परिचय : 1. इसे मरिच (संस्कृत), काली मिर्च (हिन्दी), गोल मरिच (बंगला), मिरी (मराठी), मरी (गुजराती), मिलागू (तमिल), मिरियालू (तेलुगु), फिलिफिल अस्वद (अरबी) कहते हैं।
लेटिन नाम – पाइपर नाइग्रम ( Piper Nigrum )
2. इसकी वृक्षों पर चढ़नेवाली मोटी बेल होती है, जो शाखाओं की गाँठों से निकलती और जड़ों से चिपटी रहती है। काली मिर्च के पत्ते पान के आकार के, 5-7 इंच लम्बे, 2-5 इंच चौड़े होते हैं। काली मिर्च के फूल छोटे आते हैं। फल छोटे और गोल गुच्छों में लगते हैं, जो कच्ची अवस्था में हरे, पकने पर लाल तथा सूखने पर काले रंग के हो जाते हैं।
3. यह विशेषत: मलाया, कोंकण प्रदेश, कूचबिहार, असम तथा मलाबार में होती है।
रासायनिक संघटन : इसके फल के छिलके में एक उड़नशील क्षार तत्त्व 5-9 प्रतिशत, पाइपरिडिन 5 प्रतिशत, सुगन्धित उड़नशील तेल 1-2 प्रतिशत और फैट 7 प्रतिशत होते हैं। फल के गूदे में कटु रेजिन पदार्थ चविकिन, उड़नशील तेल, स्टार्च, गोंद, चिकना भाग 1 प्रतिशत, प्रोटीन 7 प्रतिशत तथा क्षार 5 प्रतिशत होते हैं।
काली मिर्च के औषधीय गुण : यह स्वाद में चरपरी, पचने पर कटु तथा हल्की, तीक्ष्ण, गर्म है। इसका मुख्य प्रभाव पाचन-संस्थान (डायजेस्टिव सिस्टम) पर अग्निदीपक रूप में पड़ता है। यह कृमिनाशक, शूलहर, रुचिकर, कफहर, मूत्रजनक, आर्तवजनक नाड़ी बलकारक, यकृत-उत्तेजक, चर्मरोगहर तथा
हर प्रकार की सब्जी में कालीमिर्च डालना लाभदायक है। आधे सिर में दर्द हो तो 12 ग्राम कालीमिर्च चबाकर खायें और ऊपर से 30 ग्राम देशी घी पियें।
काली मिर्च के फायदे ( kali mirch ke fayde )
नेत्र-ज्योति – पिसी कालीमिर्च, घी, बूरा सभी समान मात्रा में मिलाकर चौथाई चम्मच सुबह-शाम खाने से नेत्र-ज्योति तेज होती है।
ज्वर – (1) यदि ज्वर में उबासियाँ या जम्हाइयाँ आती हों, शरीर में दर्द हो, दुर्बलता और कँपकँपी हो तो सुबह-शाम बीस कालीमिर्च कूटकर एक गिलास पानी में उबालें। चौथाई पानी रहने पर सुहाता-सुहाता गर्म पिलायें। ज्वर उतर जायेगा। (2) पाँच कालीमिर्च, 5 तुलसी के पत्ते, 4 मुनक्का, एक लौंग, जरा-सी अदरक, एक इलायची – सबको चाय के साथ उबालकर नित्य तीन बार पिलाने से कफ ज्वर ठीक हो जाता है।
जुएँ, रूसी – 8 कालीमिर्च, 12 सीताफल के बीज पानी में पीसकर घी में मिलाकर रात को सिर में लगायें। प्रात: सिर धो लें। इससे जुएँ, फरास खत्म हो जायेगी, बाल अधिक बढ़ेंगे। पूर्ण सावधानी रखें कि लगाते, सिर धोते समय किसी भी प्रकार से आँखों में न जाए। सिर धोते समय आँखें बन्द रखें तथा बहुत-सा पानी डालकर शीघ्र धोयें।
पुरानी खाँसी में अनुभूत – कालीमिर्च दिन भर में 6 नग धीरे-धीरे चूसने से खाँसी में पहले ही दिन से लाभ मिलता है। एक बार में 2 कालीमिर्च मुँह में डालकर चूसें। इस तरह तीन बार चूसें। वर्षों पुरानी खाँसी को हमने शीघ्र ही इस प्रयोग से ठीक होते देखा है।
