वैसे तो पसीना निकलना स्वस्थ्य के लिए लाभप्रद होता है परन्तु अत्यधिक पसीना, बदबूयुक्त पसीना, किसी अंग विशेष से अत्यधिक पसीना निकलना अथवा इसी प्रकार के अन्य लक्षण कभी कभी परेशानियों का कारण बन जाते हैं, उनका यहाँ उपचार प्रस्तुत है
शरीर में ठण्डक परन्तु सिर या सीने पर अधिक पसीना- कल्केरिया कार्ब 12, 30, 200- इस सर्द दवा का उपयोग ऐसे लोगों में अधिक होता है जिनके हाथ-पैर पतले, शरीर थुलथुला व स्थूलकाय, पेट बड़ा तथा गर्दन पतली हो । रोगी को अत्यधिक ठंड लगती है और शरीर ठंडा होने पर भी सोते समय अत्यधिक पसीना आना इस दवा का विशेष लक्षण है । डॉ० घोष ने लिखा है कि इसका रोगी खूब मोटा-ताजा और चर्वीयुक्त होता है, बच्चे जड़वत होते हैं, बच्चों से जल्दी-जल्दी हिला-डुला नहीं जाता, उनकी त्वचा सूखी रहती है, पाँव के तलवे में अत्यधिक ठंडक होती है । पैरों में पसीना आकर तलवों में घाव हो जाते हैं व चमड़ी गल जाती है । डॉ० सत्यव्रत ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि कल्केरिया कार्ब का विशिष्ट लक्षण यह है कि इसके रोगी को ठंडे कमरे में भी पसीना आता हैं जबकि ठंड में तो पसीना नहीं आना चाहिये। यह एक अद्भुत बात है और इस प्रधान लक्षण को कदापि भूलना नहीं चाहिये ।
डॉ० एलिस बारकर ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि इसके रोगी के पैर इतने ठंडे होते हैं कि मानो ठंडी जुराब पहन रखी हों । इन लक्षणों पर विशेष ध्यान देने से कभी-कभी कई रोगों में आशातीत सफलता मिलती है। कल्केरिया कार्ब के रोगी को ठंड शरीर के विभिन्न अंगों में महसूस होती है । डॉ० कैन्ट कहते हैं कि इसके रोगी को विभिन्न जगहों पर ठंडक महसूस होती है तथा विभिन्न अंगों में पसीना आता है । डॉ० कैन्ट के अनुसार यह दवा एक त्रियक श्रृंखला से होकर गुजरती हैं और वह त्रियक है- सल्फर, कल्केरिया कार्ब, लाइकोपोडियम | इसका तात्पर्य यह है कि सल्फर देने के बाद कल्केरिया कार्ब के लक्षण उत्पन्न होते हैं और कल्केरिया कार्ब देने के बाद लाइकोपोडियम के लक्षण उभरते हैं । इसी संदर्भ में डॉ० नैश ने कहा है कि मानव समाज में अधिकांश रोगी इसी त्रियक से होकर गुजरते हैं । इस दवा का इतना अधिक चित्रण करने का मेरा यही अर्थ है कि यह दवा अपने विशिष्ट लक्षणों की वजह से कई व्याधियों में कार्यसाधक, दीर्घकालिक क्रिया करने वाली, सर्द प्रकृति की दवा है ।
पसीने में बदबू, खट्टी गन्ध, हाथ-पैरों में अधिक पसीना-साइलीशिया 30,200- यह एकं सर्द प्रकृति की औषधि है । इसके रोगी को माथे से गर्दन तक अत्यधिक बदबूदार पसीना आता है तथा नीद आते ही सिर पसीने से भीग जाता है । पाँवों में बदबूदार पसीना आता है और पसीना रुकने से होने वाले रोगों की यह प्रधान दवा है । इसके रोगी की शारीरिक संरचना इस प्रकार होती है- पेट व सिर अन्य शरीर की अपेक्षा बड़े होते हैं, हाथपैर दुर्बल होते हैं व शरीर पर झुर्रियाँ होती हैं । पोषण-क्रिया का अभाव भी मुख्य लक्षण है । रोगी शीत-प्रधान होता है, जिसे अत्यधिक ठंड लगती है और गर्म जगह पर भीड़ से ठंडक महसूस होती है अर्थात् रोगी हमेशा ठंडक महसूस करता है । पाँवों में बदबूदार पसीना आता है । इस दवा का एक और प्रधान लक्षण यह है कि रोगी को खुले सिर में अत्यधिक ठंड महसूस होती है इसलिये वह हमेशा सिर पर कपड़ा बाँधे रखता है । गर्भवती स्त्रियों की उच्चशक्ति देना निषेध है ।
बगल में पसीना आना- पेट्रोलियम 200– डॉ० फैरिंगटन लिखते हैं कि बगल में पसीना आने की स्थिति में यह सबसे उत्तम दवा है ।
सिर पर पसीना नहीं परन्तु सारे शरीर से पसीना- रसटॉक्स 200, 1M- इसका यह लक्षण है कि इसके रोगी को सिर पर पसीना नहीं आता परन्तु सारा शरीर पसीने से भीग जाता है । ऐसी स्थिति में यह दवा सप्ताह में एक बार अवश्य लेनी चाहिये ।
