हृदय रोग गत सौ वर्ष पूर्व घातक रोगों की सूची में छठे क्रम पर था, लेकिन अब यह क्रम एक पर आ गया है। इसकी वजह यह है कि आजकल की मशीनी रफ़्तार वाली जिंदगी में बढ़ रहे मानसिक तनाव, दूषित वातावरण तथा चकाचौंध भरे कृत्रिम जीवन में गलत रहन-सहन, बेमेल खान-पान और बुरे व्यसनों के कारण हृदय के रोगों ने बहुत भयानक रूप धारण कर लिया है।
हृदय रोगों के प्रकार : एलोपैथिक चिकित्सा विज्ञान के मतानुसार हृदय रोग मुख्य रूप से 20 प्रकार के माने गए हैं, जिनका संक्षिप्त विविरण निम्ननुसार है –
- कन्जेनिटल हार्ट डिजीज (Congenital Heart Disease) : जन्मजात हृदय रोग।
- प्रिमेच्योर बीट्स (Premature Beats) : अपरिपक्व धड़कनें।
- ब्रेडीकार्डिया (Bradycardia) : दिल का सामान्य गति से कम धड़कना।
- टेकीकार्डिया (Techycardia) : धड़कन असामान्य गति से बढ़ना।
- एन्जाइना पेक्टोरिस (Angina Pectoris) : हृदय की मांसपेशियों में रक्त संचार की कमी से हृदय में तीव्र पीड़ा, जो बाएं कंधे या पूरे हाथ तक फैले।
- हार्ट ब्लाक (Heart Block) : हृदय में अवरोध।
- कोरोनरी थ्राम्बोसिस (Coronary Thrombosis) : हृदय की एक या अधिक धमनियों में रुकावट होना।
- कार्डियक दायलेटेशन (Cardiac Dilatation) : हृदय गुहा के आकार में वृद्धि।
- आर्टिकुलर फिब्रिलेशन (Articular Fibrillation) : हृदय की पेशियों का सिकुड़ना।
- पेरीकार्डाइटिस ( Pericarditis) : हृदय के आवरण में शोथ होना।
- कार्डियक हायपरट्राफी ( Cardiac Hypertrophy) : हृदय के आकार का असामान्य होना।
- पेरीकार्डियल इन्फ्यूजन (Pericardial Infusion) : हृदय के आस-पास तरल पदार्थ इकठ्ठा होना।
- मायोकार्डियल डिजनरेशन (Myocardial Degeneration) : हृदय प्राचीर के अंदर की परत का क्षय।
- एक्यूट कार्डाइटिस (Acute Carditis) : हृदय के आसपास तीव्रता से शोथ।
- एढेरेंट पेरिकार्डियम (Adherent Pericardium) : पेरिकार्डियम का चिपकना।
- एक्जहाशन ऑफ़ दी हार्ट मसल्स (Exhaustion of the Heart Mussels) : हृदय की पेशियों का थकना।
- साइनस एरिथेमा (Sinus Erythema) : अस्थि गुहा लालिमायुक्त त्वचा।
- हार्ट फेल्योर (Heart Failure) : हृदय की धड़कन का बंद होना।
- आर्टिकुलर फ्लटर (Articular Flutter) : हृदय के कार्य की गति अति तीव्र होना।
- मायोकार्डियल इन्फ्रक्शन (Myocardial Infraction) : हार्ट अटैक, दिल का दौरा।
हृदय रोग के कारण
हृदय के रोगों के होने में निम्नलिखित प्रमुख कारण होते हैं :
मानसिक तनाव : इससे रक्त में ख़राब किस्म की वसा बढ़ जाती है, जिससे रक्त की नलियों में संकुचन उत्पन्न हो जाता है।
मांसाहार : जानवर को मारते समय उसके शरीर से कुछ ऐसे रासायनिक तत्त्व पैदा होते हैं, जो शरीर में पहुंच कर हृदय को नुकसान पहुंचते हैं और उच्च रक्तचाप उत्पन्न करते हैं। इसके अलावा अधिक प्रोटीन से हृदय के अलावा गुर्दे और यकृत को भी हानि पहुंचती है।
बैठे रहने का काम : अधिकांश नौकरियों, व्यवसायों में जो लोग बैठ कर घंटों काम करते हैं और प्रतिदिन घूमना या व्यायाम नहीं करते, उनकी पाचन क्रिया में खराबी आती है, शरीर में चर्बी वाले तत्त्व बढ़ जाते हैं, रक्तचाप बढ़ता है, जिससे हृदय रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।
आनुवंशिकता : माता-पिता या दादा-दादी को हृदय रोग की बीमारी रही हो, तो उनकी संतानों में भी यह बीमारी होने की पूर्ण आशंका रहती है।
मधुमेह व उच्च रक्तचाप : इन रोगों से पीड़ित व्यक्तियों को उचित इलाज न कराने पर हृदय रोग हो जाता है।
अधिक वजन/मोटापा : शरीर में जब मोटापा बढ़कर अधिक वजन हो जाता है, तो हृदय रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।
चर्बीयुक्त भोजन : तली हुई वस्तुएं, मेवे, चॉकलेट, आइसक्रीम, आदि खाने से रक्त में ख़राब किस्म की चर्बी बढ़कर रक्त वाहक हृदय की धमनियों में जम जाती है और उनका संकुचन कर देती हैं, जिससे हृदय रोग होते हैं।
क्रोध और चिंता : इससे मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और हृदय व रक्तचाप को हानि पहुँचती है। यहाँ तक कि हृदय की गति में अवरोध पैदा हो जाता है।
