इस रोग में विभिन्न कारणों से बच्चे की एक या दोनों टाँगों पर पक्षाघातसा हो जाता है अर्थात् बच्चे की एक या दोनों टाँगें क्रियाशून्य तथा टेढ़ीमेढ़ी हो जाती हैं जिससे बच्चा विकलांग हो जाता है । एक बार पोलियों हो जाने पर उसका निदान अत्यन्त कठिन है । अतः इसके लक्षण प्रकट होते ही तुरन्त उपचार कराना चाहिये । वैसे भारत-सरकार द्वारा छोटे वच्चों को पोलियो से बचने की दवा (प्रतिषेधक दवा) मुफ्त पिलाई जाती है ।
पोलियो असाध्य रोग समझा जाता है परन्तु होमियोपैथी ने अब इसे साध्य करके दिखाया गया है। अगर रोग होने के एक साल के अंदर आप हमारी बताई गई दवा का सेवन कराएँगे या हमसे संपर्क करेंगे तो 90% ठीक होने सम्भावना रहेगे ही। अगर एक वर्ष के भीतर भी रोगी दवा शुरू कर दे और उसकी केवल एक टांग या एक हाथ ही प्रभावित हो तो सफलता बहुत जल्दी मिल जाता है। परन्तु रोग जैसे-जैसे पुराना हो जाता है इसे ठीक करने सम्भावना घटते जाती है। वैसे किस रोगी को ठीक होने में कितना समय लगेगा यह रोगी पर निर्भर करता है। परन्तु ऐसा देखा गया है की 6 महीने में रोग नया हो या पुराना ठीक होना शुरू हो जाता है, कई बार तो 1 महीने के अंदर भी सुधार आना चालू हो जाता है।
पोलियो रोग के निम्न होम्योपैथिक दवा को एक बार समझ लेते हैं :-
रोगी को पहले 3 महीने तक रोजाना Hypericum 12 ch की 2 बून्द सुबह और शाम दें। Thuja 200 की 2 बून्द हर 15 दिन पर दें, और Lathyrus 30 की 2 बून्द हर दुसरे दिन दें। तीन महीने तक यह दवा चालू रखें।
अब 3 महीने के बाद Hypericum 200 और Gelsemium 200 की 2 बून्द हफ्ते में 1 बार दें। इसके साथ Calcarea Phos 12x, natrum Mur 12x और Kali phos 12x को मिलाकर रोजाना सुबह और शाम में दें। धयान रखें जिस दिन Hypericum और Gelsemium दें उस दिन इन 3 बायोकेमिक दवा को नहीं खिलाना है। इन्ही दवा को 3 महीने तक चालू रखना है।
अगले 6 से 12 महीने तक – Hypericum 200 हर हफ्ते 2 बून्द, Gelsemium 200 हर दुसरे हफ्ते 2 बून्द देना है। Lathyrus 1M की 2 बून्द हर महीने 1 बार देना है। साथ में Calcarea Phos 30, natrum Mur 30, silicea 30 को मिलाकर इसकी 2 बून्द दिन में 1 बार शाम में देना है।
एक साल बाद पूरे चिकित्सा क्रम को फिर से दोहराना है। शुरू में 3 महीने पहला नुस्खा, फिर 3 से 6 महीने तक दूसरा नुस्खा और फिर 6 से 12 महीने तक तीसरा नुस्खा। यदि पोलियो के कारण अंग विकृत हो गए हैं, टाँगे सिकुड़कर छोटी हो गई है, तो मात्र दवा से यह दूर नहीं होगा, दवा अंग को ताकत देने के लिए है। फिजियोथेरैपी, मालिश, सर्जिकल सपोर्ट की आवश्यकता भी पड़ सकती है।
लैथाइरस 30- फ्लू आदि क्षीण कर देने वाली बीमारियों के बाद अंग कमजोर हो जायें, नींद अधिक आये तथा थकान रहे, टाँगों में कड़ापन हो, चलते समय घुटने आपस में टकरायें, अँगुलियों के पोर सुन्न हो जायें तब यह दवा लाभप्रद है ।
सिकेलि कॉर 30- मेरुदण्ड की उत्तेजना के कारण टाँगों में झनझनाहट एवं सुन्नता रहे, शरीर में गर्मी होने के कारण कपड़े न पहन पायें तो दें।
इथूजा 30- दूध पीने के बाद उसकी उल्टी हो जाये, पेट व आँतें काम करना छोड़ दें, खड़े होने पर सिर को भी सँभाले रखने की शक्ति न रहे, पीठ चिपटी और जकड़ी हुई सी लगे तो लाभकर है ।
पाइनस सिल्वेस्ट्रिस 3 – नीचे के अंग दुर्बल हो जायें, घुटने कमजोर हो जायें, संधिवातू और खुजली के लक्षण रहें तो लाभप्रद है ।