हाथ की अँगुली अथवा अँगूठे के नाखून के समीप वाले स्थान के पक जाने पर यह रोग होता है । इस जगह के पकते समय के रोगी को अत्यधिक कष्ट होता है। जब तक यह पक कर फूट नहीं जाता, तब तक रोगी को पीड़ा होती है। फूट जाने पर पीड़ा कम हो जाती है। यह रोग नाखून कटवाने, चोट लगने, जल जाने अथवा रक्त में किसी विषैली वस्तु के प्रविष्ट हो जाने के कारण होता है। इस रोग के अधिक बढ़ जाने पर रोगी की मृत्यु तक हो सकती है ।
निम्नलिखित औषधियों का लक्षणानुसार प्रयोग करके ‘अंगुलबेड़ा’ के कष्ट को दूर किया जा सकता है :-
साइलीशिया 3x, 30 – रोग की प्रथमावस्था में, जबकि दर्द हड्डी तक फैल गया हो, काटने वाला दर्द, तथा दर्द के कारण रोगी का रात-दिन चिल्लाना – इन लक्षणों में इस औषध के प्रयोग से रोग बिगड़ता नहीं है। इस औषध का सेवन करने के साथ ही रोगी स्थान पर गरम पानी का सेंक देना चाहिए । गरम पानी में नमक मिलाकर, उसमें बार-बार अंगुली डुबाकर रखने से विशेष लाभ होता है । साथ में ज्वर रहने पर, कुछ चिकित्सक ‘साइलीशिया’ के साथ ही ‘बेलाडोना 6’ को भी पर्यायक्रम से देते हैं ।
डायस्कोरिया 30 – रोग की प्रथमावस्था में अंगुली में चुभने वाला दर्द होने पर यह लाभकारी है। इसके ‘मूल-अर्क’ को अंगुली पर लगाना भी चाहिए ।
ब्यूफो 6 – नाखून के कष्ट का दर्द ऊपर बाँह तक चढ़ जाने तथा अंगुली के भीतर गहराई तक जाने और नाखून के आस-पास नीलापन एवं सूजन हो जाने के लक्षणों में यह लाभकारी हैं ।
माइरिस्टिका सेबिफेरा 6 – अंगुली या अँगूठे के नाखून में दर्द के साथ ही अंगुली की हड्डी में सूजन, हाथों में कड़ापन, हाथों द्वारा किसी वस्तु को बहुत देर तक निचोड़ते रहने पर जैसा दर्द होता है, उसी प्रकार का दर्द होना – इन सब लक्षणों में यह औषध बहुत लाभ करती है ।
हिपर-सल्फर 30 – अंगुली में जलन, सूजन तथा तपकन का होना, रात के समय कष्ट बढ़ जाना, नींद न आना, हाथ को ऊपर उठाये रखना, ताकि रक्त का दबाव कुछ कम हो जाने से दर्द न हो – इन सब लक्षणों में यह औषध लाभ करती है।
नेट्रम-म्यूर 30 – अंगुली के जिस स्थान पर नख तथा माँस का मिलन होता है, वहाँ की सूजन में यह औषध बहुत लाभकारी है ।
फ्लोरिक-एसिड 6, 30 – अंगूठा तथा अँगुलियों का सूज जाना, सूजन के साथ दर्द और तपकन एवं नाखून के नीचे खपच्ची की चुभन जैसा अनुभव – इन लक्षणों में यह औषध लाभ करती है ।
लैकेसिस 30 – अंगुली की सूजन तथा अंगुली का रंग नीला पड़ जाना – इन लक्षणों में हितकर है। यह रोग की प्रथमावस्था में ही विशेष लाभ करती है ।
आर्सेनिक 6 – अंगुली का अग्रभाग बहुत सूजकर कुछ काला पड़ जाय तथा जलन एवं दर्द हो तो इस औषध के सेवन से लाभ होता है।
विशेष (1) तीव्र-दर्द होने पर निम्नलिखित औषधियों का लक्षणानुसार प्रयोग
मर्कसोल 6, स्ट्रैमोनियम 6, हिपर-सल्फर 6, एमोन-कार्ब 200 अथवा बोरिक-एसिड 6 ।
(2) कभी-कभी निम्नलिखित औषधियों के प्रयोग की भी आवश्यकता पड़ सकती है :-
ग्रैफाइटिस 6, एपिस 3, ऐन्थ्राक्सिन, ब्रायोनिया 6, कास्टिकम 6, लीडम 3 तथा सैंगुइनेरिया 1x आदि ।
(3) रोगी स्थान पर डायस्कोरिया, फास्फोरस अथवा नाइट्रिक-एसिड का मूल-अर्क लगाने से दर्द में कमी आ जाती है ।
- नीम की गरम पुल्टिस रोगी स्थान पर बाँधने से लाभ होता है ।
- कागजी नीबू अथवा छोटे बैंगन में छेद करके, उसे रोगी अंगुली पर टोपी की भाँति चढ़ा देने से आराम मिलता है ।
- मवाद उत्पन्न हो जाने पर चीरा लगवा देना चाहिए और जब तक उसका घाव ठीक न हो, तब तक उसे ‘कैलेण्डुला’ के धावन से धोते रहना चाहिए।