लौकी कुकुर्बिटेसी (Cucurbitaceae) कुल के एक पौधे का फल है। लौकी को घीया, कद्दू भी कहते हैं। बोतलनुमा आकार और पुराने जमाने में इसके कठोर छिलके के पात्र में शराब आदि भर कर रखे जाने के कारण इसे अंग्रेजी में बॉटलगार्ड (Bottle Gourd) भी कहते हैं।
प्रकृति – ठण्डी और तर। लौकी मस्तिष्क की गर्मी को दूर करती है। यह छिलके सहित खानी चाहिए। लौकी ठण्डी, रूखी होती है। लौकी का रस माँ के दूध के समान पौष्टिक है। लौकी खाने के प्रति इच्छा उत्पन्न करती है तथा औषधीय गुणों से भरपूर है। लौकी मनुष्य को रोगरूपी जंजाल से मुक्त करने वाली होती है। लौकी का रस बुखार, खाँसी, फेफड़े, हृदय के विकार, मूत्र सम्बन्धी सभी रोगों व गर्भाशय के रोगों में लाभदायक है। लौकी नाड़ी-मण्डल को स्वस्थ रखती है और शक्ति देती है।
गुणवत्ता – जो लौकी हरी, नरम, चिकनी, छूने पर मुलायम लगती हो, जिसके बीज कच्चे मुलायम, अँगुलियों से दबाने पर दब जायें, कठोर नहीं हों, वह अच्छी होती है। लौकी का सेवन ठण्डक देने वाला है। अत: जिन लोगों को बार-बार जुकाम लगतीं हो वे लौकी का रस नहीं पियें, पीना ही चाहें तो सोंठ और कालीमिर्च डालकर पियें।
लौकी में चिकनाई बहुत कम होती है। इसमें पाया जाने वाला कार्बोहाइड्रेट सरलता से पच जाता है। इसीलिये रोग की किसी भी स्थिति में प्राय: सभी रोगों में लौकी की सब्जी, सूप तथा रस देना लाभदायक है। लौकी के सेवन से रक्त अम्लता (ब्लड में उपलब्ध एसिड) सामान्य हो जाती है। लौकी रक्त के लाल कण बनने में सहायता करती है। लौकी शक्तिवर्धक, सभी धातुओं को बढ़ाने वाली व खाने में रुचि पैदा करती है। यदि लौकी कड़वी निकल आये तो इसका सेवन नहीं करें। लौकी की सब्जी उबालकर खायें, तलें, मसालों में भूनें नहीं।
पित्ती (Urticaria) – पित्ती निकलने पर शरीर में जहाँ-जहाँ पित्ती निकली हो, लौकी का रस लगायें तथा लौकी की सब्जी खायें।
नकसीर (Epistaxis) – नकसीर बह रही हो तो लौकी के रस में रुई भिगोकर, हल्की-सी निचोड़कर ललाट पर बिछा दें। इससे तरावट आयेगी और नाक से रक्तस्राव बन्द हो जायेगा। ध्यान रहे, रस अाँखों में बह कर नहीं जाये।
सूखी खाँसी, पेशाब में जलन, भूख नहीं लगना, वजन नहीं बढ़ता हो तो कच्ची लौकी खायें या रस पियें।
मधुमेह में लौकी लाभ करती है। सब्जी, सलाद के रूप में कच्ची लौकी खा सकते हैं। लौकी के रस में थोड़ा नमक मिलाकर पियें।
सिरदर्द – लौकी का तेल सिर में नित्य लगायें। इससे दर्द दूर हो जायेगा।
ज्वर – तेज ज्वर, बुखार 102 से 104 डिग्री होने पर घबरायें नहीं, तेज ज्वर होने पर पैर के तलवों पर पानी के छीटें मारते हुए लौकी का गूदा रगड़ें। इससे ज्वर की तेज गर्मी कम हो जाती है। ज्वर हल्का हो जाता है। इससे तलवों की जलन भी कम हो जाती हैं। लौकी की सब्जी, रस, सूप लें।
जलन, चर्मरोग – लौकी के रस का प्रभाव ठंडा होता है अत: जिन रोगों में जलन, अधिक प्यास लगती है, उनमें लौकी का रस पीना लाभदायक होता है। एक कप लौकी के रस में एक चम्मच शहद मिलाकर पीने से शरीर का दाह, अम्लपित्त, पेट की जलन, अाँखों की जलन, गले की जलन, पित्तविकार, रक्तविकार, फोड़े-फुल्सी, नकसीर आदि रोगों में लाभ होता है।
