प्रकृति – शुष्क और गर्म। यह रोटी से जल्दी पचता है। यह सम्पूर्ण आहार है। आलू में कैल्शियम, लोहा, विटामिन ‘बी’ तथा फॉस्फोरस बहुतायत में होता है। आलू खाते रहने से रक्तवाहिनियाँ बड़ी आयु तक लचकदार बनी रहती हैं तथा कठोर नहीं होने पातीं। इसलिए आलू खाकर लम्बी आयु प्राप्त की जा सकती है। होम्योपैथी के डॉ. ई.पी. एन्शूज ने आलू के विभिन्न उपयोग बताए हैं। कुछ उपयोगी प्रयोग नीचे दिए जा रहे हैं –
बेरी-बेरी (Beri-Beri) – बेरी-बेरी का अर्थ है – चल नहीं सकता। इस रोग से जंघागत नाड़ियों में क्षीणता का लक्षण विशेष रूप से होता है। आलू पीसकर, दबाकर, रस निकालकर एक चम्मच की एक खुराक के हिसाब से नित्य चार बार पिलायें। कच्चे आलू को चबाकर रस को निगलने से भी समान लाभ मिलता है।
विटामिन ‘सी’ – आलू में विटामिन ‘सी’ बहुत होता है। इसको मीठे दूध में भी मिलाकर पिला सकते हैं। आलू को छिलके सहित गर्म राख में भूनकर खाना सबसे अधिक गुणकारी है या इसको छिलके सहित पानी में उबालकर खायें। पानी, जिसमें आलू उबाले गए हों, को न फेंकें बल्कि इसी पानी में आलुओं की सब्जी बना लें। इस पानी में मिनरल और विटामिन अधिक होते हैं।
सौंदर्यवर्धक – आलू का रस त्वचा को निखारने के लिए उपयोगी है, क्योंकि इसमें पोटेशियम, सल्फर और क्लोरीन की प्रचुर मात्रा होती है। आलू का रस त्वचा पर लगायें, धोयें।
रक्तपित्त (scurvy) – यह रोग विटामिन ‘सी’ की कमी से होता है। इस रोग की प्रारम्भिक अवस्था में शरीर और मन की शक्ति क्षीण हो जाती है अर्थात् रोगी का शरीर निर्बल, असमर्थ, मन्द, कृश तथा पीला-सा दिखता है। थोड़े-से परिश्रम से साँस चढ़ जाता है, मनुष्य में सक्रियता के स्थान पर निष्क्रियता आ जाती है। रोग के कुछ प्रकट रूप में होने पर टाँगों की त्वचा पर रोम कूपों (Hair Follicles) के आस-पास आवरण के नीचे से रक्तस्राव होने लगता है, बालों के चारों ओर त्वचा के नीचे छोटे-छोटे लाल चकते (Petchiae) निकलते हैं। फिर धड़ की त्वचा पर भी रोम कूपों के आस-पास ऐसे बड़े-बड़े चकते (Ecchymoses) निकलते हैं। त्वचा देखने में खुश्क, खुरदरी तथा शुष्क लगती है। दूसरे शब्दों में अतिकिरेटिनता (Hyperkeratosis) हो जाता है। मसूढ़े पहले से ही सूजे होते हैं और इनसे सरलता से रक्तस्राव हो जाता है। बाद में रोग बढ़ने पर टाँगों की माँसपेशियों विशेषत: प्रसारक (Extensor) पेशियों से रक्तस्राव होकर उनमें वेदनायुक्त तथा स्पर्शाक्षम ग्रन्थियाँ भी बन जाती हैं। हृदय-माँस में भी स्राव होकर हृदय-शूल का रोग हो सकता है। नासिका आदि से खुला रक्तस्राव भी हो सकता है। अस्थिक्षय (Caries) और पूयस्राव (Pyorrhoea) भी बहुधा इस विटामिन की कमी से प्रतीत होता है। कच्चा आलू रक्तपित्त को दूर करता है।
