इस रोग में रोगी का पूरा शरीर पीला पड़ जाता है अर्थात् उसकी त्वचा का रंग, आँखें आदि सभी पीले हो जाते हैं । साथ ही हल्का ज्वर, सुस्ती, भूख न लगना, मुँह का कड़वापन, कमजोरी, अनिद्रा आदि लक्षण भी रहते हैं । यह रोग मुख्यतः यकृत की खराबी के कारण होता है। इसके अलावा के कारण भी यह रोग हो जाता हैं ।
आर्सेनिक एल्ब 30, 3x- मलेरिया या टाइफाइड के साथ होने वाले पीलिया में लाभकारी हैं ।
चेलिडोनियम Q, 30, 3x- यकृत की खरावी के कारण रोग हो जाना, विशेषकर यकृत में प्रदाह रहता हो तो लाभप्रद है ।
चायना 30, 3x- यकृत और प्लीहा- दोनों ही बढ़ गये हों, रोगी की खाने की इच्छा न हो फिर भी वह भूख-भूख चिल्लाये, पेट फूलने वाला अफारा, डकार से भी अफारा न घटे ती लाभ करती है ।
कॉर्नस सर्सिनेटा Q, 6– पुराने यकृत-प्रदाह या मलेरिया के कारण रोग होने की स्थिति में देनी चाहिये ।
आयोडम 30, 200– प्लीहा खूब बढ़ी हुई, रोगी खूब खाये फिर भी दुर्बल पर्यायक्रम से हों, शौंच का रंग सफेद हो तो दें ।
डिजिटेलिस 30, 1x- यकृत में दर्द, मुंह का स्वाद तीता, वमन, नाड़ी अनियमित, शौच का रंग सफेद हो तो दें ।
फॉस्फोरस 30, 200– यकृत में प्रदाह के कारण पीलिया होना, रक्त उत्पन्न हो गये हों तो देनी चाहिये ।
मर्कसॉल 30, 200- जीभ पर मैल जमना, जीभ मोटी हो जाये, यकृत में तेज दर्द हो जो दाहिनी ओर लेटने से बढ़े तो लाभप्रद है । कुनैन के प्रयोग से रोग हो जाने पर देनी चाहिये ।
मर्क वाइवस 30- पीलिया रोग जिसमें कभी-कभी पेट में मरोड़ भी उठती हो, रोगी दाहिनी करवट न लेट पाता हो तो लाभदायक है ।
पीडोफाइलम 30, 200– यकृत में दर्द और पुराने प्रदाह के साथ पीलिया होने पर देनी चाहिये ।