बिच्छू काटना – बिच्छू-काटे स्थान पर लौकी पीसकर लेप करें तथा इसका रस पिलायें तो बिच्छू काटे का जहर उतर जायेगा।
रक्तस्राव – शरीर के किसी स्थान से रक्त बह रहा हो तो लौकी के छिलकों को बारीक पीसकर उस स्थान पर लगाकर पट्टी बाँध देने से रक्त का बहना बंद हो जाता है। साथ ही लौकी का छिलकों सहित रस निकालकर पीना चाहिए।
गर्भस्राव – लौकी गर्भाशय संबंधी विकारों में लाभदायक है। अत: जिन औरतों को बार-बार गर्भस्राव या गर्भपात हो जाता है, उन्हें कुछ दिनों तक लौकी का सेवन सब्जी या रस के रूप में अवश्य करना चाहिए। इससे गर्भाशय मजबूत होगा और गर्भस्राव से छुटकारा मिल जाएगा। गर्भवती महिला को इसका रस पुष्टि देता है।
पुत्र-प्राप्ति – जिन स्त्रियों को लड़कियाँ होती हैं, वे गर्भाधान से चार महीने पहले ही लौकी खाना शुरू कर दें तथा गर्भ ठहरने के दूसरे, तीसरे और चौथे महीने तक लौकी बीज सहित मिश्री के साथ लगातार खायें तो लड़की के स्थान पर लड़का उत्पन्न होगा। यह अनुभव 50% सफल रहा है। गर्भावस्था के प्रारम्भिक एवं अन्तिम माह में सवा सौ ग्राम कच्ची लौकी 70 ग्राम मिश्री के साथ प्रतिदिन खाने से गर्भस्थ शिशु का रंग गोरा निखर जायेगा। बच्चा सुन्दर होगा। इससे कब्ज़ नहीं होगी, आम गर्भपात का भय दूर होगा। लौकी का रस, सब्जी, खिचड़ी खाते रहने से गर्भस्थ शिशु का पोषण होता है, शिशु सुन्दर, स्वस्थ और सही वजन का जन्म लेता है। गर्भवती महिला का भी पोषण होता है।
गुर्दे का दर्द (Renal Colic) – लौकी गर्म करके रस निकाल लें। दर्द वाले स्थान पर इस रस की मालिश करने और पीसकर गूदे का लेप करने से गुर्दे का दर्द तुरन्त कम हो जाता है।
मूत्ररोग – मूत्र संबंधी रोगों तथा गुर्दे के दर्द में लौकी का आधा कप रस निकाल कर उसमें चुटकी भर सेंधा नमक और नीबू का रस मिलाकर सुबह पीने से मूत्र खुलकर आता है और मूत्रनली की जलन दूर हो जाती है।
पैर के तलवों की जलन – लौकी या घीया को काटकर इसका गूदा पैर के तलवों पर मलने से गर्मी, जलन, भभका दूर होता है। लौकी का रस भी लगाया जा सकता है। जलन कहीं भी हो लौकी का गूदा या रस लगाने से आराम मिलता है। रस लगाने से खुजली में भी लाभ होता है।
पेशाब की जलन – एक गिलास घीया के रस में स्वादानुसार नीबू निचोड़ कर पीने से पेशाब की जलन ठीक हो जाती है। यदि पेशाब में रुकावट हो तो कलमी शोरा (पंसारी, अत्तार के मिलता है) एक ग्राम, पिसी हुई मिश्री चार चम्मच, पानी आधा गिलास, लौकी का रस तीन चम्मच सबको मिलाकर पियें। एक बार पीने से पेशाब आ जायेगा। यदि एक घंटे तक भी पेशाब नहीं आय तो पुन: पियें। लौकी उबाल कर मथकर रस निकालें और नित्य चार बार एक-एक गिलास पियें। इससे भी पेशाब खुलकर आयेगा। लौकी और इसके बीज मूत्रस्रावक हैं।
दाँत-दर्द – लौकी या घीया 75 ग्राम, लहसुन 20 ग्राम, दोनों को पीसकर एक किलो पानी में उबालें। आधा पानी रह जाने पर छानकर कुल्ले करने से दाँत-दर्द ठीक होता है।