शरीर के बॉये पाश्र्व पर पसीना- जेबोरेन्डी 200– यदि शरीर के बॉये भाग में अत्यधिक पसीना आता हो तो रोगी को इस दवा की एक मात्रा प्रति सप्ताह देनी चाहिये ।
शरीर के दाँये पाश्र्व पर पसीना- पल्सेटिला 30, 200- यदि शरीर के दाँये भाग में अधिक पसीना आता हो तो ऐसी स्थिति में इस दवा की 30 शक्ति का प्रयोग उचित है । परन्तु यदि रोग पुराना हो तो इसकी 200 शक्ति का प्रयोग करना चाहिये। गर्भवती महिलाओं को या सन्तान के इच्छुक दम्पत्ति को उच्चशक्ति विना सोचे-समझे कदापि नहीं देनी चाहिये ।
रात्रि में अत्यधिक पसीना आना, जब सभी दवायें असफल हो जायेंसैलिक्स नाइग्रा Q- जब रात्रि में पसीना होने पर अन्य सभी दवायें असफल हो जायें उस स्थिति में इस दवा की 10-15 बूंद पानी में लेनी चाहिये । इस दवा के रोगी को नीद खुलते ही पसीना आता है तथा नीद में शरीर सूखा रहता है ।
नींद आते ही पसीना आना- कोनियम 12,30- डॉ० लिपि कहते हैं इसके रोगी को थोड़ी-सी नोंद या तन्द्रा आते ही पसीना आने लगता । इन लक्षणों पर विशेष ध्यान देना चाहिये व रोगी के ऐसे लक्षणों पर, चाहे जो हो, यह दवा देने से उसके अन्य रोग भी ठीक हो जाते हैं। डॉ० घोष लिखते हैं कि इसके रोगी को दोनों ऑखें बन्द करते ही पसीना आने लगता है ।
नीद खुलते ही पसीना आना- सैम्बुकस नाइग्रा 30,200- नीद खुलते ही पसीना आने लगता हो तो ऐसी स्थिति में यह दवा दी जा सकती है ।
मीठा पसीना निकलने पर- कैलेडियम सेग्विनम 30, 3x- कई व्यक्तियों को मीठा पसीना निकलता है जिसकी मिठास से मक्खियाँ आकर्षित होती हैं, ऐसी स्थिति में यह दवा देनी चाहिये । इसके रोगी की बीमारी के समय सोने पर अधिक पसीना आता है परन्तु इस दवा में विशेषता यह है कि इसके रोगी का पसीना मीठा होता है ।
किसी भी बीमारी में सिर पर ठंडा पसीना आये- वेरेट्रम एल्बम 6, 30 कोई भी बीमारी जिसमें सिर पर ठंडा पसीना आता हो उसमें यह दवा दें।
नीद आते ही पसीना आये परन्तु जागते ही पसीना सूख जाये- थूजा 30- यह एक प्रधान एण्टीसाइकोसिस दवा है । इसका रोगी भी सर्द प्रकृति का होता है। इसके रोगी के पसीने में एक विचित्रता यह होती है कि इसके रोगी को सोते ही पसीना आने लगता है, परन्तु जागते ही पसीना सूख जाता है । शरीर के सिर्फ खुले भागों पर ही पसीना आता है, जो अंग कपड़े से ढके रहते हैं उन पर पसीना नहीं आता ।
खुले अंगों में पसीना नहीं आना- बेलाडोना 30- यह थूजा से पसीने के मामले में विरुद्ध है । इसके रोगी को खुले हुए अंगों पर पसीना नहीं आता, केवल शरीर के ढके भागों में ही पसीना आता हैं ।
नाक के चारों ओर पसीना आना- चायना 30- यदि नाक के चारों ओर पसीना आये तो इसे दें ।
नाक के चारों ओर तथा मुँह के आस-पास ठंडा पसीना-रियूम 6, 30 – यदि नाक और मुँह के आस पास चारों तरफ ठण्डा पसीना आये तो इस दवा का आवश्यकता के अनुसार प्रयोग करें ।
बदबूदार सड़ी हुई वस्तु जैसी गंध वाला पसीना- स्टेफिसेग्रिया 30 – यदि ऐसा पसीना आता हो जिसमें सड़ी हुई गन्ध हो तो यह दवा दें ।
हथेली पर पसीने के साथ खट्टी बू- फ्लोरिक एसिड 6, 200– यदि हथेली पर पसीना आये जिसमें खट्टी बदबू हो तो इस दवा को देने से बहुत लाभ होता है ।
पसीना निकलने के बाद कमजोरी- चायना 30– इसका यह प्रधान लक्षण है कि शरीर से अधिक मात्रा में तरल स्राव निकलने के बाद कमजोरी महसूस होती है, अतः यदि शरीर से पसीना निकलने के बाद कमजोरी आये तो यह दवा दें ।
पैरों के तलवों पर पसीना- लैक्टिक एसिड 200– यदि पैरों के तलवों पर पसीना आता ही मगर उसमें किसी भी प्रकार की बदबू न हो तो ऐसी दशा में इस दवा की एक मात्रा देनी चाहिये ।