धूम्रपान, तम्बाकू, शराब : ये व्यसन हृदय के लिए विषतुल्य होने के कारण घातक परिणाम पैदा करते हैं। शराब हृदय की मांसपेशियों को कमजोर करती है।
विटामिन बी और ई की कमी : जब आटे को मैदे के समान महीन बनाकर उपयोग में लेते हैं, तो ये विटामिन नष्ट हो जाते हैं। इन विटामिनों की कमी से दिल, दिमाग और नाड़ियां ठीक तरह से काम नहीं करतीं और शरीर की मरम्मत का कार्य व स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना : बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल धमनियों में एकत्र होने लगता है और उसका मार्ग संकरा कर देता है। तंग धमनियों से उच्च रक्तचाप हो जाता है। इनमे रक्त का थक्का अटकने से दिल का दौरा पड़ता है, जो मृत्यु का कारण बनता है।
मानसिक आघात : अत्यधिक हर्ष यानी ख़ुशी का मौका या शोक जैसे किसी निकटतम व्यक्ति की मृत्यु का सदमा हृदय को ऐसे आघात पहुंचाते हैं, जिससे हृदय का दौरा ( हार्ट अटैक ) या हार्टफेल भी हो जाता है।
हृदय रोग के लक्षण
हृदय के रोगों में निम्नांकित प्रमुख लक्षण देखने को मिलते हैं :
चेस्ट पेन : छाती में बाईं ओर भयंकर दर्द होना, तड़पना। दर्द बांह तक जाना।
डिसनिया : श्वास लेने में तकलीफ होना, जरा से परिश्रम से सांस फूलना।
पेलपिटेशन : दिल की धड़कने तेज और बढ़ी हुई होना।
परसिस्टेंट हेडेक : सिर में लगातार दर्द का बना रहना।
आर्थोपेनिया : लेटने की स्थिति में सांस लेने में कष्ट होना।
सिनकोप : मूर्च्छित यानी बेहोश होना।
ऐंकल्स स्वेलिंग : टखनों पर सूजन आना। पैरों पर भी सूजन होना।
स्वेटिंग : इतना अधिक पसीना आना कि शरीर भीग जाये।
फेटिंग : बिना किसी खास कारण के थकान महसूस होना।
वर्टिगो : चक्कर आना।
सीइंग डबल : एक के दो दिखना खतरनाक लक्षण होता है।
इनडाइजेशन : अपच से खट्टी या सामान्य डकारें आना।
कार्डियक अरेस्ट : अचानक हृदय की धड़कने पूरी तरह बंद होकर मृत्यु होना।
हृदय रोग में क्या खाएं
- हल्का, सुपाच्य, संतुलित भोजन खाएं। मिताहारी बनें।
- चोकर सहित आटे की रोटी, गेहूं का दलिया, सोयाबीन मिले आटे की रोटी, सोयाबीन की दाल, छिलके वाली मूंग की दाल तथा अंकुरित गेहूं का सेवन करें।
- ताज़ा मीठा दही, गाय का दूध, वसारहित दूध, गुड़, शहद, बादाम, पिस्ता, मकई, छिलका युक्त देसी चना खाएं।
- फलों में अंगूर, अनार, आंवला, सेब, लीची, अमरुद, नीबू का सेवन करें।
- सब्जियों में पालक, लहसुन, गाजर, मूली, टमाटर, अदरक, धनिया, प्याज, चौलाई, अरबी खाएं। लहसुन तथा अदरक कोलेस्ट्रॉल कम करके रक्त का थक्का बनने से रोकता है।
- तेलों में सूर्यमुखी का तेल, मकई का तेल, सोयाबीन, बिनौले का तेल, तिल का तेल, सरसों के फिल्टर्ड तेल का सेवन करें।
- मट्ठा या छाछ एक कप की मात्रा में सुबह-दोपहर भोजन के बाद पियें।
हृदय रोग में क्या न खाएं
- भारी, गरिष्ठ, तेज़ मिर्च-मसालेदार चटपटे, तले हुए पदार्थ न खाएं।
- मांसाहार, अंडा, शराब, तम्बाकू, कड़क चाय, कॉफ़ी, पनीर से परहेज करें।
- घी, मक्खन, वनस्पति घी, नारियल का तेल, पाम तेल, मलाई, मावा, राबड़ी, खीर, आइसक्रीम, केक, चॉकलेट, बिस्कुट का सेवन न करें।
- नमक का अधिक सेवन न करें।
- अचार, पापड़, चटनी के सेवन से परहेज करें।
- मीठी-चीज़ें, चीनी तथा कोल्ड ड्रिंक्स का प्रयोग कम-से-कम करें।
रोग निवारण में सहायक उपाय
हृदय रोग में क्या करें
- प्रातः खुली हवा में नियमित रूप से घूमने जाएँ।
- योगासन एवं प्राणायाम रोजाना करें।
- खेलना, तैरना, साइकिल चलाना जारी रखें।
- सरसों के तेल से सारे बदन की रोज मालिश करें।
- चिंता, क्रोध, मानसिक तनाव, भय को दूर करने का प्रयत्न करें।
- यार-दोस्तों के साथ मिले-जुलें। हँसे और हंसाये। मनोरंजन रोज करें।
- अविवाहित हों, तो विवाह कर लें। दिल की बिमारी का खतरा कम होगा।
- अपनी काबिलीयत पर विश्वास रखें। आत्म विश्वासी बनें।
- निगेटिव भावनाओं को पॉजिटिव विचारों में बदल दें।
- कब्ज न होने दें।
क्या न करें
- धूम्रपान से परहेज करें।
- आलसी न बनें। आसपास के काम स्वयं करें।
- भोग विलास में अति न करें।
- निराश, हताश होकर चिंता में ही न दुबे रहें।
- अपनी सेहत के प्रति लापरवाही न बरतें
- मोटापा और वजन न बढ़ने दें।