यक्ष्मा – (1) ताजा लौकी पर जौ के आटे का लेप करें तथा कपड़ा लपेटकर भूभल (आग) में दबा दें। जब भुर्ता हो जाए तो टुकड़े करके पीसकर, लुगदी कपड़े में डालकर निचोड़कर रस निकालकर एक-एक कप नित्य दो बार पिलाते रहें। एक महीने पिलाने से रोगी यक्ष्मा से ठीक हो जायेगा। कच्ची लौकी का रस यक्ष्मा की खाँसी ठीक करता है तथा वजन बढ़ाता है। (2) छिलकों सहित लौकी के कच्चे गूदे पर पिसी हुई मिश्री डालकर नित्य दो बार खाने से यक्ष्मा ठीक हो जाता है। रक्त को उल्टी (Haemoptysis) ठीक हो जाती है। कम से कम तीन सप्ताह लें।
बवासीर रक्तस्रावी, पेचिश – लौकी के छिलके छाया में सुखाकर पीस लें। इसकी 1-1 चम्मच फंकी पानी से एक सप्ताह लें। बवासीर का रक्तस्राव और दस्तों में रक्त आना बन्द हो जायेगा। लौकी की खिचड़ी खायें।
ग्रहणी, बवासीर – लौकी उबालकर स्वाद के लिए सोंठ, हरा धनिया, जीरा डालकर नित्य खाने से लाभ होता है।
बवासीर – लौकी के पत्तों को पीसकर बवासीर पर लेप करने से कुछ दिनों में ही बवासीर नष्ट हो जाते हैं।
कब्ज – लौकी कब्ज दूर करती है। इसकी उबाली हुई सब्जी खायें, रस पियें। बिना मिर्च-मसाले के देशी घी में बनी लौकी की सब्जी नियमित कुछ दिनों तक सेवन करें। कब्ज में आराम मिलेगा। ऐसी कब्ज जिसमें मल को गाँठें बन जायें, शौच में बहुत जोर देना पड़े तो लौकी की खिचड़ी सुबह-शाम दोनों समय एक सप्ताह तक खाने से लाभ होता है।
विधि – साबुत मुंग 6 ग्राम, पुराना बासमती चावल 60 ग्राम, घी 30 ग्राम, कद्दूकस की हुई लौकी 500 ग्राम, धनिया हरा, नमक, पानी सबको उबाल कर खिचड़ी बनायें। इसे बताये गये घी और जीरे से छौंक लगायें। नित्य गर्म-गर्म खायें। कब्ज दूर हो जायेगी। यह बहुत ही स्वादिष्ट और पाचक खिचड़ी है। परिवार के सभी लोग कभी-कभी खायें तो गुणकारी है। खिचड़ी स्वादिष्ट बनाने के लिए अन्य चीजें भी डाल सकते हैं। कच्ची लौकी खाते रहने से भी कब्ज दूर हो जाती है।
मोटापा, हृदय रोग, पेट के रोग – नित्य सुबह भूखे पेट एक गिलास लौकी के रस में 10-10 पत्ते तुलसी और पुदीना के पीसकर मिलाकर पीने से लाभ होता है। अम्लपित में शीघ्र लाभ होता है।
पेट के रोग – एक कप लौकी का रस सुबह भूखे पेट नित्य पीने से पेट के सभी सामान्य रोग व कब्ज ठीक हो जाते हैं। लम्बे समय तक इसी प्रकार लौकी का रस पीने से पेट ठीक रहेगा। ऊपर बताई लौकी की खिचड़ी भी खा सकते हैं।
दस्त – लौकी का रायता दस्तों में लाभप्रद है। लौकी को कद्दूकस करके थोड़ा पानी डालकर उबालें। फिर दही को अच्छी तरह मथकर उसमें उबली हई लौकी को हल्का सा निचोड़ कर मिला दें और उसमें सेंधा नमक, भुना जीरा, का चूर्ण मिलाकर दिन में 3 बार खाएँ। बार-बार दस्त जाना बन्द हो जायेगा। बार-बार पतली दस्त होने पर शरीर में पानी की कमी हो जाती है, ऐसी हालत में रोगी को लौकी का रस देने से लाभ होता है।
गला दर्द व जलन – एक गिलास लौकी के रस में दो चम्मच शहद या शक्कर मिलाकर पीने से लाभ होता है।
