परिचय : 1. इसे खदिर (संस्कृत), खैर (हिन्दी), खयेर (बंगाली), काथ (मराठी), खेर (गुजराती) कचुकट्टि (तमिल), पोडलमानु (तेलुगु) तथा एकेशिया कटेचू (लैटिन) कहते हैं।
2. खैर वृक्ष मध्यमाकार और बबूल की जाति का होता है। इसमें छोटे-छोटे काँटे रहते हैं। पत्ते भी बबूल, छिंकुर की तरह, टहनियों पर लगी 10-12 जोड़ सींकों पर 30-50 जोड़े तक छोटे-छोटे (पत्रकों के रूप में) होते हैं। पूरा पत्ता पक्षाकार बन जाता है। खैर के फूल हल्के-पीले रंग के, छोटे-छोटे तथा फली 2-3 इंच तक लम्बी, आध-पौन इंच चौड़ी, पतली चमकदार और कत्थई रंग की होती है। फली में 5-8 गोलाकार बीज होते हैं।
3. खैर सूखे वायुमण्डल में अधिक होता है। हिमालय में 5 हजार फुट की ऊँचाई तक, पश्चिमोत्तर प्रदेश, बम्बई आदि प्रान्तों में पाया जाता है।
4. इसकी कई जातियाँ होती हैं : 1. श्वेत-खदिर (पपरिया खैर)। 2. रक्तकर्पिश-खदिर (पखरा खैर)। 3. रक्त-खदिर (विशेषत: पान में प्रयुक्त) और 4. बिट् खदिर (हरिमेद, दुर्गन्धयुक्त खैर)।
खैर के वृक्ष की छाल से ‘खदिर-सार’ तैयार किया जाता है। यह काले कत्थई रंग का जमाया हुआ पदार्थ ही कत्था है।
रासायनिक संघटन : इसमें खदिरसार (कत्था) 35 प्रतिशत तथा टैनिन द्रव्य 57 प्रतिशत मिलता है। इसमें कैटेचीन नामक सत्व मिलता है।
कत्था के गुण : यह स्वाद में कडुआ, कसैला, पचने पर कटु, हल्का तथा सूक्ष्म है। इसका मुख्य प्रभाव त्वचा-ज्ञानेन्द्रिय पर कुष्ठध्न (कुष्ठ आदि चर्मरोगों का नाश करनेवाला) रूप में पड़ता है। यह रक्त का स्तम्भक, वर्धक, शोधक, दन्त्य (दाँत) तथा मुखरोगहर), रंग को ठीक करनेवाला, व्रण-शोधक (घाव-शोधक), स्तम्भक (दस्त बन्द करनेवाला) मेदशोषक, गर्भाशय-शिथिलताहर तथा शुक्रशोधक है।
प्रयोग : 1. कुष्ठ : खदिर-काष्ठ के छोटे-छोटे टुकड़े कर पाताल-यन्त्र से तेल निकाल लें। फिर उसमें घी, शहद और आँवले का रस मिलाकर सेवन करें तो सब प्रकार के कुष्ठ दूर हो जाते हैं। मात्रा अवस्थानुसार लें।
2. मुख रोग : खदिर की छाल का काढ़ा बनाकर उसे तेल में पका लें। प्रतिदिन इस तेल से मंजन करने पर दन्तरोग नहीं होते और दाँत मजबूत हो जाते हैं। कत्थे को पानी में घोलकर कुल्ले करने से मुख के छाले भी ठीक हो जाते हैं।
3. व्रण : किसी प्रकार के फोड़े को कत्था और त्रिफला के काढ़े से धोने से उसकी शुद्धि हो जाती है। कत्था एक तोला, कबीला 1 तोला और मुरदासंग 1 तोला मिलाकर चूर्ण बना लें। गीले फोड़े पर उसे रूई से और सूखे फोड़े पर घी या वैसलीन में मिला मरहम लगाने से सब प्रकार के फोड़े ठीक हो जाते हैं।
4. मलेरिया : मलेरिया रोग में कत्थे की छोटी-छोटी गोली चूसते रहने से मलेरिया ठीक हो जाती है।
5. दस्त : कत्थे को पानी में उबालकर उस पानी को पीने से दस्त में तुरंत राहत मिलती है। पेट संबंधी अनेक रोग भी ठीक हो जाते हैं।
6. खाँसी : कत्थे को हल्दी और मिश्री के साथ लेने पर पुरानी से पुरानी खाँसी से छुटकारा मिल जाता है।
7. दाँत के रोग : कत्थे को सरसो के तेल के साथ दाँतों में मालिश करने से दाँत दर्द में राहत और दाँतों की समस्या से छुटकारा मिलता है।
8. कान में दर्द : कत्थे को पानी में उबालकर उस पानी को कान में डालने से कान की समस्या दूर होती है।
कत्थे से नुकसान : कत्थे के ज्यादा इस्तेमाल से नपुंसकता उत्पन्न हो सकती है।