सदैव भोग के विषय में ही सोचते रहने को कामोन्माद कहा जाता है। इस रोग के लगातार बने रहने पर व्यक्ति कामुक, बेशर्म, मानसिक रूप से विकृत, चिड़चिड़ा, क्रोधी और शारीरिक श्रम से जी चुराने वाला बन जाता है । यह रोग मुख्यतः अश्लील पुस्तकों के अध्ययन या अश्लील फिल्मों को देखने से होता है । जिस जगह के लोग बात बात में अश्लील शब्दों का प्रयोग करते हैं, वहां रहने वाले अन्य स्वस्थ व्यक्ति भी इस रोग की चपेट में आ जाते हैं ।
इस रोग का एक ही इलाज है- अश्लीलता भरे वातवरण से दूर रहना अर्थात् पवित्र वातावरण में रहना । होमियोपैथिक दवायें तो केवल इस रोग को अस्थाई रूप से शांत कर सकती हैं ।
ईगलफोलिया Q- डॉ० सिन्हा ने लिखा है कि जिन लोगों की कामेच्छा अत्यधिक बढ़ गयी हो अथवा जिनका ध्यान हमेशा भोग की तरफ लगा रहता हो उन्हें इस दवा की पाँच बूंदें एक कप पानी में मिलाकर प्रतिदिन दो-तीन बार लेनी चाहिये । तीन दिन तक दवा लेने के बाद इसे बन्द कर देना चाहिये । इसके बाद प्रत्येक सप्ताह में केवल एक दिन तीन खुराकें लेनी चाहिये । इस प्रकार सेवन करने से कामेच्छाओं का दमन होता है । वास्तव में, यह दवा बेल-पत्र से बनी है । साधु-सन्यासी अपनी कामेच्छाओं का दमन करने के लिये बेल-पत्र ही खाते थे । अतः इस आधार पर इस दवा का मूल अर्क लेने से कामेच्छा का दमन होता है । .
पिक्रिक एसिड 30- भोग की प्रबल इच्छा हो, लिंग में इतनी अधिक उत्तेजना हो कि दर्द होने लगे- इन लक्षणों में लाभप्रद हैं ।
हायोसायमस 200- कामोन्मांद के कारण रोगी बेशमीं भरा आचरण करने लगे, अपने कपड़े उतार दे- इन लक्षणों में देनी चाहिये ।
सैलिक्स नाइग्रा Q- अत्यधिक कामोत्तेजना में लाभकर हैं । नवीन सूजाक के कारण लिंग में आने वाली कठोर उत्तेजना को भी शान्त करती है ।
कैन्थरिस 30- ऐसी कामोत्तेजना जो कि पर्याप्त संभोग कर लेने के बाद भी शांत न हो ।
फॉस्फोरस 30- लिंग में उत्तेजना के साथ कामोन्माद होने की दशा में लाभ करती है ।