पीलिया – लौकी को आग में सेंककर भुर्ता-सा बना लें, फिर इसे निचोड़कर रस निकालकर तनिक मिश्री मिलाकर पियें। गुर्दे तथा यकृत को बीमारी और पीलिया व टी.बी. के लिए लाभकारी है। लौकी का सूप भी पियें। 30 मि.ली. लौकी के रस में थोड़ी सी मिश्री मिलाकर नित्य 3 बार पीने से पीलिया ठीक हो जाता है।
अम्लपित्त (Acidity) – अम्लपित रुग्ण मानसिकता जैसे मानसिक तनाव, ईष्र्या, अधिक कार्य से थकान, बदले की भावना से होती है, बढ़ती है। इस प्रकार तनावग्रस्त रहने से स्नायु-मण्डल उत्तेजित हो जाता है और शरीर में अम्ल अधिक बनने लगता है। उबाली हुई लौकी की सब्जी खाने से रक्त की अम्लता कम होती है। इसके विपरीत आप जितने ज्यादा प्रसन्न, सरल रहते हैं, आपके शरीर की क्रियायें अधिक क्षारीय रहती हैं।
क्षारीय बनने को विधि है – प्रसन्न रहना, बात-बात पर हँसना और हँसाना, साँस धीरे-धीरे गहरी लेना और धीरे-धीरे ही छोड़ते हुए साँस पर ध्यान रखना, गहरी और भरपूर नींद लेना, दूसरों को प्यार देना और लेना।
जब तनाव बढ़े उस समय लौकी का रस एक छोटा गिलास तीन बार पीने से तनाव, क्रोध नियन्त्रण में रहता है। लौकी का रस नित्य भी पी सकते हैं। लौकी से बहुत लाभ होता है। अन्न, दालें, फल-सब्जियाँ छिलकों सहित खायें। ठंडी प्रकृति वाली सब्जियाँ जैसे लौकी, कद्दू, तोरई, टिन्डा, भीगे हुए बादाम और अंजीर, गेहूँ का दलिया ‘क्षार’ प्रधान होते हैं। ये चीजें भोजन में शामिल करें। चाय-कॉफी, शराब, मैदा की चीजें, तला हुआ भोजन, डिब्बा बन्द भोजन आदि से परहेज रखें, नहीं खायें। अम्लपित होने पर दूध ठण्डा, फीका पियें।
मानसिक तनाव – आधा कप लौकी का रस दो चम्मच शहद मिलाकर सोते समय पीने से मानसिक तनाव कम होता है। सिर में लौकी का तेल लगायें।
सिरदर्द – लौकी को पीसकर ललाट पर लेप करने से गर्मी के प्रभाव से होने वाला सिरदर्द ठीक हो जाता है। लौकी का तेल सिर में नित्य लगायें। सिरदर्द दूर हो जायेगा।
अनिद्रा – रात को सिर को लौकी के तेल से मालिश करके सोयें। नींद अच्छी आयेगी। तेल बनाने की विधि आगे पढ़ें।
सौंदर्यवर्धक – लौकी के ताजा छिलके पीसकर चेहरे पर मलें या गूदा रगड़ें। चेहरा सुन्दर हो जायेगा।
मुंहासों के काले दागों पर लौकी का गूदा रगड़ने से काले दाग मिट जाते हैं।
पैर फटना – लौकी पीसकर पैरों पर लेप करें।
शराब – शराब पीने से पेट में जलन, पेशाब में जलन हो तो लौकी के रस में स्वादानुसार शक्कर मिलाकर पीने से लाभ होता है।
आँखें दुखना, दर्द – लौकी को पीसकर लुगदी पतले कपड़े में रखकर नेत्र बन्द करके पोटली ऊपर रखकर चालीस मिनट सोयें। शीघ्र लाभ होगा।
हृदय – हमारे शरीर के हर भाग को रक्त पहुँचाने वाला, माँसपेशियों से बना एक पंप है, जो जन्म से लेकर मृत्यु तक हर क्षण, यहाँ तक कि निद्रावस्था में भी बिना एक पल आराम किए लगातार धड़कता रहता है। हृदय को रक्त मिलता है हृदय धमनियों से। इन हृदय धमनियों में कोलेस्ट्रॉल जमा होने से (कोरोनरी हार्ट डिजीज), दिल का दौरा पड़ सकता है, जो जानलेवा भी हो सकता है। कोरोनरी हार्ट डिजीज के होने के मूल कारण हैं आधुनिक जीवनशैली, अनियमित आहार, बढ़ता हुआ तनाव एवं धूम्रपान/तंबाकू सेवन। अगर दिल के दौरे, एंजियोप्लास्टी तथा बाईपास सर्जरी से बचना है तो इसके लिए नियमित व्यायाम, संतुलित आहार, अनावश्यक तनाव से बचना, तंबाकू/धूम्रपान का निषेध आवश्यक है।
