूनी बवासीर में इन मस्सों से खून गिरने लगता है ।
थूजा 1M- इस दवा की प्रति सप्ताह एक मात्रा देने से मस्से झड़ने लगते हैं । इस दवा को देने के दूसरे दिन एस्कुलस हिप 200 भी प्रति सप्ताह देने से बवासीर में लाभ होता है ।
एस्क्युलस हिप 30, 200- मलद्वार में कुछ गड़ने की भाँति दर्द, अंकड़नयुक्त दर्द, बवासीर का रोग, मलद्वार में जलन व खुजली, मलद्वार के भीतर या बाहर मस्से, सामान्यतः रक्तस्राव न होना लेकिन रोग पुराना पड़ने पर खून गिरना, कमर में दर्द, मल-त्याग के पश्चात् भी जलन होना आदि लक्षणों में दें ।
नक्सर्वोमिका 30, 200– निरन्तर मल-त्याग का वेग रहे लेकिन पेट खुलकर साफ न हो, साथ ही बवासीर में मलद्वार से रक्त गिरता हो, मलद्वार में कुटकुटाहट व खुजली रहे तो यह दवा देनी चाहिये ।
सल्फर 30, 200- नक्सवोमिका के बाद इसका व्यवहार करने से अधिक लाभ होता है । बवासीर में खून गिरना बन्द हो जाने से सिर-दर्द आदि लक्षण प्रकट हों, मलद्वार में कुटकुटाहट व डंक मारने जैसा दर्द हो तो इससे बहुत लाभ होता है ।
एसिड म्यूरियेटिकम 30, 200– बवासीर का नीले रंग का मस्सा; बवासीरं का ऐसा तीव्र दर्द कि मलद्वार में स्पर्श भी सहन न हो; मलद्वार में हाथ, कपड़ा या ठण्डा पानी लगना भी सहन नहीं हो; गर्मी में दर्द घटे; मूत्र-त्याग के समय मस्सा बाहर निकल आता हो तो इसे दें । गर्भकाल में अर्श का सिद्ध होती है ।
लैकेसिस 30, 200- बवासीर के मस्से मलद्वार के बाहर या भीतर हों, टपकनयुक्त तीव्र दर्द हो, छींकते या खाँसते समय सुई चुभने की भाँति दर्द हो, मलद्वार के पास कोई चीज अड़ी हुई प्रतीत हो जिससे रोगी को निरन्तर कॉखना पड़े, मल-त्याग के समय तीव्र पीड़ा के कारण रोगी खड़ा हो जाये, मलद्वार बन्द-सा प्रतीत हो, तीव्र दुर्गन्धयुक्त मल आता हो तो यह दवा देनी चाहिये, लाभ होगा ।
प्लैण्टेगी Q, 3x- अत्यधिक कष्टदायक अर्श-रोग, मलद्वार में पिसी मिर्च लग जाने की भाँति जलन व प्रदाह, वार-वार मल-त्याग की जाने पर पीड़ा के कारण मल न आना, रोगी को किसी भी दशा में आराम न मिले तो इसकी निम्नशक्ति का सेवन करें । साथ ही इसके मदरटिंक्चर को बवासीर के मस्सों पर रुई के फाहे से लगायें ।
रैटान्हिया Q, 3, 6– अर्श-रोग में खून गिरता हो, उसमें तीव्र जलन रहे, मल-त्याग के पहले व बाद में जलन हो तथा काटने की तरह दर्द रहे, इतनी अधिक जलन कि ऐसा लगे जैसे मलद्वार में टूटे काँच के टुकड़े अटके हुये हैं तो इसे देना चाहिये । इस दवा का मूल अर्क, वैसलीन में मिलाकर मरहम की भाँति मलद्वार पर लगाना भी लाभप्रद है ।
एकोनाइट 30- खूनी बवासीर, मलद्वार में प्रदाह तथा दबाव, डंक मारने जैसा दर्द, कब्ज, कमर में भी दर्द हो तो इसे देना चाहिये ।
बेलाडोना 30, 200– बवासीर में खून गिरता हो, बवासीर में तीव्र दर्द जिससे पैर छितराकर सोना पड़ता हो, मलद्वार-रोधक पेशियों का संकुचित हो जाना, थोड़ी मात्रा में लाल रंग का मूत्र आये, कमर में तीव्र पीड़ा हो, चेहरा लाल पड़ गया हो, माथे में खून अधिक हो गया हो तो इसे दें।
डायस्कोरिया Q, 6x- मलद्वार के चारों ओर अंगूर के गुच्छों की तरह के मस्से, उनसे पतला रक्त आता हो, अनजाने में चिकनी ऑव गिरे, मलद्वार में तीव्र दर्द हो तो लाभ करती हैं ।
हैमामेलिस Q, 30- मलद्वार में तीव्र अकड़नयुक्त दर्द व जलन, मलद्वार से काफी मात्रा में खून गिरे, साथ ही कमर में दर्द हो तो दें । इसका भीतरी व बाहरी- दोनों प्रकार से व्यवहार करना चाहिये ।
लाइकोपोडियम 30- यकृत के रोगियों को बवासीर का रोग हो, उससे अत्यधिक मात्रा में खून आये, मलद्वार में तीव्र दर्द हो तो इस दवा को दें।
एलो सॉकोट्राइना 30– मल के वेग के साथ अंगूर के गुच्छे की तरह पानी से कम हो, प्राय: पतले दस्त हों तो इस दवा का प्रयोग करें ।
मोमोर्डिका कैरण्टिया Q- यह दवा करेले से बनती है । इसको बवासीर के मस्सों पर लगाना चाहिये । इससे जलन कम होती है ।
लूफा बिण्डल Q- इसका मरहम बनाकर रोगी स्थान पर लगाना लाभप्रद है । मोमोर्डिका कैरण्टिया व हैमामेलिस के साथ ही इस दवा के मूल अर्क (Q) को भी मिलाकर मस्सों पर लगाना अधिक लाभप्रद हैं ।