भारत में यह विशेषरूप से एक आम रोग है। यहां का गर्म मौसम और अपर्याप्त स्वास्थकर स्थितियां अतिसार और आमातिसार के लिए एक आदर्श वातावरण उत्पन्न करती हैं।
एलोपैथी : अतिसार और आमातिसार के लिए अक्सर ग्राम-नेग, ग्रैमोजिल, डिपेंडाल एम और ईमोसेक, सिप्लॉक्स, मेट्रोजिल, सिप्लॉक्स सी.टी. आदि औषधियां दी जाती हैं।
एलोपैथी का प्रभाव : ग्रैमोजिल और मेट्रोजिल मुख का अल्सर, क्षुधालोप और तीव्र सिरदर्द उत्पन्न करने के लिए कुख्यात हैं। सिप्लॉक्स जो सामान्यतः बेसिलरी डिसेंट्री (शिगेला वंश के जीवाणुओं द्वारा होने वाली पेचिश जिसमें मल के साथ खून भी आता है, खूनी पेचिश) में दी जाती है, उसे 16 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों को नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि यह उनकी वृद्धि को अवरोधित करती है। क्षुधालोप दूसरा अतिरिक्त परिणाम है और यदि रोगी अतिसार और आमातिसार के अलावा औषध के कारण क्षुधालोप से भी पीड़ित है तो उसके शरीर में द्रव की कमी (डीहाईड्रेशन) भी हो सकती है। अमीबा-रुग्णता (अमेबियासिस) और जियार्डिएसिस (वसीय मल के दस्त तथा पेट फूलना जो जियार्डिया लैंबलिया के संक्रमण से होता है) ये विभिन्न पेटेंट नामों से दी जाने वाली मेट्रोनीडाज़ोल’ (टिनीबा, फासीजिन) बहुत हानिकारक है और जठरशोथ, निनांवा (मुख का अल्सर) उत्पन्न करती हैं। इसके अलावा अम्लता पर काबू पाने के लिए ‘रानीटाइडीन’ मिश्रित औषधियां दी जाती हैं। ‘रानीटाइडीन’ मलावरोध उत्पन्न करती है।
मैं दृढ़तापूर्वक कहता हूं कि ‘मेट्रोनीडाज़ोल’ का दीर्घकालिक उपयोग आंतों में दुर्बलता उत्पन्न करती है और इससे भोजन का अवशोषण (एब्सॉर्पशन) कम हो जाता है। विभिन्न स्थितियों में दी जाने वाली दर्द निवारक औषधियां अतिसार उत्पन्न करती हैं। एंटीबायोटिक्स उपयोगी बैक्टीरिया (लैक्टोबेसिल) को अशांत करके अधिकांशतः अतिसार और वमन उत्पन्न कर देती है।
होम्योपैथी : इसके विपरीत होम्योपैथी
1. रोगी को स्थाई रूप से निरोग करती है।
2. आमाशय की पाचनशक्ति और आंतों की प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाती है।
3. कारण के अनुरूप औषधियां अपना कार्य विशिष्ट रूप से करती हैं, जैसा कि नीचे दिया गया है-
उग्र अतिसार का कारण और उल्टी की दवा
1. दूषित जल और आइसक्रीम – आर्से. अल्बा 6, 30, अल्सटोनिया Q
2. दंतोद्गम – कैमोमिला 6, 30, आसें. अल्बा 6
3. वसायुक्त भोजनं – पल्साटिला 30
4. एलोपैथिक औषधियां – कार्बोवेज 30, नक्सवोमिका 30, नाइट्रिक एसिड।
5. वमनं और अतिसार – इपीकाक 30, 200 और वेराट्रम अल्ब 200, 1एम.
6. दुर्बलता और शक्तिहीनता – कार्बोवेज 30 + चायना 30
7. ग्रीष्मकालीन अतिसार – क्रोटन टि. 30
जीर्णकालिक अतिसार – Chronic Diarrhoea
यह सामान्यतः बृहदांत्रशोथ (कोलाइटिस), अमीबा-रुग्णता और जियार्डिएसिस के कारण होता है।
एलोपैथी : साधारणतः दी जाने वाली औषधियां हैं: मेट्रोनीडाज़ोल, सेक्निल, टिनीबा, फासिजिन, ग्रैमोजिल। ये अम्लता में वृद्धि, त्वचा पर प्रतिक्रिया और सिरदर्द के लिए कुख्यात हैं। मैं महसूस करता हूं कि ये औषधियां संक्रमणरहित बृहदांत्रशोथ (नॉन-इन्फेक्टिव कोलाइटिस) उत्पन्न करती हैं और रोगी को ‘अल्सरेटिव कोलाइटिस’ से स्थाई रूप से पीड़ित कर देती हैं। यह रोचक है कि हम एलोपैथ चिकित्सक बृहदांत्रशोथ में इन्हीं औषधियों को देते हैं।
होम्योपैथी से अतिसार का इलाज : इपीकाक 200 और इमेटिन 200 पर्यायक्रम से, दोनों दिन में दो बार। स्थाई रूप से निरोग करने के लिए सल्फर 200 और नेट्रम सल्फ 200 प्रत्येक 15 दिन में एक बार ।