हृदय-शक्तिवर्धक – (1) लौकी किसी भी रूप में सेवन करें, हृदय के लिए लाभकारी है। इसका सरल उपयोग है, लौकी की सब्जी में हरा धनिया, जीरा, हल्दी, नमक, मिर्च बहुत कम मात्रा में डालकर खायें। इसमें छौंक नहीं लगायें। इससे हृदय को कार्यशक्ति बढ़ेगी। (2) निर्बल, रक्त की कमी, रुग्ण और हृदय रोगियों के लिए लौकी का रस लाभकारी है। छिलके सहित लौकी के टुकड़े करके उस पर 11 पत्ते तुलसी के, 5 पत्ते पुदीने के और 5 कालीमिर्च डालकर पीस कर रस निकाल कर एक कप रस में एक कप पानी मिला कर खाना खाने के बाद नित्य पियें।
हृदय-विकार – हृदय रोग से पीड़ितों को लौकी की सब्जी के साथ-साथ इसका रस 20 मि.ली. प्रतिदिन सुबह-शाम पीना चाहिए।
हृदय-शूल (Angina Pain) – हृदय को रक्तसंचार करने वाली रक्त-वाहिकाओं में रुकावट होने के कारण जो कष्ट और पीड़ा हो जाती है, उसे हृदय-शूल कहते हैं। हृदय रोग में रक्तवाहिनी, जो हृदय को रक्त पहुँचाती है, के अवरुद्ध हो जाने पर ओपन हार्ट (बाईपास सर्जरी) द्वारा पैर या हाथ से नसें निकाल कर इनके स्थान पर लगाई जाती हैं। दूसरी नसें लगा देने के पश्चात् भी बहुत से रोगियों की इन नसों में पुन: अवरोध हो जाता है, जिसके कारण पुन: सर्जरी करके दूसरी नस लगाते हैं। यह पहले ऑपरेशन से और अधिक जोखिम भरा होता है। इस विषय में डॉ. मनुभाई कोठारी ने लौकी के रस का प्रयोग किया।
लौकी के रस के लाभ – लौकी का रस नित्य पीने से हृदय की धमनियों में आयी रुकावट दूर हो जाती है। घबराहट दूर होकर हृदय-शूल दूर हो जाता है। कोलेस्ट्रॉल और टूग्लिजराइड्स अपनी सामान्य अवस्था में आ जाते हैं। हृदय के अवरोध (Blockage) खुल जाते हैं। हृदय को शक्ति मिलती है और कार्य की गति बढ़ जाती है। रस पीते रहने से निरन्तर लाभ होता जाता है। लौकी के रस से अम्लपित्त, आन्त्रव्रण (घाव), यकृत, प्लीहा, पेट का भारीपन, आमाशय, पक्वाशय, रक्त की कमी, मासिक धर्म में अधिक रक्त आना, भूख की कमी, गैस आदि अनेक रोगों में लाभ होकर स्वास्थ्य अच्छा होता जाता है। किसी-किसी को लौकी का रस पीने से आरम्भ में दस्त लग जाते हैं। अत: आरम्भ में कम मात्रा में लेकर धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाते जायें।
निर्माण व प्रयोग विधि – लौकी को छिलके सहित धोकर घीयाकस से कस लें। कसी हुई लौकी में 8 पत्ते तुलसी, 6 पत्ते पुदीना के डालकर ग्राइन्डर, मिक्सी या सिलबट्टे पर पीस लें। पिसी हुई लौकी को सूती पतले गीले कपड़े में डालकर, निचोड़ते हुए रस निकाल लें। इस तरह रस छना हुआ निकलेगा। इस छाने हुए रस में चार पिसी कालीमिर्च तथा एक ग्राम पिसा सेंधा नमक मिलाकर भोजन के पौन घंटे (45 मिनट) पहले या भोजन के पौन घटे बाद नित्य तीन बार प्रात: दोपहर, रात्रि में सोते समय पियें। हर बार ताजा रस बनाकर ही पियें। रस की मात्रा 150 ग्राम होनी चाहिए। इसमें बराबर का स्वच्छ जल मिला लें, अर्थात् लौकी का रस और जल दोनों की कुल मात्रा 300 ग्राम होनी चाहिए।