कफ – (1) तीस कालीमिर्च पीसकर दो कप पानी में उबालें। चौथाई पानी रहने पर छानकर एक चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम पियें। इससे खाँसी, कफ, गले में कफ लगे रहना ठीक हो जाता है। (2) जुकाम, कफ, विवरप्रदाह (साइनस), कब्ज आदि रोगों में कालीमिर्च 10 ग्राम, शक्कर 25 ग्राम, बादाम की गिरी 50 ग्राम सबको पीस कर मिला लें। नित्य रात को सोते समय एक चम्मच पाउडर की गर्म दूध से फंकी लें।
बलगम – दस कालीमिर्च, 15 तुलसी के पत्ते पीसकर शहद में मिलाकर नित्य तीन बार चाटने से गले में जमा बलगम, कफ बाहर निकलकर गला साफ हो जाता है।
दमा – 5 कालीमिर्च, 5 तुलसी के पत्ते चबाकर पानी पीने से दमा का दौरा शान्त हो जाता है।
दमबेल (टाइलोफोरा इंडिका) एक बेल है जो बाग-बगीचों, वनस्पति विभाग में मिलती है। टाइलोफोरा इंडिका का एक पत्ता अच्छा मोटा सबसे बड़ा, पका हुआ में एक कालीमिर्च लपेट कर पान की तरह प्रात: भूखे पेट चबाते जायें और इसमें से निकलने वाले रस को चूसते रहें। अन्त में बचे गूदे को थूक दें। इस प्रकार नित्य तीन दिन तक लेने से दमा (Asthma) के रोगियों को आशातीत लाभ होता है। तीन दिन में लाभ नहीं मिलने पर इसे सात दिन ले सकते हैं। तीन या सात दिन यह पत्ता कालीमिर्च के साथ लेने से दमा जैसे कष्टसाध्य रोग में लाभ होता है।
सावधानी – किसी-किसी रोगी को इसके सेवन से उल्टी हो जाती है, पर घबराने की बात नहीं है। जिनके कफ जमा होता है, उस कफ को निकालने के लिए उल्टी होती है। कफ निकल जाने के बाद उल्टी अपने आप बन्द हो जाती है। इसे रोगियों को सेवन करा कर इससे होते हुए लाभ को मैंने देखा है, अनुभव किया है।
परहेज – इसका सेवन करने के बाद एक घंटे तक कुछ भी नहीं खायें। एक महीने तक रोगी को खटाई, तेल, घी, ठण्डी चीजें नहीं दें।
खाँसी, सूखी खाँसी – (1) इसमें कालीमिर्च और मिश्री मुँह में रखें। इससे गला भी खुल जाता है। खाँसी में लाभ होता है। (2) कालीमिर्च और मिश्री सम भाग पीस लें। इसमें इतना घी मिलायें कि गोली बन जाये। इस गोली को मुँह में रखकर चूसें, हर प्रकार की खाँसी में लाभ होगा। (3) पिसी हुई दस कालीमिर्चे एक चम्मच गर्म घी में मिलाकर चाटने से सूखी खाँसी ठीक होती है या दस कालीमिर्च पीसकर शहद में मिलाकर प्रात: शाम चाटें। रात को कालीमिर्च और दूध गर्म करके पियें। (4) बीस कालीमिर्च तीन चम्मच घी में डालकर गर्म करें। कालीमिर्च गर्मी से कड़कड़ा कर ऊपर आ जाये तो अाँच से उतार लें। इसमें 20 ग्राम कूटी हुई मिश्री के टुकड़े डालकर मिला लें। फिर चबा-चबा कर स्वाद चखते हुए खायें। इसके बाद एक घंटे तक कुछ भी नहीं खायें, पियें। खाँसी में लाभ होगा। (5) पाँच कालीमिर्चे और चौथाई चम्मच पिसी हुई सोंठ एक चम्मच शहद में मिलाकर सुबह-शाम चाटने से कफ वाली खाँसी ठीक होती है।
