खाँसी का होम्योपैथिक इलाज
इस लेख में हम पुरानी खांसी के एक केस की चर्चा करेंगे कि कैसे होम्योपैथिक दवा से इस समस्या को ठीक किया गया।
एक 21 वर्ष की लड़की को काफी समय से खांसी की समस्या थी और कमर में दर्द हो जाता था। सिर के तलवे में दर्द रहता था जो आँख बंद कर लेने से थोड़ा कम हो जाता था ।
हर दिन सिर-दर्द होता था जो मासिक के दिनों में बढ़ जाता था। चार साल में कभी खाँसी होती, कभी हट जाती थी। अनेक जगह इलाज कराया, परन्तु खाँसी से पूरी तरह आयाम कभी नहीं मिला।
उससे गर्मी बर्दाश्त नहीं होती थी। गर्म कमरे में चक्कर सा आ जाता था। चिड़िचिड़ापन, गुस्सा स्वाभाव; सान्त्वना नापसंद; शोर से मन और चिड़चिड़ा हो जाता था ।
चुकी यहाँ रोगिणी गर्म – प्रकृति की थी इसलिए शीत प्रकृति की दवाओं को विचार क्षेत्र में नहीं लाया जा सकता था। अब जिन दवाओं पर विचार किया जायेगा, वे गर्म प्रकृति की रहेंगी
हमेशा याद रखें, अगर रोगी की समस्या गर्मी से बढ़ती है, गर्मी बर्दास्त नहीं होती, तो होमियोपैथी सिद्धांत के अनुसार रोगी ग्रीष्म प्रकृति का है और अब हमें ग्रीष्म प्रकृति की दवा को ही चलनी है।
लक्षणों पर जब हमने विचार किया तो पाया :- सान्त्वना से रोग बढ़ता है : इस लक्षण पर लिलिसम टिग; लाइकोपोडियम; नैट्रम म्यूर; प्लैटिनम; और थूजा ।
शोर-गुल से रोग बढ़ना : इस लक्षण पर ; iodium और नैट्रम म्यूर मिलेगा ।
गर्म कमरे में चक्कर सा आ जाना : इस लक्षण पर लैकेसिस ; लिलियम टिग; पल्साटिला; नैट्रम म्यूर; सल्फ़र मिलेगा।
आँख बंद करने से सिर दर्द में कमी : ऐलू; ब्रायोनिया; आयोडियम; नैट्रम म्यूर; प्लैटिनम; सल्फ़र ।
मुँह के अंदर का तालु पर दर्द तथा जलन: ब्रायोनिया; लैकेसिस; नैट्रम म्यूर; नैट्रम सल्फ़; सल्फ़र ।
मासिक-धर्म के समय समस्या और दर्द बढ़ जाना : लैकेसिस ; नैट्रम म्यूर; सल्फ़र।
पूरे मामले के अनुसार रोगिणी में ब्रायोनिया के 2 लक्षण थे; लैकेसिस के 3 लक्षण थे, लाइकोपोडियम के 2 लक्षण थे, नैट्रम म्यूर के 6 लक्षण थे, और सल्फ़र के 4 लक्षण थे ।
इस आधार पर उसे नैट्रम म्यूर 30 की 2 बून्द दिन में 3 बार लेने को दी गईं। कुछ ही दिनों में सिर-दर्द बिल्कुल जाता रहा, सिर के तालु का दर्द भी नहीं रहा, ग़श का – सा अनुभव भी नहीं होता, कमर दर्द भी चला गया, और खाँसी का नामोनिशान भी मिट गया ।
Chronic Cough Problem Solution Video
खाँसी वास्तव में कोई स्वतन्त्र बीमारी न होकर अन्य किसी बीमारी या समस्या का लक्षण मात्र ही है । इन समस्याओं में- सर्दी लग जाना, धूलधुंये भरे वातावरण में ज्यादा रहना, सीलन से युक्त भवन में रहना, तले आदि प्रमुख हैं। खाँसी कई प्रकार की हो सकती है जैसे- साधारण खाँसी, काली खाँसी, हूप खाँसी आदि । साधारण खाँसी भी दो तरह की होती है, सूखी खाँसी और कफज (तर) खाँसी । जिस खाँसी में कफ न हो वह सूखी खाँसी ही कहा जाता है । यहाँ पर इसी की चिकित्सा दी जा रही है ।