सेवनकाल – बतायेनुसार तैयार किया हुआ लौकी का रस लगभग छह महीने तक पियें। लम्बे समय तक पीते रहने से कोई हानि होने की सम्भावना नहीं है, फिर भी किसी प्रकार की हानि प्रतीत हो तो रस पीना बन्द कर दें। इस प्रयोग को करते समय टहलना आवश्यक है चाहे पहले दिन दस कदम ही चलें। इस प्रयोग के दस दिन बाद ही आराम अनुभव होगा। टहलने की दूरी धीरे-धीरे बढ़ाते हुए यथाशक्ति जितना लम्बा घूमना चाहें, घूम सकते हैं। जो व्यक्ति एंजाइना से पीड़ित हैं, वे बाईपास सर्जरी कराने से पहले लौकी के रस का प्रयोग करके देख सकते हैं।
हृदय रोग की चिकित्सा बहुत महँगी है, इसलिए घरेलू चिकित्सा का एक प्रयोग नीचे दिया है –
नागरबेल के चार पान (पनवाड़ी जो पान बेचता है), सात कली लहसुन की, दस ग्राम छिली हुई कच्ची अदरक, इन सबको पीस लें और इस चटनी को पतले कपड़े में डाल कर निचोड़ कर रस निकाल लें। इस रस में दो चम्मच शहद मिलायें। इसे खायें, चाटें। इसमें पानी नहीं मिलायें। यह पूरा मिश्रण खाने के बाद पानी से कुल्ला करके थूक दें। हृदय-रोग ग्रस्त जिनकी चिकित्सा हो रही हो, हृदय रोग बता दिया हो, यह प्रयोग चालू कर दें। यह प्रयोग आरम्भ में 21 दिन तक नित्य सुबह-शाम करें। इसके बाद केवल प्रात: एक बार लेते रहें। हर स्थिति में लाभप्रद हैं।
फुन्सियाँ – लौकी का रस नित्य तीन बार लगाने से लाभ होता है।
रक्तशोधक – (1) लौकी को उबालकर बिना नमक डाले नित्य खाने से रक्त साफ हो जाता है। फुन्सियाँ निकलना बन्द हो जाती हैं। (2) आधा कप लौकी के रस में मिश्री मिलाकर सुबह-शाम पीने से रक्त साफ हो जाता है।
गर्मीनाशक – लौकी गर्मी दूर करती है। मस्तिष्क में, यकृत में गर्मी हो तो लौकी के बीजों के अन्दर की गिरी दो-दो चम्मच नित्य दो बार खायें। गर्मी का प्रभाव दूर हो जायेगा। पकी हुई सूखी इमली 30 ग्राम तथा गुड़ 50 ग्राम लेकर एक किलो पानी में एक घंटा भिगोकर मल कर पानी में घोल लें। लौकी का 75 ग्राम गूदा लेकर, इसके छोटे-छोटे टुकड़े करके इस घोल में डाल कर इतना उबालें कि पानी चौथाई रह जाये। फिर उबालना बन्द करके हल्का सा गर्म रहने पर पानी छान कर नित्य एक बार 10 दिन तक पियें।
लाभ – शरीर में भरी गर्मी, मस्तिष्क, यकृत की गर्मी निकल कर मस्तिष्क तरोताजा रहेगा, रक्त साफ होगा।
गठिया – लौकी के 100 मि.ली. रस में 3 ग्राम सोंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से गठिया की सूजन तथा दर्द से आराम मिलता है।
उन्माद, हिस्टीरिया – लौकी का रस निकालकर सिर को तर कर लें। आधे घंटे बाद सिर धोयें। इससे सिर की गर्मी कम होगी। उन्माद (पागलपन) और हिस्टीरिया, नकसीर आना, सिर चकराना, सिरदर्द, अाँखों के सामने अन्धेरा आने में लाभ होगा। लौकी का सेवन किसी भी रूप में नित्य करते रहने से रोगनिरोधक शक्ति बढ़ती है।