(6) एक चम्मच पिसी हुई कालीमिर्च 60 ग्राम गुड़ में मिलाकर गोलियाँ बना लें और सुबह-शाम चूसें। इससे हर प्रकार की खाँसी ठीक हो जाती है। (7) आधा गिलास दूध में दस पिसी हुई कालीमिर्च डालकर उबालें। अच्छी तरह उबालने के बाद गर्मा-गर्म पी जायें। इस प्रकार नित्य पियें, खाँसी में यह लाभदायक पेय है। (8) प्रात: 5 कालीमिर्च पान में रखकर चबाने व रस चूसने से इससे हर प्रकार की खाँसी ठीक हो जाती है। (9) पिसी हुई 10 कालीमिर्च, आधा चम्मच हल्दी, 4 छुहारे गुठली निकाले हुए, 2 कप पानी में उबालें। 1 कप पानी रहने पर इसमें 1 कप दूध डालकर पुन: उबालें एवं पियें। नित्य रात को लेने से सर्दी के मौसम की खाँसी ठीक हो जाती है। (10) कालीमिर्च, छोटी हरड़, पीपल – प्रत्येक 25 ग्राम मिलाकर, पीसकर भोजन के बाद 1-1 चम्मच सुबह-शाम पानी के साथ फेंकी लें। खाँसी ठीक हो जायेगी।
बवासीर (Piles) – (1) एक कालीमिर्च तथा बीज सहित मुनक्का दोनों एक साथ नित्य सुबह-शाम खाते रहने से मस्से सूख जाते हैं। (2) रक्तार्श (Bleeding Piles) – दस कालीमिर्च और 60 ग्राम अनार के पत्ते दोनों पीसकर एक गिलास पानी में घोलकर नित्य एक बार पियें। बवासीर से रक्त गिरना बन्द हो जायेगा। (3) 20 ग्राम कालीमिर्च, 15 ग्राम मिश्री, 10 ग्राम जीरा सबको कूट-पीसकर मिला लें। इसकी एक-एक चम्मच की फंकी पानी से सुबह-शाम लें। लाभ होगा।
बिवाइयाँ फटना – कालीमिर्च, राल, कत्था, समान मात्रा में मिलाकर पीस लें। इसमें दो चम्मच देशी घी और चार चम्मच चमेली का तेल मिलायें और लोहे के बर्तन में डालकर गर्म कर लें। फिर इसे चौड़े मुँह की शीशी में भर लें। इसे लगाने से बिवाइयाँ फटना ठीक हो जाती हैं।
कटना – काम करते हुए चाकू, छुरी, किसी धारदार चीज से कट जायें तो रक्तस्राव को पानी से धोकर, साफ करके बारीक पिसी हुई कालीमिर्च भुरका कर दबा दें। रक्तस्राव बन्द हो जायेगा तथा कालीमिर्च से जलन, चिरमिराहट नहीं होगी।
खाँसी, गैस – दस कालीमिर्चें एक गिलास पानी में उबालकर पियें।
पित्ती होने पर पिसी हुई दस कालीमिर्च और आधा चम्मच घी मिलाकर पियें तथा इन दोनों की ही शरीर पर मालिश करें।
सूजन – 5 कालीमिर्च पीसकर चौथाई चम्मच मक्खन के साथ खिलाने से बालकों की सूजन दूर हो जाती है।
सुन्दर संतान – गर्भावस्था में आठ माह तक प्रात: चौथाई चम्मच पिसी कालीमिर्च, 1 चम्मच मिश्री, 1 चम्मच घी या मक्खन नित्य खायें। इसके बीस मिनट बाद नारियल तथा आधा घण्टे बाद सौंफ खायें। इसके आधे घण्टे बाद गर्म दूध पियें। भोजन या नाश्ता आधा घण्टे बाद करें। इससे संतान सुंदर होगी।
धातु पुष्टेि – यदि धातु क्षय होता हो तो रात को 250 ग्राम दूध में 10 कालीमिर्च डालकर गर्म करें। फिर ठण्डा करके छानकर पहले उन कालीमिर्चों को खाकर ऊपर से दूध पियें। इससे धातु पुष्ट होता है।