शरीर के किसी भाग में तन्तुओं के फूल उठने के कारण माँस के अनियमित तथा अत्यधिक बढ़ जाने को ‘अर्बुद‘ अथवा ‘विद्रधि‘ कहा जाता है । अर्बुद वाले स्थान पर सूजन नहीं होती, अलबत्ता वहाँ माँस का कुछ अंश बढ़ जाता है । इसके उत्पन्न होने के यथार्थ कारण पता अब तक नहीं चल सका है। इसमें कभी दर्द होता है और कभी नहीं भी हो सकता है ।
अर्बुद कई प्रकार के हो सकते हैं – कैंसरयुक्त ट्युमर, तन्तुयुक्त ट्युमर, तथा चर्बीयुक्त ट्युमर आदि । मुख्यत: इसे दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, वे हैं – (1) हल्का और (2) भारी । हल्का ट्युमर मृदु-प्रकृति का होता है और वह अपने समीपस्थ तन्तुओं को कोई हानि नहीं पहुँचाता । भारी-प्रकृति वाले अर्बुद अपने समीपस्थ तन्तुओं का ध्वंस करते तथा स्वयं बढ़ते रहते हैं ।
चिकित्सा – इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं:-
बैराइटा-कार्ब 6 – यह अर्बुद की उत्कृष्ट औषध है । विशेष कर गाल में चर्बीयुक्त अर्बुद होने पर विशेष लाभ करती है।
कैल्केरिया-फ्लोर 12x – पत्थर की भाँति कड़े अर्बुद में हितकर है।
थूजा 30, 200 – साइकोसिस-दोष से दूषित स्त्री-पुरुषों के जरायु, हड्डी, त्वचा, आँत आदि किसी भी स्थान के अर्बुद में लाभदायक है। इस औषध का अर्बुद कड़ा एवं कटा-सा होता है तथा एक बड़े अर्बुद के ऊपर मस्से जैसे अनेक उदभेद निकला करते हैं ।
कोनियम 30, 200 – कड़े अर्बुद में लाभकारी है। स्त्रियों की वय:सन्धि के समय उत्पन्न होने वाला जरायु का अर्बुद, वृद्धों के कन्धों तथा पीठ का अर्बुद एवं अण्डकोष तथा मूत्राशय-मुखशायी ग्रन्थि के कड़ेपन में भी हितकर है।
हाइड्रैस्टिस 1x, 6 – ग्रन्थियों तथा जरायु के जलनयुक्त अर्बुद में।
कैल्केरिया-कार्ब 200 – चर्बी भरे अर्बुद में हितकर है।
युकैलिप्टस 3x – मूत्र-मार्ग के अर्बुद में इसका मुख द्वारा सेवन करें तथा इसी औषध के मूल-अर्क को रोगी-स्थान पर लगायें ।
विशेष – उत्त औषधियों के अतिरिक्त लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ भी लाभ करती हैं
कार्बो-ऐनि, ऐकोन-रेडिक्स, कोनियम, थूजा (इन्हें आधे से तीन बूंद तक की मात्रा में देना चाहिए) तथा फास्फोरस एवं मेडोरिनम 30, 200 भी देकर देखें ।
बाह्य-प्रयोग के लिए-जख्म वाले अर्बुद के ऊपर ‘आयडोफार्म वि०’ अथवा ‘कार्बो-वेज‘ छिड़कना लाभकारी रहता है ताजा ‘रुटा‘ के मूल अर्क को बैसलीन के साथ मिलाकर तैयार किया गया मरहम निरन्तर लगाते रहने से भी लाभ होता है ।
चर्बीयुक्त अर्बुद की चिकित्सा
फाइटोलैक्का 3, 30 – यदि अर्बुद में चर्बी का अंश अधिक बनता दिखाई दे, गाँठों की कठोरता तथा स्त्रियों के स्तनों में यह औषध विशेष लाभ करती है ।
कैल्केरिया-कार्ब 3, 30 – चर्बी-युक्त अर्बुद में इस औषध का दिन में एक अथवा दो बार उपयोग करना चाहिए ।
बैराइटा-कार्ब 30 – शरीर में यत्र-तत्र विशेष कर गर्दन के समीप चर्बी-युक्त गाँठे दिखाई देने पर इसका प्रयोग हितकर रहता है ।
कार्सिनोसिन 200 – चर्बीयुक्त अर्बुद में इस औषध की प्रति सप्ताह एक मात्रा देते रहने से लाभ होता है ।
तन्तु-युक्त अर्बुद की चिकित्सा
साइलीशिया 6x, 30 – तन्तु-युक्त कठोर अर्बुद में यह औषध लाभ करती है। यह कठोर तन्तुओं को घुला देती है तथा घाव के चिन्हों को भी मिटा देती है।
आरम-म्यूर 1x – डॉ० बर्नेट के मतानुसार यह औषध जरायु के अर्बुद में श्रेष्ठ लाभ करती है ।
कारसिनोसीनम 1x – अर्बुद के साथ शोषण-क्रिया के अभाव में लाभकर है।