एकोनाइट 30, 200- खाँसी के प्रारम्भ होते ही सर्वप्रथम यही दवा देने मात्र से आराम हो जाता हैं । एकोनाइट किसी भी रोग-आक्रमण की प्रथम अवस्था में दी जाने वाली प्रमुख दवा है । लेकिन जब तक रोगी चिकित्सक के पास पहुँचता है, तब तक इस दवा के प्रयोग का समय निकल चुका होता है, ऐसी स्थिति में लक्षणानुसार अन्य दवा देनी चाहिये ।
इपिकाक 30- बार-बार खाँसी उठना, श्वास लेने में कष्ट, दम घोंटने वाली ऐसी खाँसी उठे जिसमें खाँसते-खाँसते वमन हो जाती हो, बार-बार साँस फूलती हो, हाथ-पाँव अकड़े तो लाभप्रद है ।
ब्रायोनिया 30– गले में सुरसुराहट के साथ सूखी खाँसी, खाना खाने के बाद खाँसी प्रारम्भ हो जाये तो लाभप्रद है | अगर रोगी को सोते समय विशेष रूप से खाँसी उठती हो तो इस दवा के साथ उसे पल्सेटिला 30 भी पर्यायक्रम से देनी चाहिये |
ड्रोसेरा 30- खाँसते समय पसलियों में दर्द हो, खाँसते-खाँसते रोगी का चेहरा एकदम लाल पड़ जाता हो, हँसने-बोलने से भी खाँसी बेहद बढ़ जाती हो तो इसका प्रयोग लाभप्रद हैं ।
कैमोमिला 12- सूखी खाँसी जो रात में विशेष रूप से बढ़ जाती हो, रोगी के स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ गया हो तो लाभदायक है ।
इग्नेशिया 30- दिन-रात सूखी खाँसी उठे, जुकाम भी हो, रोगी का मन दु:खी रहता हो तो देनी चाहिये ।
कॉस्टिकम 6, 30- सर्दी लग जाने के कारण सूखी खाँसी, चिल्लाने के कारण सूखी खाँसी- इन लक्षणों में दें ।
आर्सेनिक 30- तर खाँसी, कफ अत्यन्त कष्ट के साथ थोड़ा-थोड़ा करके निकलता हो, पानी पीने के बाद खाँसी विशेष रूप से उठती ही इत्यादि लक्षणों में लाभप्रद है ।
एण्टिम टार्ट 6– तर खाँसी, तीव्र खाँसी, दम फूलने लगे, छाती में कफ घड़घड़ाता प्रतीत हो परन्तु बाहर न निकल पाये तो लाभप्रद है ।
सेनेगा Q- डॉ० नैश का कहना था कि पहले सूखी खाँसी हो, फिर बहुत कफ वाली तर खाँसी हो जिसमें छाती में कफ घड़घड़ाये, खाँसी तीव्र हो, दम फूलने लगे तो इस दवा का सेवन करने से बेहद लाभ होता है ।
ट्यूबरक्युलिनम 200– जब लक्षणानुसार दवायें देने के बावजूद रोगी को जरा-भी आराम न हो और कोई भी लाभ न हो तो इस दवा की कुछ मात्रायें देने से लाभ अवश्य ही हो जाता है। कुछ चिकित्सकों का कहना है कि इस दवा का प्रयोग तभी करना चाहिये जबकि रोगी के परिवार में टी० बी० का इतिहास मिले लेकिन मैं इस बाध्यता को नहीं मानता हूँ । वास्तव में किसी रोगी की खाँसी में सही दवायें देने के बाद भी किंचित भी आराम न हो तो यही दवा देनी चाहिये ।