नीलें पड़ना (Bruises) – कभी-कभी चोट लगने पर नील पड़ जाती है। नील पड़ी जगह पर कच्चा आलू पीसकर लगायें।
जलना (Burns or scalds) – (1) जले हुए स्थान पर कच्चा आलू पीसकर लगायें। (2) तेज धूप, लू से त्वचा झुलस (Sunburn) गई हो तो कच्चे आलू का रस झुलसी त्वचा पर लगाने से सौन्दर्य में निखार आता है।
हृद्दाह (Heartburn) – इसमें आलू का रस पियें। यदि रस निकाला जाना कठिन हो तो कच्चे आलू को मुँह में चबाएँ तथा रस पी जायें और गूदे को थूक दें। इससे हृद्दाह में आराम मिलता है। हृद्दाह में रोगी को हृदय में जलन प्रतीत होती है। इसका रस पीने से तुरन्त ठण्डक प्रतीत होती है।
अम्लता (Acidity) – जिन बीमारों के पाचनांगों में अम्लता (खट्टापन) की अधिकता है, खट्टी डकारें आती हैं और वायु अधिक बनती है, उनके लिए गर्म-गर्म राख या रेत में भुना हुआ आलू बहुत लाभदायक है। भुना हुआ आलू गेहूँ की रोटी से आधी देर में पच जाता है और शरीर को गेहूँ की रोटी से भी अधिक पौष्टिक पदार्थ पहुँचाता है। पुरानी कब्ज़ और आँतड़ियों की सड़ाँध दूर करता है। आलू में पोटेशियम साल्ट होता है जो अम्लपित को रोकता है। आलू की प्रकृति क्षारीय है जो अम्लता को कम करती है। अम्लता के रोगी भोजन में नियमित आलू खाकर अम्लता को दूर कर सकते हैं।
वातरक्त (Gout) – वातरक्त होने पर कच्चा आलू पीसकर अँगूठे पर लगाने से दर्द कम होता है। दर्द वाले स्थान पर भी लेप करें।
गठिया – चार आलू सेंककर छिलके उतारकर नमक-मिर्च डालकर नित्य खायें। इससे गठिया ठीक हो जाती है।
आमवात (Rheumatism) – पजामे या पतलून की दोनों जेबों में लगातार एक छोटा आलू रखें तो यह आमवात से रक्षा करता है। आलू खाने से भी बहुत लाभ होता है।
कटिवेदना (Lumbago) – कच्चे आलू की पुल्टिस कमर में लगायें।
घुटना (Knee) – घुटने के श्लेषकला-शोथ (Synovitis) सूजन व इस जोड़ में किसी प्रकार की बीमारी हो तो कच्चे आलू को पीसकर लगाने से बहुत लाभ मिलता है।
विसर्प (Erysipelas) – यह एक ऐसा संक्रामक चर्म रोग है जिसमें सूजनयुक्त छोटी-छोटी फुसियाँ हो जाती हैं, त्वचा लाल दिखाई देती है तथा साथ में ज्वर रहता है। पुरानी फुसियाँ ठीक होती जाती हैं साथ ही साथ दूसरी जल्दी फैल जाती हैं। इस रोग पर आलू को पीसकर लगाने से लाभ होता है।
गुर्दे को पथरी – एक या दोनों गुर्दो में पथरी होने पर केवल आलू खाते रहने से बहुत लाभ होता है। पथरी के रोगी को केवल आलू खिलाकर और बार-बार अधिक पानी पिलाते रहने से गुर्दे की पथरी और रेत आसानी से निकल जाती है। आलू में मैग्नीशियम पाया जाता है जो पथरी को निकालता है तथा बनने से रोकता है।
