यह एक धातुगत रोग है, अत: इसे बाह्य-उपचार से ठीक करने की अपेक्षा, शरीर की धातु को ठीक करना ही आवश्यक है । यह एक प्रकार का संक्रामक-रोग भी है । रोगी-व्यक्ति के वस्त्र, बिस्तर पर तौलिये आदि का प्रयोग करने से यह बीमारी अन्य लोगों को भी लग जाया करती है । यों, एक प्रकार के कृमि इस रोग को उत्पन्न करने के कारण माने जाते हैं । इस बीमारी में अत्यधिक खुजली होती है और कभी-कभी खुजाते-खुजाते रक्त-स्राव भी होने लगता है। यह रोग शरीर के किसी भी भाग में हो सकता है।
दाद की सामान्य चिकित्सा
इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-
वैसीलिनम 30, 200, 1M – इस औषध की 30 शक्ति की एक मात्रा, एक सप्ताह तक देनी चाहिए । फिर सप्ताह में एक बार के हिसाब से 200 शक्ति की एक मात्रा 4 सप्ताह तक देनी चाहिए। तत्पश्चात् 1M की मात्रा को महीने में एक बार के हिसाब से 5-6 महीने तक देना चाहिए । इस क्रम में 6-7 महीने तक इस औषध का सेवन करते रहने पर दाद हमेशा के लिए चला जाता है । यह इस रोग की मुख्य औषध मानी जाती है। इसके सेवन से सिर में रूसी, बाल झड़ना तथा बालक की ग्रीवा के ग्रन्थि-रोग में लाभ होता है । बालकों के दाद में यह औषध बहुत प्रभावकारी सिद्ध होती हैं ।
सल्फर 30 – यदि दाद के साथ ही पेट की गड़बड़ी, खट्टी डकारें आना, पेट में अम्लत्व या गैस बनना, उबकाई आना, भूख न लगना, रात के समय बेचैनी का अनुभव, सिर का गरम होना तथा हाथ-पाँवों का ठण्डा रहना – ये सब लक्षण भी हों, तो इस औषध के सेवन से लाभ होता हैं ।
कैल्केरिया-कार्ब 30 – यदि रोगी का शरीर ‘कैल्केरिया’ प्रकृति का हो, मोटा तथा थुलथुल शरीर, जगह-जगह ग्रन्थियाँ तथा हाथ-पाँवों का पसीजना – इन लक्षणों में इस औषध की एक-एक मात्रा नित्य प्रात:-सायं पाँच-सात दिनों तक दें ।
टैल्यूरियम 6 – शरीर में किसी भी स्थान पर दाद होने पर यह औषध बहुत लाभकर सिद्ध होती है । दाद के धब्बे, अंगूठी के आकार का दाद, हाथ-पाँवों में खुजली, नाई के उस्तरे के कारण उत्पन्न खुजली, त्वचा में डंक मारने जैसा अनुभव, पाँवों में दुर्गन्धित-पसीना आना, कान के पीछे अथवा सिर के पीछे निम्न-भाग में एग्जिमा तथा एग्जिमा के गोलाकार दाद जैसे चकत्ते – इन सब उपसर्गों में यह औषध लाभ करती है ।
सीपिया 30 – यदि आवश्यकता हो तो इस औषध को ‘सल्फर’ के बाद दिया जा सकता है । यह सिर के दाद में बहुत लाभ करती है। ‘सीपिया 30’ को मुख द्वारा सेवन करने के साथ ही, सिर के बाल कटवा कर, ‘सीपिया 1x’ को पानी अथवा ग्लीसरीन में मिलाकर सिर के दाद वाले भाग पर मलने से शीघ्र लाभ होता है ।
नेट्रम-सल्फ 200, 1000 – यदि उक्त औषधियों से लाभ न हो तो महीने में एक बार इस औषध का सेवन करना हितकर सिद्ध होता है ।
विशेष – उक्त औषधियों के अतिरिक्त लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों के प्रयोग की भी आवश्यकता पड़ सकती है :-
हिपर-सल्फर, एसिड-नाइट्रिक, सल्फर, ग्रैफाइटिस, फास्फोरस, रस टाक्स तथा मर्क-कोर । इन औषधियों को 6 से 30 तक की शक्ति में प्रयोग करें।
स्त्रियों के दाद के लिए – कैलेडियम तथा सैंगुइनेरिया विशेष लाभ करती है।
सिर का दाद
(1) क्राइसोफेनिक-एसिड 4 ग्रेन को 1 औंस जैतून के तेल में मिलाकर लगाने से माथे के खोल की दाद तथा घने केशों से ढँकी अन्य अंगों की दाद में लाभ होता है, फिर किसी अन्य औषध के सेवन की आवश्यकता ही नहीं पड़ती ।
(2) रोगाक्रान्त-स्थान के चारों ओर के केश मुँडवाकर, पहले वहाँ साबुन लगायें तथा गरम पानी से धो डालें । यदि दाद सूखी हो तो उस पर नित्य प्रात: एवं सायंकाल ‘आयोडिन’ के ‘मूल-अर्क’ का लेप करें । इस प्रकार चिकित्सा करने से यदि जलन बढ़ जाय तो कुछ दिनों के लिए इस उपचार को बन्द कर देना चाहिए तथा जलन शान्त हो जाने पर पुन: आरम्भ करना चाहिए ।
(3) इस रोग में कैल्के-कार्ब 6, 12 अथवा सल्फर 30 का सेवन करना भी लाभकारी रहता है ।
मूंछों का दाद
मूंछों के दाद में निम्नलिखित औषधियों का लक्षणानुसार प्रयोग करें-
एण्टिम-क्रूड, मर्क-आयोड, लाइकोपोडियम, सल्फर, ग्रैफाइटिस ।