पानी की कमी (De-hydration) – उल्टी, दस्त, तेज बुखार के कारण शरीर में पानी की कमी होने पर समान मात्रा में नारियल का पानी और लौकी का रस मिलाकर हर 20 मिनट में आधा-आधा कप पिलाते रहने से पानी की कमी दूर हो जाती है तथा आगे पानी की कमी नहीं होती।
लौकी के पौष्टिक गुण – लौकी में पानी 96.1%; कार्बोहाइड्रेट 2.5%; प्रोटीन 0.2%; वसा 0.1%, रेशा 0.6%; होता है।
लौकी के प्रति 100 ग्राम गूदे में मिश्रण – सोडियम 1.8; मैग्नीशियम 5.0, पोटेशियम 87.0, कैल्शियम 20.2 ताँबा 0.3; लोहा 0.7, फॉस्फोरस 10, गंधक 10; विटामिन बी1 0.03; विटामिन बी-5 0.2: विटामिन सी 6.0-ये प्रति 100 ग्राम में मि.ग्रा. पाये जाते हैं।
100 ग्राम लौकी से 12 कैलोरी ऊर्जा मिलती है। लौकी खायें, स्वस्थ रहें।
लौकी का तेल – एक कप देशी घी या तिल या नारियल का तेल कोई एक में 3 कप लौकी का रस डालकर मंद-मंद अाँच पर इतना उबालें कि सारा पानी जलकर केवल तेल ही रहे। इसे ठण्डा करके छानकर बोतल में भर लें। इसे नित्य सिर में लगायें। चाहें तो शरीर पर मालिश भी कर सकते हैं। खुजली, दाद पर भी लगा सकते हैं। इससे खुश्की, जलन दूर होगी। सिर तथा अाँखें स्वस्थ रहेंगी। नींद अच्छी आयेगी। शरीर में ताजगी, स्फूर्ति रहेगी। उन्माद और मानसिक दुर्बलता दूर होती है।
प्राय: महिलाएँ सब्जी का छिलका उतार कर सब्जी को पानी से धोती हैं, जिससे उनके सारे प्रोटीन, विटामिन और रेशे निकल जाते हैं। साबुत सब्जियों को पहले धोकर, फिर काटें। सब्जियाँ बिना छिलका उतारे बनाने से ज्यादा लाभदायक होती हैं।
लौकी-सूप
सामग्री – लौकी-200 ग्राम; आलू, प्याज-2-2; पत्तागोभी (कटी हुई) -1 कप; मूंगफली (कच्चे दाने) -1/4 कप; कॉर्नफ्लार-1 बड़ा चम्मच; मक्खन-1 बड़ा चम्मच, लौग (पाउडर) -1/4 छोटा चम्मच; दालचीनी (पाउडर) -1/4 छोटा चम्मच; कालीमिर्च (पाउडर) -1/4 छोटा चम्मच; नमक-स्वादानुसार।
विधि – लौकी, आलू, प्याज व पत्तागोभी को बारीक काट लें। एक गिलास पानी डालकर उबालें। ठण्डा करके पीसकर छान लें। स्टॉक तैयार है। मूंगफली को बारीक पीस लें और गर्म करें। इसमें कॉर्नफ्लार डालकर चलाएँ। स्टॉक डाल दें। लगातार चलाएँ। उबाल आने पर पिसी मूंगफली, लौंग, दालचीनी, कालीमिर्च व नमक डालें ? थोड़ी देर उबालकर परोसें ।
लाभ – यह सूप प्रोटीन, मिनरल्स व विटामिन्स से भरपूर तथा कृमिनाशक है। ज्वर, बार-बार प्यास लगना, बेचैनी, रक्तस्राव, बवासीर, खाँसी, दमा आदि रोगों में लौकी का सूप पीना लाभदायक है। लौकी का रस, खिचड़ी, सब्जी भी रोगी के लिए लाभदायक है। लौकी का सूप, सब्जी, रस, कच्ची खाना सभी रोगों में लाभदायक है। जिनको रस किसी भी प्रकार की हानि पहुँचाता है, वे लौकी के रस में अंगूर या अनार का रस मिलाकर पी सकते हैं।
लौकी का रायता – उबाली हुई लौकी पीस कर छाछ में मिलायें। मसाले कम से कम डालें। यह बहुत स्वादिष्ट और पेट के रोगों में लाभदायक है।
लौकी को रोटियाँ – लौकी को कद्दूकस करके आटे में मिलाकर रोटियाँ बनायें। रोटियाँ सुपाच्य और पाचक बनेंगी।