गुर्दे या वृक्क (Kidney) के रोगी भोजन में आलू खायें। आलू में पोटेशियम की मात्रा बहुत पाई जाती है और सोडियम की मात्रा कम। पोटेशियम की अधिक मात्रा गुर्दों से अधिक नमक की मात्रा निकाल देती है, इससे गुर्दे के रोगी को लाभ होता है। आलू खाने से पेट भर जाता है और भूख में संतुष्टि अनुभव होती है। आलू में वसा (चर्बी) या चिकनाई नहीं पाई जाती है। यह शक्ति देने वाला है, जल्दी पचता है। इसलिए इसे अनाज के स्थान पर खा सकते हैं।
मोटापा – आलू मोटापा नहीं बढ़ाता। आलू को तलकर तीखे मसाले, घी आदि लगाकर खाने से जो चिकनाई पेट में जाती है, वह चिकनाई मोटापा बढ़ाती है। आलू को उबालकर या गर्म रेत या राख में भूनकर खाना लाभप्रद और निरापद है।
उच्च रक्तचाप के रोगी भी आलू खायें तो रक्तचाप सामान्य बना रहता है। पानी में नमक डालकर आलू उबालें। छिलका होने पर आलू में नमक कम पहुँचता है और आलू नमकयुक्त भोजन बन जाता है। इस प्रकार यह उच्च रक्तचाप में लाभ करता है। आलू में मैग्नीशियम पाया जाता है जो उच्च रक्तचाप को कम करता है।
गोरा रंग – आलू को पीसकर त्वचा पर मलें। रंग गोरा हो जायेगा।
सूजन – कच्चे आलू सब्जी की तरह काट लें। जितना वजन आलुओं का हो, उसके डेढ़ गुने पानी में उसे उबालें। जब केवल एक गुना पानी रह जाए तो उस पानी से चोट आई सूजन वाले अंगों को धोएँ, सेंक करें, लाभ होगा।
अाँखों में जाला एवं फूला – कच्चा आलू पत्थर पर घिसकर सुबह-शाम काजल की तरह लगाने से 5-6 वर्ष पुराना जाला और 4 वर्ष तक का फूला 3 माह में साफ हो जाता है।
बच्चों का पौष्टिक भोजन – आलू का रस दूध पीते बच्चों और बड़े बच्चों को पिलाने से वे मोटे-ताजे हो जाते हैं। आलू के रस में मधु मिलाकर भी पिला सकते हैं। आलू का रस निकालने की विधि यह है कि आलुओं को ताजे पानी में अच्छी तरह धोकर छिलके सहित कद्दूकस करके इस लुगदी को कपड़े में दबाकर रस निकाल लें। इस रस को एक घण्टे तक ढककर रख दें। जब सारा कचरा-गूदा नीचे जम जाए तो ऊपर का निथरा रस अलग करके काम में लें।
प्रोटीन – (1) सूखे आलू में 8.5% प्रोटीन होता है जबकि सूखे चावलों में 6.7% प्रोटीन होता है। इस प्रकार आलू में अधिक प्रोटीन पाया जाता है। (2) आलुओं में मुर्गी के चूजों जैसा प्रोटीन होता है। बड़ी आयु वालों के लिए प्रोटीन आवश्यक है। आलुओं का प्रोटीन बूढ़ों के लिए बहुत ही शक्ति देने वाला और बुढ़ापे की कमजोरी दूर करने वाला होता है।
त्वचा की झुर्रियाँ – सर्दी में ठण्डी-सूखी हवाओं से हाथों की त्वचा पर झुर्रियाँ पड़ने पर कच्चे आलू को पीसकर हाथों पर मलें। इससे झुर्रियाँ ठीक हो जायेंगी। नीबू का रस भी समान लाभदायक है। कच्चे आलू का रस पीने से दाद, फुंसियाँ, गैस, स्नायविक और माँसपेशियों के रोग दूर हो जाते हैं।
मुँहासे – आलू उबालकर, छीलकर इसके छिलकों को चेहरे पर रगड़ें। इससे मुँहासे ठीक हो जाते हैं।
दाद, खुजली होने पर कच्चे आलू का रस लगायें या कच्चे आलू की चटनी पीसकर लेप करें। कच्चे आलू का रस चौथाई कप में इतना ही पानी मिलाकर नित्य दो बार पीने से लाभ होता है।