फिकस रिलिजिओसा 1 – अर्बुद के कारण जरायु से रक्त-स्राव बन्द न हो अथवा किसी भी अंग से लगातार रक्त-स्राव हो रहा हो तो उसे रोकने के लिए इसे देना चाहिए ।
सिकेलि-कोर 30 – जरायु के तन्तु-युक्त अर्बुद में लाभकारी है ।
थायरायडिनम 3x – थायराइड-ग्लैण्ड की वृद्धि के कारण होने वाले स्त्रियों के अर्बुद में इस औषध को 5 ग्रेन की मात्रा में, दिन में तीन बार देना चाहिए।
थ्लैस्पि बर्सा पेस्टोरिस Q – अर्बुद के कारण जरायु से प्रचुर मात्रा में रक्तस्राव होने पर हितकर है ।
कैन्सर-युक्त अर्बुद की चिकित्सा
बैराइटा-आयोड 3x – कण्ठमाला-विष से दूषित डिम्ब-ग्रन्थि के अर्बुद तथा छाती के कैंसरयुक्त अर्बुद में लाभकर है ।
कार्बो ऐनीमेलिस 3, 30 – सामान्य कैंसर, ग्रन्थियों में छोटी-छोटी तथा पत्थर जैसी कठोर गाँठों का होना, त्वचा पर नीलापन एवं झुर्रियां, बगल की ग्रंथियों का शोथ, स्तनों की गाँठों में पीड़ा, स्तन अथवा गर्भाशय के मुख में कैंसर तथा योनिमार्ग से दुर्गन्धित पतले स्राव का बहना – इन सब लक्षणों में हितकर है ।
हाईड्रैस्टिस 30 – त्वचा पर गर्भाशय का कैंसर, छाती की ग्रन्थि का अर्बुद, पेट का कैंसर तथा कैंसरयुक्त अर्बुद में इस औषध का प्रयोग करना चाहिए । इस औषध का रोगी रक्त-हीन, पीला-चेहरा, सूखी-त्वचा, पिचके गाल, चेहरे पर थकान, उत्साह-हीनता, कब्ज तथा भूख न लगना आदि शिकायतों से ग्रस्त होता है।
रेडियम 30 – कैंसर बनने की प्रथमावस्था में यह औषध बहुत लाभ करती है। इस औषध के रोगी में त्वचा पर दाने हो जाना तथा उनमें जलन और खुजली होना, निशान बनना, पेट में गर्मी तथा हवा भर जाना, कब्ज, बेचैनी आदि के लक्षण पाये जाते हैं । इसे निम्न-शक्ति में नहीं देना चाहिए, अन्यथा रोगी का कष्ट बढ़ सकता है ।
कौंडुरंगो 1x, 30 – पेट के कैंसर तथा कैंसर युक्त अर्बुद में यह विशेष लाभ करती है। डॉ० बर्न स्टीन के मतानुसार यदि कैंसर खुला हो और उसका अर्बुद बन गया हो तो इस औषध की 6x शक्ति से अधिक लाभ होता है ।
आर्सेनिक 30 – तीव्र जलन, भाला चुभने जैसा दर्द, शक्तिहीनता तथा कमजोरी के लक्षणों से युक्त त्वचा की टी. बी. अथवा किसी भी प्रकार के अर्बुद में यह औषध विशेष लाभ करती है ।
कोनियम 30 – स्तनों मे कैंसर जैसे कड़ेपन की प्रवृत्ति, ग्लैण्डस का सूज कर कड़े हो जाना तथा उनमें चलने-फिरने वाला दर्द होना, जो रात के समय बढ़ जाता हो, दूध पीते समय बच्चे के सिर की चोट से माता के स्तन में कड़ापन आ जाना तथा कैंसर के कारण अण्डकोषों अथवा गर्भाशय की वृद्धि के लक्षणों में उपयोगी है।
हेक्लालावा 3x – हड्डियों का कैंसरयुक्त अर्बुद, जिसमें कठोरता न होकर स्पन्जिपन हो – उसमें यह औषध लाभ करती है ।
प्लम्बम आयोडेटम 30 – स्त्रियों के स्तन के कठोर-स्थल, जो धीरे-धीरे अर्बुद का रूप ग्रहण कर रहे हों, दर्द भरी सूजन का बढ़ना तथा कैंसर के लक्षणों में यह औषध हितकर है ।
साइलीशिया 30 – जरायु के अर्बुद तथा त्वचा सम्बन्धी जीर्ण टी० बी० में जब गाढ़ा, पीला तथा दुर्गन्धित स्राव निकलने लगे, तब इस औषध के प्रयोग से लाभ होता है । यह कैंसर के दर्द को कम कर देती हैं ।
कैल्केरिया-फ्लोर 12x – शरीर में गाँठें तथा स्त्रियों के स्तन में कठोर गुमड़ी पड़ जाने पर इस औषध के प्रयोग से कैंसर नहीं बन पाता। स्तनों को कैंसर से बचाने की यह श्रेष्ठ औषध है ।
लैपिस एल्बम 1x, 6 – इसके प्रयोग से अर्बुद की गाँठे कैंसर बनने से बच जाती हैं । डॉ० जोन्स के मतानुसार गर्भाशय के घातक कैंसर में जब काले रंग के दुर्गन्धित-स्राव तथा दर्द के लक्षण प्रकट हों, तब इस औषध का प्रयोग लाभप्रद है।